Muslim Countries Stand on Uighur Muslims: इस्लामोफोबिया (Islamophobia) का रोना रोने वाले और मुस्लिमों के रहनुमा कहलाने वाले देश (Muslim Countries) एक बार फिर बेनकाब हो गए हैं. इन देशों के ताजा रुख ने बता दिया है कि किस तरह ये मुल्क मुसलमानों के मुद्दों की ठेकेदारी सिर्फ अपने फायदे के लिए करते हैं और इनका मुसलमानों की स्थिति से वाकई में कोई लेना देना नहीं होता. असल में संयुक्त राष्ट की मानवाधिकार परिषद में पश्चिमी देशों की तरफ़ से चीन (China) के खिलाफ़ एक प्रस्ताव लाया गया था. इस प्रस्ताव में चीन में वीगर मुसलमानों (Uighur Muslims) पर होने वाले अत्याचारों पर बहस कराने की मांग की गई थी.


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मुस्लिम देशों ने नहीं दिया वीगर मुस्लिमों का साथ


ये प्रस्ताव परिषद में पास नहीं हो पाया क्योंकि इस प्रस्ताव के पक्ष में सिर्फ़ 17 वोट पड़े, जबकि 19 देश ऐसे थे, जिन्होने चीन (China) का साथ देते हुए इस प्रस्ताव का विरोध किया और इस तरह ये प्रस्ताव पास नहीं हो पाया. जबकि 11 देश गैर हाजिर भी रहे. इस प्रस्ताव के खारिज होने की वजह से वीगर मुसलमानों की दुर्दशा पर यूएन में चर्चा नहीं हो पाई. क्या आप जानते हैं कि ये कौन देश थे, जो नहीं चाहते थे कि वीगर मुसलमानों का मुद्दा पूरी दुनिया के सामने उठाया जाए. 


ये कोई चीन की तरह कम्युनिस्ट देश नहीं थे बल्कि ये मुस्लिम देश (Muslim Countries) थे. वो मुस्लिम देश जो पूरी दुनिया में मुसलमानों के झंडाबरदार बनते हैं. मुसलमानों के मुद्दों की ठेकेदारी करते हैं और जब तब दूसरे देशों को इस्लाम के नाम पर नसीहत देते रहते हैं. इस्लामोफोबिया का रोना रोते रहते हैं. जब बारी वीगर मुसलमानों (Uighur Muslims) की आई, तो यही देश मुकर गए. मुकरे ही नहीं उल्टा उन पर अत्याचार करने वाले चीन के समर्थन में उतर आए. 


इसमें इस्लामोफोबिया का राग अलापने वाला पाकिस्तान, दुनिया में सबसे बड़ी मुसलमानों की आबादी वाला देश इंडोनेशिया, नूपुर शर्मा के एक बयान पर जहर उगलने वाला कतर, पूरी दुनिया में मुसलमानों का सबसे बड़ा रहनुमा बनने का दावा करने वाला संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल है. इनके अलावा सूडान, उज्बेकिस्तान और कजाखस्तान ने भी चीन के पक्ष में वोट डाला. जबकि मलेशिया ने वोटिंग ही नहीं की और वो गैर हाज़िर हो गया. 


अपने सिद्धांतों की वजह से भारत ने बनाई दूरी


हालांकि भारत भी इस वोटिंग से दूर रहा, इसीलिए कई लोग भारत के रवैये पर भी सवाल उठा रहे हैं. लेकिन यहां हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि ये भारत की विदेश नीति का हिस्सा है. भारत कभी भी किसी भी देश विशेष के खिलाफ लाए जाने वाले प्रस्तावों पर वोटिंग नहीं करता. इसके अलावा भारत मानवाधिकार से जुड़े मामलों को उस देश का विषय मानता है और वो उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने की नीति अपनाता है.


यहां आपको ये भी जानना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में सिर्फ़ चीन (China) के खिलाफ़ ही नहीं. रूस और श्री लंका के खिलाफ़ भी प्रस्ताव लाए गए थे, लेकिन भारत ने इन प्रस्तावों पर भी वोटिंग नहीं की और भारत की तरफ से इसका स्पष्टीकरण भी दिया गया है. यानी भारत चीन को फायदा पहुंचाने के लिए वोटिंग से गैरहाज़िर नहीं रहा बल्कि ये उसकी नीति का हिस्सा है


स्पष्ट रूप से कहें तो भारत की यही आधिकारिक नीति यही है कि वो दूसरे देशों के आंतरिक मामलों  में टांग नहीं अड़ाएगा. लेकिन प्रश्न उन मुस्लिम देशों का है, जो खुद को मुसलमानों का रहनुमा बताते हैं. लेकिन जब बात वीगर मुसलमानों की आती है तो उनके मुंह में दही जम जाता है और वो उलटा चीन की हां में हां मिलाने लगते हैं. तो अब सवाल ये भी उठता है कि क्या ये मुस्लिम देश वीगर मुसलमानों को मुसलमान मानते भी हैं कि नहीं. अगर ये उन्हे मुसलमान मानते होते तो उन पर होने वाली बर्बरता देखकर भी चीन का साथ तो नहीं देते.


