Himalayan Honeybees: नेपाल में बढ़ते तापमान ने घटाई मधुमक्खियों की संख्या, कम हुआ ‘पागल शहद’ का प्रॉडक्शन
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Himalayan Honeybees: नेपाल में बढ़ते तापमान ने घटाई मधुमक्खियों की संख्या, कम हुआ ‘पागल शहद’ का प्रॉडक्शन

Himalayan Honebees: नेपाल का गुरुंग समुदाय हिमालय की चट्टानों पर लटके इन छत्तों से शहद निकालने का काम सदियों से करता आया है. इन लोगों की आमदनी लगातार कम हो रही है. 

Himalayan Honeybees: नेपाल में बढ़ते तापमान ने घटाई मधुमक्खियों की संख्या, कम हुआ ‘पागल शहद’ का प्रॉडक्शन

Nepal's Mad Honey:  नेपाल में हिमालय की चट्टानों में रहने वाली मधुमक्खियों की संख्या में कमी आ रही है. इसी के साथ मधुमक्खियों के छत्तों की संख्या भी घट रही है. कुछ एक्सपर्ट्स मानते हैं जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ता तापमान मधुमक्खियों की वृद्धि, उनके खाने की उपलब्धता और यहां तक ​​कि पौधों के परागण (Pollination of Plants) को नुकसान पहुंचा रहा है.

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल का गुरुंग समुदाय चट्टानों पर लटके इन छत्तों से शहद निकालने का काम सदियों से करता आया है. ये लोग राजधानी काठमांडू से लगभग 175 किमी. (110 मील) पश्चिम में स्थित ताप, लामजुंग और कास्की जिलों के गांवों में रहते हैं.

अब मधुमक्खियों की कम होती संख्या इनके काम को खासा प्रभावित कर कर रही हैं. यहां तक की पीढ़ियों पुराना यह शिल्प खत्म होता जा रहा है.

गुरुंग समुदाय की आमदनी में आ रही कमी
समुदाय की एक सदस्य 49 वर्षीय चित्रा बहादुर गुरुंग ने कहा, 'पिछले साल लगभग 35 छत्ते थे, अब हमारे पास मुश्किल से 15 बचे हैं.

41 वर्षीय हेम राज गुरुंग ने बताया कि हर साल शहद की उपलब्धता कम होने की वजह से पिछले दशक में इस काम से होने वाली आमदनी में गिरावट आई है.

हेम राज ने कहा, ‘हमने 10 साल पहले लगभग 600 किलोग्राम शहद का उत्पादन किया था, जो पिछले साल घटकर लगभग 180 किलोग्राम रह गया और इस साल लगभग 100 किलोग्राम ही हो पाया है.

पागल शहद में होता है नशा
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक मधुमक्खियों के छत्ते का अर्क, जिसे 'पागल शहद' के नाम से भी जाना जाता है, अपने खास नशे के लिए जाना जाता है और 2,000 नेपाली रुपये ($1.5) प्रति लीटर बिकता है.

मधुमक्खियों की संख्या में गिरावट के कारण
कुछ एक्सपर्ट्स वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण जलवायु परिवर्तन को गिरावट का मुख्य कारण मानते हैं. हालांकि दूसरे भी कई कारण जिम्मेदार है, जैसे - वनों की कटाई,  नदियों के पानी को जलविद्युत बांधों के लिए मोड़ना और कीटनाशकों का इस्तेमाल.  

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों और स्वतंत्र शोध से पता चलता है कि धरती की सबसे ऊंची चोटियों का घर हिमालय में तापमान बढ़ रहा है.

तापमान में एक डिग्री की बढ़ोतरी भी डाल सकती है बड़ा असर
भारत के ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (टेरी) की सुरुचि भड़वाल ने कहा कि वैश्विक अध्ययनों से पता चलता है कि तापमान में एक डिग्री की भी वृद्धि मधुमक्खियों की बढ़ोतरी, उनके खाने की उपलब्धता और पौधों के परागण को प्रभावित करती है.

संस्थान में पृथ्वी विज्ञान और जलवायु परिवर्तन की प्रमुख भड़वाल ने कहा कि शोध से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन मधुमक्खियों की फूड चेन और पौधों के फूलने को बाधित कर रहा है. उन्होंने कहा, ‘जहां तक ​​पैटर्न और हम जिस बारे में बात कर रहे हैं,  मुझे लगता है कि नेपाल में भी पैटर्न एक जैसे हैं.’

काठमांडू में इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) के सुरेंद्र राज जोशी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन हिमालय की चट्टानों पर रहने वाली मधुमक्खियों को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित कर रहा है.

जोशी ने कहा, ‘बहुत अधिक या बहुत कम बारिश,  तेज या अनियमित बारिश, और लंबे समय तक सूखा या तापमान में उच्च उतार-चढ़ाव, मधुमक्खियों पर कॉलोनी की ताकत और शहद के भंडार को बनाए रखने के लिए दबाव डालते हैं.’

कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि बाढ़ और भूस्खलन के कारण वो स्थान नष्ट हो सकते हैं और सिकुड़ सकते हैं जहां मधुमक्खियां भोजन की तलाश कर सकती हैं.

ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर असर
मधुमक्खियों की आबादी में गिरावट का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा. जोशी के मुताबिक, ‘इसका ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि शहद की खोज एक महत्वपूर्ण ईको-टूरिज्म एक्टिविटी के रूप में उभर रही है.’ उन्होंने कहा, ‘शहद और मोम के अलावा, समुदायों को पर्यटन से होने वाली आय में भी कमी आएगी.’

Photo courtesy: Reuters

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