Vladimir Putin on Peace Talks: लगता है यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध जल्द ही बातचीत की मेज पर पहुंच सकता है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को कहा कि वह यूक्रेन के साथ बातचीत करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कहा कि भारत, ब्राजील और चीन शांति वार्ताओं में मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि जंग के शुरुआती हफ्तों में इस्तांबुल में हुई वार्ता में रूसी और यूक्रेनी वार्ताकारों के बीच हुआ प्रारंभिक समझौता, जिसे कभी लागू नहीं किया गया, वार्ता के लिए आधार का काम कर सकता है.


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कुछ महीने पहले रूस गए थे मोदी


पुतिन का बयान ऐसे वक्त पर आया है, जब पीएम मोदी ने कुछ महीने पहले रूस का दौरा किया था. इसके बाद वह यू्क्रेन गए. आजादी के बाद यह किसी भारतीय पीएम का पहला यूक्रेन दौरा था. अपने दोनों ही दौरों पर पीएम मोदी ने पुतिन और जेलेंस्की को युद्ध का हाल कूटनीति से निकालने का आह्वान किया था.


पुतिन यूक्रेन के साथ बातचीत के लिए तैयार थे, जबकि इससे पहले उन्होंने कुर्स्क क्षेत्र में कीव के आक्रमण के दौरान बातचीत के विचार को खारिज कर दिया था. 


अगस्त में यूक्रेन ने रूस के कुर्स्क क्षेत्र में सीमा पार से घुसपैठ की, जिसमें हज़ारों सैनिकों को सीमा पार भेजकर कई गांवों पर कब्ज़ा कर लिया गया. पुतिन ने कुछ ही देर बाद कहा कि बातचीत की कोई बात नहीं हो सकती.


व्लादिवोस्तोक में हुए ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम में एक सवाल के जवाब में पुतिन ने कहा, रूस बातचीत के लिए तैयार है लेकिन दोनों देशों के बीच साल 2022 में इस्तांबुल में रद्द हो चुकी डील के आधार पर, जिसकी शर्तें कभी भी सार्वजनिक नहीं की गईं.


पुतिन ने रख दी शर्त


एएफपी ने पुतिन के हवाले से लिखा, 'क्या हम उनसे बातचीत के लिए तैयार हैं? हमने कभी ऐसा करने से मना नहीं किया. लेकिन कुछ अल्पकालीन मांगों के लिए नहीं, बल्कि उन दस्तावेजों के आधार पर जिन पर इस्तांबुल में बात हुई थी.'


क्रेमलिन ने लगातार दावा किया कि दोनों देश साल 2022 में समझौते की कगार पर थे. यह वो वक्त था, जब रूस ने यूक्रेन पर तगड़ा हमला बोला था.


पुतिन ने कहा, 'हम एक समझौते पर पहुंचे थे. इस दस्तावेज़ पर दस्तखत करने वाले यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख के साइन इस बात की गवाही देते हैं, जिसका मतलब है कि यूक्रेनी पक्ष 
इन समझौतों से संतुष्ट था.'


रूस के राष्ट्रपति ने कहा, 'लेकिन वह लागू इसलिए नहीं हुआ क्योंकि उनको ऐसा नहीं करने का निर्देश दिया गया था. वह इसलिए क्योंकि अमेरिका, यूरोप और कुछ यूरोपीय देश रूस की सामरिक हार चाहते थे.'


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