नई दिल्ली. कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले सायंकाल देव दीवाली मनायी जाती है. देव दिवाली के दिन पवित्र नदी के जल से स्नान करके दीपदान करना चाहिए. ये दीपदान नदी के किनारे किया जाता है. धार्मिक मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने सृष्टि का पालन करने के लिए मत्स्य रूप धारण किया था. 


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मान्यता यह भी है कि भगवान श्री विष्णु के चिरनिद्रा से जागने पर देवी-देवता धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा भगवान श्री विष्णु के साथ करते हैं. देव दीपावली के अवसर पर भक्त गंगा में पवित्र स्नान करते हैं और शाम को मिट्टी के दीपक या दीये जलाते हैं.


पौराणिक कथा
सनातन धार्मिक ग्रंथों की मानें तो दैविक काल में एक बार त्रिपुरासुर के आतंक से तीनों लोकों में त्राहिमाम मच गया. त्रिपुरासुर के पिता तारकासुर का वध देवताओं के सेनापति कार्तिकेय ने किया था. उसका बदला लेने हेतु तारकासुर के तीनों पुत्रों ने भगवान ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या कर उनसे अमर होने का वर मांगा.


हालांकि, भगवान ब्रह्मा ने तारकासुर के तीनों पुत्रों को अमरता का वरदान न देकर अन्य वर दिया. कालांतर में भगवान शिवजी ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन तारकासुर के तीनों पुत्रों यानी त्रिपुरासुर का वध कर दिया. उस दिन देवताओं ने गंगा नदी के किनारे दीप जलाकर देव दिवाली मनाई. उस समय से देव दिवाली मनाई जाती है.


(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले लें.)


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