Daily Panchang में मृगशिरा नक्षत्र और गंड योग, दशरथ स्त्रोत के पाठ से प्रसन्न होंगे शनिदेव
आज चंद्र दर्शन कर माता-पिता का आशीर्वाद लेने से भाग्य चमकेगा. साथ ही आज मृगशिरा नक्षत्र के साथ गंड योग है, पंचांग में क्या है खास, बता रहे हैं आचार्य विक्रमादित्य-
नई दिल्लीः Daily Panchnag 12th June 2021 आज का दिन आपके लिए खास समय लेकर आया है. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि है.
आज चंद्र दर्शन कर माता-पिता का आशीर्वाद लेने से भाग्य चमकेगा. साथ ही आज मृगशिरा नक्षत्र के साथ गंड योग है, पंचांग में क्या है खास, बता रहे हैं आचार्य विक्रमादित्य-
पंचांग Daily Panchang
दिन- शनिवार
तिथि- द्वितीया
महीना- ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष
आज चंद्र दर्शन कर माता-पिता का आशीर्वाद लेने से भाग्य चमकेगा
नक्षत्र
मृगशिरा नक्षत्र के साथ गंड योग है
शुभ मुहूर्त
दोपहर 1:48 से 12:14 तक शुभ काम करें
राहुकाल
सुबह 9:47 से 11:11 तक शुभ काम ना करें
आज दशरथ स्त्रोत के पाठ से प्रसन्न होंगे शनि महाराज
शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या की वजह से व्यक्ति का जीवन बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है.व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. शनिवार और शनि जयंती के पावन दिन विधि- विधान से शनि महाराज की पूजा- अर्चना की जाती है. इस दिन ये छोटा सा उपाय करने से भगवान शनि प्रसन्न हो जाते हैं.
धार्मिक कथाओं के अनुसार राजा दशरथ ने भी इसी उपाय से भगवान शनि को प्रसन्न किया था. शनिवार के दिन शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ जरूर करें. दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनि देव का आर्शाीवाद मिलता है.
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालग्निरुपायकृतान्ताय च वै नम:।।
नमो निर्मांसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदरभयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमोदीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।।
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तु ते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मजसूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वें नाशं यान्ति समूलत:।।
प्रसादं कुरु मे देव वरार्होऽहमुपागत:।
एवं स्तुतस्तदा सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।
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