China Suicide Drones: चीन को लेकर कहा जा रहा है कि हाल ही में उसने 10 लाख आत्मघाती ड्रोन्स खरीदने का ऑर्डर दिया है. बताया जा रहा है कि चीन को यह ऑर्डर 2026 तक मिल जाएगा. बड़ी तादाद में इस तरह के ड्रोन्स का ऑर्डर देने के बाद एक बार फिर ड्रैगन पर सभी की नजरें टिक गई हैं.
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China Suicide Drones: पड़ोसी देश चीन को लेकर बड़ा दावा किया जा रहा है कि उसने 10 लाख आत्मघाती ड्रोन खरीदने का ऑर्डर दिया है. ड्रेगन की इस चाल का खबर मिलते ही एक बार फिर सारी दुनिया की नजरें उसकी तरफ घूम गई हैं. बताया जा रहा है कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार को अपनी सेना पीएलए के लिए यह महाऑर्डर 2026 तक मिल जाएगा. हालांकि चीन ने इतनी बड़ी तादाद में इन ड्रोन्स का ऑर्डल क्यों दिया है ये तो साफ नहीं है लेकिन कहा जा रहा है कि इन ड्रोन्स की डिलीवरी से सबसे बड़ा खतरा ताइवान को हो सकता है. साथ ही यह भी बता दें कि भारत को इससे मोहतात रहने की बेशक जरूरत है लेकिन भारत के पास पहले से ही खुद का इसी तरह का ड्रोन 'नागास्त्र' मौजूद है.
चीनी ड्रोन निर्माता ने एक बड़े सरकारी कॉट्रेक्ट को हासिल करने के बाद खुलासा किया है. निर्माता ने दावा किया कि उसे 2026 तक एक मिलियन कामिकेज़ ड्रोन बनाने हैं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि जंग के लिए इस तरह के ड्रोन्स की तैयारी करना चीन की दूरदर्शिता को दर्शाता है. मानव रहित हवाई प्रणालियों पर बड़ा बदलाव ड्रैगन की रणनीति और आधुनिक युद्ध में इन ड्रोनों के महत्व को उजागर करता है. उन्होंने आगे कहा कि चीनी फौज को यह ड्रोन्स मिलने के बाद उसकी फौज के एक नए युग की शुरुआत करेगा जो युद्ध के मैदान में नई रणनीतियों के साथ आएगा.
रूस-यूक्रेन जंग और मध्य पूर्व संघर्ष में ड्रोन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है और कई अन्य देश इस दिशा में तेजी के साथ कदम बढ़ाते दिखाई दे रहे हैं. तो चलिए जानते हैं कि आखिर चीन समेत कई देश इस तकनीक के पीछे क्यों भाग रहे हैं. इन्हें Kamikaze Drones या फिर Loitering Munitions भी कहा जाता है. ऐसे मानव रहित हवाई वाहन हैं जो आत्मघाती हमलों के लिए बनाए जाते हैं. ये ड्रोन दुश्मन के टार्गेट को निशाना बनाकर खुद को तबाह कर देते हैं और इसके हमले में भारी नुकसान होता है.
इन ड्रोन्स का नाम 'Kamikaze' दूसरे विश्व युद्ध के जापानी पायलटों से प्रेरित होकर रखा गया है, जो आत्मघाती हमले करते थे. ये ड्रोन छोटे आकार के होते हैं और दुश्मन के इलाकों में ऊपर मंडराते हुए अपना टार्गेट तलाश करते रहते हैं. जब यह ड्रोन सही लक्ष्य का पता लग लेते हैं तो वहां आसानी के साथ खुद को विस्फोट से उड़ा देता है. इनका उपयोग सैन्य अभियानों में सटीकता और कम लागत के की वजह बढ़ रहा है.
वैसे तो यह कहा जा रहा है कि चीन भारत के खिलाफ इन ड्रोन्स का इस्तेमाल नहीं करेगा, लेकिन अगर चीन यह गलती है करता है तो उसे मुंह तोड़ जवाब देने के लिए भारत के पास पहले ही 'नागास्त्र' मौजूद है. रक्षा और गोला-बारूद प्रणालियों में 'आत्मनिर्भरता' हासिल करने की दिशा में भारत का यह महत्वपूर्ण कदम था. भारतीय सेना को नागपुर में सोलर इंडस्ट्रीज के ज़रिए बनाए गए देश के पहले स्वदेशी लोइटर गोला-बारूद नागस्त्र-1 का पहला बैच प्राप्त हो चुका है.
यूएवी-आधारित सिस्म नागस्त्र हवाई घात के समान ही काम करती है. अन्य हथियारों के विपरीत, सोलर के नागस्त्र को सुरक्षित रूप से प्राप्त किया जा सकता है और अगर जरूरी हो तो हमले को नाकाम भी बना सकता है. नागस्त्र-1 में लक्ष्य के ऊपर मंडराने की क्षमता है और इसीलिए इसे लोइटरिंग गोला-बारूद के रूप में जाना जाता है. नागास्त्र-1 कामिकेज़ मोड में होने पर GPS-सक्षम सटीक हमले का इस्तेमाल करके किसी भी खतरे को बेअसर कर सकता है. 4,500 मीटर से अधिक ऊंचाई तक पहुंचने में सक्षम यूएवी के ऊपर स्थापित, दूर से संचालित हथियार रडार तकनीक से पता लगाने योग्य नहीं है. उदाहरण के लिए, यह हवा में मंडरा सकता है और एक विशेष समय पर हमला कर सकता है. यह कामिकेज़ मोड में हमला करता है, अपने लक्ष्य के साथ-साथ खुद को भी तबाह कर लेता है.