नई दिल्ली: Dev Uthani Ekadashi 2022 Mantra प्रबोधिनी एकादशी की महानता सबसे पहले भगवान ब्रह्मा ने ऋषि नारद को सुनाई थी और इसका उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है. यह हिंदुओं के लिए बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह विवाह, नामकरण समारोह, गृह प्रवेश आदि जैसे शुभ समारोहों की शुरुआत का प्रतीक होता है. प्रबोधिनी एकादशी स्वामीनारायण संप्रदाय के बीच अत्यधिक महत्व रखती है.


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यह दिन गुरु रामानंद स्वामी द्वारा स्वामीनारायण की धार्मिक दीक्षा का भी होता है. भक्त जीवन भर किए गए अपने बुरे कर्मों और पापों की समाप्ति हेतु उपवास का पालन करते हैं, साथ ही प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है और मृत्यु के पश्चात वैकुंठ को पाता है.


देवउठनी एकादशी 2022 मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार देवउठनी एकादशी तिथि 03 नवंबर 2022 को शाम 07 बजकर 30 मिनट पर शुरू हुई और देवउत्थान एकादशी तिथि का समापन 04 नवंबर 2022 को शाम 06 बजकर 08 मिनट पर है.


देवउठनी एकादशी व्रत पारण समय
सुबह 06.39 सुबह 08.52 (5 नवंबर 2022)


देवउठनी एकादशी पर विष्णु जी को कैसे जगाएं?
देवउठनी एकादशी पर श्रीहरि की रात्रि में शुभ मुहूर्त में पूजा की जाती है. आंगन में चूना और गेरू से रंगोली बनाई जाती है, जिस पर गन्ने से मंडप बनाते हैं. इसमें भगवान विष्णु के शालीग्राम स्वरूप की पूजा की जाती है. शालीग्राम जी को नए वस्त्र और जनेऊ अर्पित करने के बाद उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये, त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम॥ इस मंत्र तेज स्वर में उच्चारण करते हुए श्रीहरि को जगाया जाता है. इस दिन 11 दीपक देवी-देवताओं के निमित्त जलाएं जाते हैं.


देवउठनी एकादशी की पूजा विधि
- घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि से सभी देवगणों को चार माह की निद्रा के बाद जगने के बाद स्वागत किया जाता हैं.
- इस एकादशी को व्रत रखने वाले आंवला, सिंघाड़े, गन्ने और मौसमी फलों आदि का भोग लगाना चाहिए.
- भक्त को सवेरे ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के बाद देवउठनी एकादशी के व्रत को करने का संकल्प लेना चाहिए.
- घटस्थापना के बाद भगवान विष्णु जी की तस्वीर को स्थापित कर उनके सहस्त्रनाम का जप करना चाहिए.
- अब भगवान की मूर्ति पर गंगाजल के छींटे देकर रोली और अक्षत का भोग लगाना चाहिए.
- पूजन के लिए देवउठनी एकादशी की कथा का वाचन करे तथा घी का दीपक जलाकर उनकी आरती उतारें तथा मंत्रों का जाप करे.
- अब प्रसाद का भोग लगाएं तथा इन्हें ब्राह्मण आदि में वितरित कर उन्हें दान देकर विदा करें.


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