नई दिल्ली: हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी तिथि, रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. यह पर्व देशभर में मनाया जाता है. वहीं मथुरा-वृंदावन में इस त्योहार की अलग ही धूम होती है. खासकर मंदिरों और घरों में लोग बाल गोपाल के जन्मोत्सव का आयोजन करते हैं.


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संतान की कामना के लिए रखते हैं व्रत
जन्माष्टमी के दिन बाल गोपाल के लिए पालकी सजाई जाती है. उनका श्रृंगार किया जाता है. वहीं इस दिन निःसंतान दंपत्ति विशेष तौर पर जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं. वे बाल गोपाल कृष्ण जैसी संतान की कामना से यह व्रत रखते हैं.


श्रीकृष्ण की भक्ति भोग, सुख, मोक्ष प्रदान करने वाली है. श्रीकृष्ण समस्त सुखों और वैभव को प्रदान करने वाले हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से जातकों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है.


जन्माष्टमी व्रत पूजा-विधि
हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस पावन दिन बड़े ही धूम-धाम से भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस दिन विधि-विधान से भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप की पूजा-अर्चना की जाती है और व्रत भी रखा जाता है.


पूजा का शुभ मुहूर्त
19 अगस्त को रात 11 बजकर 59 मिनट से देर रात तक है.


कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत में रात्रि को लड्डू गोपाल की पूजा-अर्चना करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण किया जाता है. हालांकि कई लोग व्रत का पारण अगले दिन भी करते हैं. कुछ भक्तों द्वारा रोहिणी नक्षत्र के समापन के बाद व्रत पारण किया जाता है.


(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Media इसकी पुष्टि नहीं करता है.)


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