US New Hypersonic Missile: अमेरिका ने चीन के लिये एक नई मुसीबत तैयार की है. चीन का काल बनने वाली यह मुसीबत एक हाइपरसोनिक मिसाइल है, जो छोटी, दमदार और हल्की है. इसे अमेरिका अपने सबसे लेटेस्ट लड़ाकू विमानों पर तैनात करने वाला है. अमेरिका की इस मिसाइल का नाम है मेको..ये नाम समंदर में सबसे तेज रफ्तार से तैरनेवाली शार्क के नाम पर रखा गया है. 


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ध्वनि की रफ्तार से 5 गुना तेज


मेको मिसाइल हाइपरसोनिक होगी यानी ध्वनि की रफ्तार से 5 गुना तेज है. इसकी स्पीड 6 हज़ार किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा होगी. इतनी तेज रफ्तार वाली मिसाइलें दुनिया में बहुत कम देशों के पास हैं. आसान भाषा में इस स्पीड का मतलब समझिए. दिल्ली से मुंबई की हवाई दूरी करीब 1150 किलोमीटर है और ये मिसाइल सिर्फ 12 मिनट में ये दूरी तय कर लेगी. 


चीन के लिये खतरे की बड़ी वजह समझिए. इस मिसाइल को अमेरिका के सभी लड़ाकू विमान, निगरानी करनेवाले एयरक्राफ्ट, पनडुब्बी और यहां तक कि युद्धपोत पर भी तैनात किया जाएगा. मतलब अब चीन को हर फ्रंट पर अमेरिका की हाइपरसोनिक मिसाइल चैलेंज करेगी. अमेरिका अपने अदृश्य F-35 फाइटर जेट्स पर सबसे तेज मिसाइल लगाने जा रहा है. रडार से बचकर उड़नेवाले विमान से साथ मिलकर मेको (Mako) हाइपरसोनिक मिसाइल सबसे घातक हमला करेगी.


6 हजार किमी प्रति घंटा की स्पीड


मेको मिसाइल को हवा, जमीन, समंदर या लहरों के नीचे किसी पनडुब्बी से भी फायर किया जा सकता है. 590 किलोग्राम की मिसाइल की सबसे बड़ी ताकत है. इसकी हाइपरसोनिक रफ्तार जो इसे मिनटों में दुश्मन के इलाके में टारगेट तक पहुंचा सकती है. हाइपरसोनिक मिसाइलें 6000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ज्यादा की स्पीड से उड़ती हैं. लेकिन  अमेरिका ने मिसाइल की सही रफ्तार का खुलासा नहीं किया है.


ज्यादातर हाइपरसोनिक मिसाइलें हर मिनट में 100 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है. हालांकि मेको की स्पीड इससे भी ज्यादा हो सकती है. यानी जबतक दुश्मन संभलेगा तबतक मिसाइल का हमला भी पूरा हो जाएगा. इन्हीं खूबियों की वजह से इस अमेरिकी मिसाइल को चीन के खिलाफ सबसे बड़ी तैयारी माना जा रहा है.


चीन के लिए बढ़ा खतरा


मेको की रफ्तार ही चीन के लिए बड़ा खतरा नहीं है. अमेरिका ने दावा किया है कि वो अपने सभी लड़ाकू और निगरानी विमानों पर ये मिसाइल लगा देगा. इस मिसाइल को बनाने वाले वैज्ञानिक इसका पनडुब्बी और युद्धपोत वाला वर्जन भी तैयार कर रहे हैं. मतलब कि चीन को जमीन, समंदर और आसमान में हर मोर्च पर मेको मिसाइल की काट तैयार करनी होगी. 


एक उदाहरण से चीन की मुश्किल समझिए, 300 किलोमीटर दूर मौजूद किसी टारगेट तक पहुंचने में मेको मिसाइल को सिर्फ 180 सेकेंड का वक्त लगेगा
और इतने कम वक्त में किसी मिसाइल का पता लगाकर उसे मार गिराना किसी मुश्किल चैलेंज से कम नहीं है.


एफ-35 पर भी तैनात होंगी मिसाइलें


अमेरिका के पांचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान एफ-35 पर ऐसी 6 मिसाइलें लगाने के दावे किये जा रहे हैं. एफ-35 विमान को रडार की मदद से पकड़ना बहुत मुश्किल है. ये दुनिया का सबसे एडवांस विमान है..और मेको का साथ मिलने के बाद ये और ज्यादा डेंजरस हो जाएगा. मेको मिसाइलों छोटी और हल्के वजन के साथ दमदार भी हैं और इस जोड़ी का मुकाबला करना चीन के लिए भी आसान नहीं होगा.


हाइपरसोनिक मिसाइलों से तेज कोई हथियार दुनिया में मौजूद नहीं है. इसे राडार से पकड़ पाना और मार गिराना तकरीबन नामुमकिन है. इसी वजह से इन मिसाइलों को दुनिया का कोई भी मिसाइल डिफेंस सिस्टम मार नहीं सकता है. सुपरसोनिक मिसाइलों के मुकाबले तीन गुना ज्यादा स्पीड वाली हाइपरसोनिक मिसाइल किसी भी टारगेट को ज्यादा नुकसान पहुंचाती है. 


रूस और चीन से आगे निकलने की कोशिश


हालांकि हाइपरसोनिक मिसाइलों की रेस में अमेरिका अपने दुश्मन चीन और रूस से पीछे है. अमेरिका की मेको मिसाइल अभी भी उसकी सेना में शामिल नहीं हुई है. जबकि चीन और रूस हाइपरसोनिक मिसाइलों को अपनी सेना में शामिल कर चुके हैं. यूक्रेन युद्ध में रूस ने अपनी एक और हाइपरसोनिक मिसाइल किंझल का इस्तेमाल किया है और जंग में हाइपरसोनिक हमला करने वाला वो पहला देश बन चुका है. नई हाइपरसोनिक मिसाइल की मदद से अमेरिका अपनी सेना को दुनिया में नंबर वन बनाये रखना चाहता है. लेकिन हाइपरसोनिक रेस में अमेरिका अभी अपने दुश्मनों से बहुत पीछे है.