वीगर मुस्लिमों का दमन करने में जुटा है चीन


इसी वर्ष अगस्त में UNHRC की तरफ से चीन (China) में वीगर मुसलमानों v की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट में उन पर हो रहे अत्याचार को लेकर चीन को जमकर फटकार लगाई गई थी और उनकी खराब हालत के बारे में बताया गया था.


जानकारी के अनुसार चीन में करीब 2 करोड़ 20 लाख मुसलमान रहते हैं और इनमें से एक करोड़ 10 लाख वीगर मुसलमान हैं. चीन इन मुसलमानों को अपने हान समाज का हिस्सा बनाना चाहता है. चीन की बहुसंख्यक आबादी खुद को हान वंश का मानती है और चीन इन मुसलमानों को भी हान बनाना चाहता है. यानी चीन इस्लाम का एक Chinese संस्करण तैयार करना चाहता है, जिसमें धर्म की बातों की जगह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनकी Communist पार्टी के विचार ले लेंगे.  


इसके लिए चीन शिनजियांग में बड़े पैमाने पर नरसंहार और अत्याचार कर रहा है. चीन में अब तक 18 लाख वीगर मुसलमानों (Uighur Muslims) को जेल में डाला जा चुका है. 10 लाख मुसलमानों को एक हजार से ज्यादा Concentration Camps में रखा गया है. चीन इन्हें Re Education Camps कहता है. लेकिन सच ये है कि इन कैंप्स में मुसलमानों पर तरह तरह के अत्याचार किए जाते हैं, उनका शारीरिक शोषण होता और यहां तक कि मुसलमानों को मारकर उनके अंगों की तस्करी करने के भी आरोप लगाए जाते हैं. 


मस्जिदों को गिराकर बना डाले हैं टॉयलेट


इतना ही नहीं चीन (China) में मुसलमान महिलाओं के गैंग रेप और पुरुषों की जबरन नसबंदी की खबरें भी सामने आती रही हैं. वहां बच्चों को उनके माता पिता से अलग कर दिया जाता है. चीन में रहने वाले मुसलमान इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कर सकते. लेकिन हैरानी तो इस बात पर होती है, कि खुद पाकिस्तान जैसा मुल्क इन अत्याचारों को देख कर भी अंधा बन जाता है, भारत में मुस्लिमों की प्रताड़ना का झूठा शोर मचाने वाले दूसरे देश भी चीन के इस अत्याचार पर गूंगे हो जाते हैं.


ये चीन में वीगर मुसलमानों (Uighur Muslims) पर अत्याचार से जुड़ी कोई पहली रिपोर्ट नहीं है. इससे पहले भी अलग अलग संगठन और मीडिया संस्थान भी चीन पर वीगर मुसलमानों के नस्लीय सफाए का आरोप लगाते रहे हैं. शिनजियांग की कुल आबादी में 45 प्रतिशत वीगर मुसलमान हैं, जो मूल रूप से टर्की से संबंध रखते हैं. लेकिन फिर भी यहां के मुसलमान चीन की सरकार की मर्जी के बगैर कुछ नहीं कर सकते. चीन की सरकार जब चाहे वीगर मुसलमानों की मस्जिदों को गिरा सकती है और उस जगह पर Public Toilet यानी सार्वजनिक शौचालय बना सकती है.


वीगर मुस्लिमों के मुद्दे पर  OIC थपथपा चुका है चीन की पीठ


ऐसा भी नहीं है कि मुस्लिम देशों (Muslim Countries) को वीगर मुसलमानों की दुर्दशा की जानकारी नहीं है. वो सब जानते हैं, बस बोलने से बचते हैं. उनका ये दोहरा मापदंड आप पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के इस जवाब से भी समझ सकते हैं. इमरान खान तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे और जब उनसे वीगर मुसलमानों पर पाकिस्तान के स्टैंड के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होने कहा था कि उनके दूतावास ने रिपोर्ट दी है कि शिनजियांग में सब ठीक चल रहा है. इसलिए वे दूसरे देशो के बजाय अपने दूतावास पर ज्यादा भरोसा करते हैं. 


ये उस पाकिस्तान का हाल है, जो टर्की और मलेशिया के साथ मिलकर मुस्लिमों के मुद्दे उठाने के लिए अलग संगठन बनाने की कोशिश कर रहा था. वैसे तो बाक़ी के मुस्लिम देशों के मन में भी वीगर मुसलमानों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है. 57 मुस्लिम देशों के संगठन OIC ने वर्ष 2019 में चीन की तारीफ़ की थी और मुस्लिमों की अच्छी देखभाल के लिए उसकी पीठ थपथपाई थी.


वर्ष 2019 में ही मिस्र, बहरीन, पाकिस्तान, UAE, सऊदी अरब समेत 37 देशों ने UN ह्यूमन राइट्स काउंसिल में एक लेटर लिख कर चीन की तारीफ़ की थी और कहा था कि चीन शिनजियांग प्रांत में काफी अच्छा काम कर रहा है. इसी तरह सऊदी अरब भी वर्ष 2019 और वर्ष 2020 में UN में चीन की वीगर मुसलमानों (Uighur Muslims) के प्रति पॉलिसी का समर्थन कर चुका है. 


