नई दिल्लीः हिन्दू धर्म में व्रत, पूजा-पाठ, उपवास आदि को काफी महत्व दी गयी है. ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से व्रत रखने पर व्यक्ति को मनचाहे वस्तु की प्राप्ति होती है. वैसे तो हिन्दू धर्म में हर महीने की प्रत्येक तिथि को कोई न कोई व्रत या उपवास होते हैं लेकिन लेकिन इन सब में प्रदोष व्रत की बहुत मान्यता है.


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आज का पंचांग


ज्येष्ठ- कृष्ण पक्ष, द्वादशी, शुक्रवार 
नक्षत्र- अश्वनी नक्षत्र 


महत्वपूर्ण योग- सौभाग्य योग 
चन्द्रमा का मेष राशि पर संचरण 


शुभ मुहूर्त


सर्वार्थ सिद्ध योग सूर्य उदय से रात्रि तक
राहुकाल- 11.05 बजे से 12.35 बजे तक


त्योहार- प्रदोष व्रत


प्रदोष व्रत को हम त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जानते हैं. यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है. पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से बेहतर स्वास्थ्य और लम्बी आयु की प्राप्ति होती है. शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत एक साल में कई बार आता है. प्रायः यह व्रत महीने में दो बार आता है.


प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष को त्रयोदशी मनाते है. प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है. सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है. इस व्रत में भगवान शिव कि पूजा की जाती है.


हिन्दू धर्म में व्रत, पूजा-पाठ, उपवास आदि को काफी महत्व दी गयी है. ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से व्रत रखने पर व्यक्ति को मनचाहे वस्तु की प्राप्ति होती है. वैसे तो हिन्दू धर्म में हर महीने की प्रत्येक तिथि को कोई न कोई व्रत या उपवास होते हैं लेकिन लेकिन इन सब में प्रदोष व्रत की बहुत मान्यता है.


शास्त्रों के अनुसार महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि में शाम के समय को प्रदोष कहा गया है. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव प्रदोष के समय कैलाश पर्वत स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं. इसी वजह से लोग शिव जी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन प्रदोष व्रत रखते हैं. इस व्रत को करने से सारे कष्ट और हर प्रकार के दोष मिट जाते हैं.


कलयुग में प्रदोष व्रत को करना बहुत मंगलकारी होता है और शिव कृपा प्रदान करता है.  प्रदोष व्रत अन्य दूसरे व्रतों से अधिक शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता यह भी है इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से जीवन काल में किये गए सभी पापों का नाश होता है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.


गुप्त मनोकामना की पूर्ति के लिए


आज सूर्यास्त से पहले काली मिट्टी से उत्तरपूर्व कोने में सवा गज चौड़ाई और लम्बाई में लेप करें. इसके बाद स्वास्तिक बनाकर एक लाल वस्त्र में पानी वाला नारियल लपेटकर रख दें. वहा नर्मदेश्वर स्थापित करें. एक कपूर अथवा घी का दीपक अवश्य जला दें. एक पात्र में घी द्वारा शिव का अभिषेक करें. घी का दान करें. अगले दिन उस नारियल को सूर्योदय से पूर्व नदी में प्रवाहित कर दें.


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