यरुशलम को लेकर ट्रंप के फैसले के बाद फलस्तीन में नए सिरे से आंदोलन के आसार
ट्रंप के फैसले के बाद बनी अनिश्चितता के बीच इजरायल ने पश्चिमी तट पर सैंकड़ों की संख्या में अतिरिक्त सैनिक तैनात किए हैं.
यरुशलम: यरुशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले के बाद फलस्तीन में गुरुवार शाम आम हडताल शुरू हो गई. वहीं क्षेत्र में नए सिरे से आंदोलन का आह्वान किया गया है. ट्रंप के फैसले के बाद क्षेत्र में रक्तपात की आशंका बढ़ गई है. ट्रंप के फैसले के बाद बनी अनिश्चितता के बीच इजरायल ने पश्चिमी तट पर सैंकड़ों की संख्या में अतिरिक्त सैनिक तैनात किए हैं. पश्चिमी तट के शहर रामल्ला में एक विशाल प्रदर्शन की योजना बनाई जा रही है. इस बीच हजारों लोगों ने हमास शासित गाजा पट्टी में बुधवार रात प्रदर्शन किया और अमेरिकी तथा इजरायली झंडे जलाए. प्रदर्शनकारियों ने अमेरिका और इजरायल के खिलाफ नारेबाजी की.
ट्रंप की इस घोषणा की कई देशों ने आलोचना की है. अमेरिका के कई सहयोगियों एवं साझेदारों ने भी इस विवादास्पद निर्णय की निंदा की है. तुर्की के राष्ट्रपति रजब तयब एर्दोआन ने आगाह किया कि इससे क्षेत्र आग के गोले मे बदल जाएगा. वहीं इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ट्रंप की प्रशंसा करते हुए इसे ऐतिहासिक फैसला बताया तथा अन्य देशों से भी इसका अनुसरण करने को कहा.
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फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने कहा कि ट्रंप का यह कदम अमेरिका को पश्चिम एशिया में शांति स्थापित करने की पारंपरिक भूमिका के लिए अयोग्य ठहराता है. सऊदी अरब ने ट्रंप के इस कदम को ‘‘अनुचित और गैर जिम्मेदाराना’’ करार दिया है. इस बीच पूर्वी येरूशलम, पश्चिमी तट आदि क्षेत्रों में फलस्तीनी दुकानें बंद रहीं. आम हड़ताल के आह्वान के बाद गुरुवार को स्कूल भी बंद रहे. ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा मे ने कहा कि वह इस घोषणा और अमेरिकी दूतावास को वहां स्थानांतरित करने के कदम से सहमत नहीं है.
उन्होंने कहा कि हमारा मानना है कि इस क्षेत्र में शांति की संभावनाएं तलाशने की दिशा में यह मददगार साबित नहीं होगा. जर्मनी ने कहा कि वह ट्रंप के इस फैसले का समर्थन नहीं करता. उधर, ट्रंप की घोषणा के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने शुक्रवार को एक बैठक बुलाई है. सुरक्षा परिषद के 15 में से कम से कम आठ सदस्यों ने वैश्विक निकाय से एक विशेष बैठक बुलाने की मांग की है. बैठक की मांग करने वाले देशों में दो स्थायी सदस्य ब्रिटेन और फ्रांस तथा बोलीविया, मिस्र, इटली, सेनेगल, स्वीडन, ब्रिटेन और उरुग्वे जैसे अस्थायी सदस्य शामिल हैं.