वीगरों को पकड़कर चीन को सौंप देता है सऊदी अरब


दुनिया में खुद को मुस्लिमों का सबसे बड़ा मसीहा मानने वाला सऊदी अरब तो इस मामले में एक कदम और आगे है. रिपोर्ट्स के मुताबिक सऊदी अरब चीन (China) के इशारे पर अपने यहां हज करने आने वाले वीगर मुसलमानों (Uighur Muslims) को पकड़ कर चीन को सौंप देता है. ऐसा भी नहीं है कि वीगर मुसलमानों पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ़ आंखें मूंदे रहने वाले ताकतवर मुस्लिम देश दूसरी जगहों पर भी खामोश रहते हैं.


वर्ष 2017 में जब म्यामांर में रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा हुई और उन्हे वहां से निकल कर भागना पड़ा तो मुस्लिम देशों ने इसे जोर शोर से UN में उठाया था और म्यामांर के खिलाफ़ कार्रवाई की मांग की थी. मुस्लिम देशों का यही रवैया वर्ष 2020 में फ्रांस के खिलाफ़ भी दिखा था. 16 अक्टूबर 2020 को फ्रांस में सैमुअल पैटी नाम के एक टीचर की उसके ही मुस्लिम छात्र ने ईश निंदा के नाम पर गला काट कर हत्या कर दी थी. 


चीन को छोड़ बाकी देशों पर हमलावर रहते हैं मुस्लिम देश


जब फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने इस्लामी कट्टरपंथ पर टिप्पणी की, तो मुस्लिम देशों ने उनके खिलाफ़ ही मोर्चा खोल दिया था. पाकिस्तान में तो फ्रांस के राजदूत को निकालने तक की मांग की गई थी. वहां कट्टरपंथियों ने इतना उत्पात मचाया था कि पूरा पाकिस्तान ही बंधक बन कर रहा गया था.


इन मुस्लिम देशों (Muslim Countries) के दोहरे रवैये का सबसे ताज़ा उदाहरण भारत है. जहां नूपुर शर्मा के एक बयान के बाद इन देशों ने भारत के खिलाफ़ बयानबाज़ी शुरू कर दी थी. सरकार के आधिकारिक स्टैंड के बावजूद कतर, कुवैत और सऊदी अरब जैसे देशों ने भारत सरकार से आपत्ति दर्ज करवाई थी. दुनिया भर के कई मुस्लिम देशों में भारत के खिलाफ प्रदर्शन भी किया गया था.


यही नहीं ये मुस्लिम देशों का संगठन OIC पहले भी भारत में मुस्लिमों की स्थिति और कश्मीर के मुद्दे पर सवाल उठाता रहा है. जबकि भारत में इस्लाम दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय हैं और आज भारत में मुसलमानों की आबादी पाकिस्तान से भी ज्यादा है. 


शिनजियांग के मुस्लिमों पर चुप्पी क्यों साधे रहते हैं मुस्लिम देश?


लेकिन जब कतर, यूएई और इंडोनेशिया जैसे देश वीगर मुसलमानों के मुद्दे पर चीन के साथ खड़े हो जाते हैं. तब ये सवाल तो उठता ही है कि क्या ये मुल्क वीगर मुसलमानों (Uighur Muslims) को मुसलमान नहीं मानते. असल में दुनिया के किसी भी दूसरे मुसलमान की तरह ये वीगर भी अल्लाह की इबादत करते हैं. पैगम्बर मोहम्मद को उनका रसूल मानते हैं और कुरान शरीफ पर ईमान रखते हैं. वो नमाज़ भी पढ़ते हैं, रोज़ा भी रखते हैं और हज करने भी जाते हैं. यानी इस्लामी धर्म शास्त्र के अनुसार तो वीगर मुस्लिम अनुसार वो सब करते हैं, जो सऊदी अरब, कतर या पाकिस्तान के मुसलमान करते हैं. लेकिन फिर भी उनकी ही उम्माह उनके साथ खड़ी नहीं होती.


यही नहीं चीन (China) में मस्जिद तोड़कर टायलेट बनाने की खबरों पर भी पाकिस्तान, कतर या टर्की  में किसी धार्मिक संगठन का खून नहीं खौलता और न ही किसी भी मुस्लिम देश (Muslim Countries) में चीन के उत्पादों का बहिष्कार होता है और न ही शी जिनपिंग के खिलाफ़ प्रदर्शन होते हैं. 


इसीलिए आज ये सवाल पूछा जा रहा हं कि ये मुस्लिम मुल्क और उनकी जनता वीगर मुसलमानों (Uighur Muslims) को मुसलमान मानती भी हैं या नहीं. और अगर नहीं मानती तो इसकी वजह क्या है. अगर वे इन्हें मुसलमान मानते हैं तो फिर मुस्लिमों की ठेकेदारी करने वाले तमाम देश उनकी दुर्दशा देखकर भी खामोश क्यों हैं. 


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