विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज ब्रिटेन की जेल से पांच साल बाद बाहर आ गए हैं. अमेरिकी न्याय विभाग के साथ किए गए एक समझौते के तहत उनकी रिहाई हुई है. इस समझौते के तहत असांज अमेरिका के अधिकार क्षेत्र वाले मारियाना द्वीप की संघीय अदालत में पेश होंगे जहां वह आरोप स्वीकार करेंगे. हालांकि उन्हें जेल नहीं जाना होगा. हालांकि अभी डील को अंतिम रूप नहीं दिया गया है. बता दें अमेरिका ने उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े दस्तावेज चुराने और सार्वजनिक करने के आरोप लगाए थे. 


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आखिर असांज हैं कौन और क्यों उन्हें एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी है.


शुरुआती जीवन
जूलियन असांज का जन्म 1971 में क्वींसलैंड के ऑस्ट्रेलियाई राज्य के टाउन्सविले में हुआ था. उनके माता-पिता एक टूरिंग थिएटर चलाते थे. उनका बचपन बेघरों जैसा था.


इंटरनेट के विकास ने उन्हें गणित में अपनी शुरुआती प्रतिभा का उपयोग करने का मौका दिया, हालांकि यहां भी उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा.


1995 में असांज पर, उनके एक दोस्त के साथ, दर्जनों हैकिंग गतिविधियों का आरोप लगा. असांज को पकड़ लिया गया और उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस पर कई हज़ार ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का जुर्माना लगाया गया - वह इस शर्त पर जेल की सजा से बज गए कि वह फिर से कभी अपराध नहीं करेगा. हालांकि वह कई हजार ऑस्ट्रेलियाई डॉलर के जुर्माने से नहीं बच पाए.


असांज ने अकादमिक दुनिया में भी हाथ आजमाया. उन्होंने उभरते इंटरनेट के विध्वंसक पक्ष पर एक बेस्टसेलिंग पुस्तक का सह-लेखन किया. बाद में उन्होंने मेलबर्न यूनिवर्सिटी में गणित और भौतिकी का अध्ययन किया.


विकिलीक्स  क्या है और इसने क्या किया?
2006 में, असांज ने विकिलीक्स  की शुरुआत की. यह एक ऐसी वेबसाइट थी जिसे मुखबिरों को गुमनाम रूप से सीक्रेट जानकारी लीक करने की अनुमति देने के लिए डिजाइन किया गया था. इसे 'डेड लेटर ड्रॉप' कहा जाता है, इसने दुनिया भर की सरकारों के क्सीफाइड दस्तावेजों तक पहुंच प्रदान की. इसे आइसलैंड और स्वीडन सहित देशों में सर्वर का इस्तेमाल करके एक अंतरराष्ट्रीय ग्रुप द्वारा ऑपरेट किया जाता है.


विकिलीक्स  द्वारा जारी प्रमुख दस्तावेज


अप्रैल 2010: विकिलीक्स  ने एक गोपनीय वीडियो पब्लिश किया, जिसमें 2007 में बगदाद में यूएस हेलीकॉप्टर हमले को दिखाया गया था, जिसमें दो रॉयटर्स पत्रकारों सहित कई लोग मारे गए थे


2010: इस साइट ने अफ़गानिस्तान में युद्ध के बारे में 90,000 से अधिक गोपनीय यूएस सैन्य दस्तावेज़ और इराक युद्ध के बारे में लगभग 400,000 गुप्त फाइले जारी कीं.


2011: विकिलीक्स  ने दुनिया भर में यूएस दूतावासों से 250,000 सीक्रेट डिप्लोमेटिक केबल जारी किए. इनमें से कुछ को द न्यूयॉर्क टाइम्स और द गार्जियन जैसे प्रमुख समाचार पत्रों द्वारा प्रकाशित किया गया था.


2016:  2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में वापस आए, डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के अभियान अध्यक्ष से संबंधित हजारों ईमेल प्रकाशित किए..


2020 में एक अमेरिकी सीनेट की रिपोर्ट में कहा गया था कि रूस ने उस चुनाव में रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप की जीत में मदद करने के लिए विकिलीक्स  का इस्तेमाल किया था. ट्रंप ने रिपोर्ट को एक धोखा बताया और रूस ने हमेशा चुनाव में हस्तक्षेप करने से इनकार किया.


असांज की कानूनी परेशानियां
नवंबर 2010 में, स्वीडन ने यौन अपराधों के आरोपों पर असांज के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किया. दिसंबर 2010 में उन्हें यूके में गिरफ्तार किया गया.


असांज ने आरोपों से इनकार किया, दावा किया कि ये विकिलीक्स  रिलीज के लिए उन्हें यूएस में प्रत्यर्पित करने का एक बहाना था.


2010 में, जब ओबामा सरकार द्वारा असांज पर आरोप लगाने की अटकलें लगाई जा रही थी, तब स्वीडन में उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया गया था.


2012 में असांज स्वीडिश वारंट के खिलाफ यूके की एक अदालत में अपील हार गया. उसने जमानत का उल्लंघन किया और लंदन में इक्वाडोर के दूतावास में चला गया. इक्वाडोर ने उसे शरण दी और अगले सात साल तक अपने दूतावास में रखा.


असांज की गिरफ्तारी और कारावास
-अप्रैल 2019 में, इक्वाडोर द्वारा असांज की शरण रद्द करने के बाद, ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था.


-जून 2019 में, यूएस सरकार के कंप्यूटरों को हैक करने और जासूसी कानूनों का उल्लंघन करने के आरोपों का सामना करने के लिए औपचारिक रूप से उनके प्रत्यर्पण का अनुरोध किया.


-असांज की बेलमार्श जेल में रहे. 2021 में, एक ब्रिटिश न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि असांज को उनके मानसिक स्वास्थ्य के कारण प्रत्यर्पित नहीं किया जाना चाहिए.


-हालांकि 2022 में, यूके ने उनके प्रत्यर्पण को मंज़ूरी दे दी. 2


-4 जून, 2024 को यूके की अदालत ने उन्हें ज़मानत दे दी, जब उन्होंने कहा कि वह यूएस के साथ एक याचिका समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे.


Photo courtesy: Reuters