नई दिल्ली. Chanakya Niti for Money आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जहां मूर्खों की पूजा नहीं होती, जहां अन्न पर्याप्त मात्रा में इक्ट्ठा रहता है, जहां पति और पत्नी के बीच किभी भी प्रकार का कलह नहीं होता, ऐसे स्थान पर मां लक्ष्मी स्वयं चल कर आती हैं और और उस घर पर अपनी कृपा बरसाती हैं.


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मूर्खा यत्र न पूज्यन्ते धान्यं यत्र सुसंचितम्। 
दाम्पत्य: कलहो नास्ति तत्र श्री: स्वयमागता।।


इस श्लोक का अर्थ है कि जो लोग या देश मुर्ख लोगों की बजाय गुणवानों का आदर-सम्मान करते हैं, अपने घर में जरूरत के अनुसार अन्न का संग्रह करके रखते हैं या जिन घरों में लड़ाई-झगड़े नहीं होते,  उन लोगों की संपत्ति अपने आप बढ़ने लगती है. 


आचार्य ने अपने इस श्लोक में लक्ष्मी को श्री कहा है, जो बुद्धि की सखी है. बुद्धि की श्री के साथ गाढ़ी मित्रता होता है. ये दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकती. महर्षि व्यास कहते हैं कि जहां श्री हैं, वहां भगवान को मानों. इस श्लोक में जिन गुणों को बताया गया है, उनका होना भगवान की उपस्थिति का संकेत है.


चाणक्य कहते हैं कि लक्ष्मी चंचल हैं, लेकिन श्री जिसके घर में प्रविष्ट हो जाती है उसे् अपनी इच्छा से नहीं छोड़ती. श्री को संतोष भी कहा जाता है. संतोष को सर्वश्रेष्ठ संपत्ति माना गया है. इसी प्रकार संतोषी व्यक्ति को लक्ष्मी के पीछे जाने की आवश्यक्ता नहीं होती, वह स्वयं उसके घर आकर निवास करती हैं.


(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले लें.)


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