नई दिल्ली. आज गोपाष्टमी है और देशभर में गौ माता की सेवा पूजा की जा रही है. शहरी क्षेत्रों की बात करें तो गोशालाओं में गाय का पूजन व सेवा की जा रही है तो ग्रामीण अंचल में किसान गोधन की साज-सज्जा करके विशेष आराधना करते है. मान्यता है कि हिन्दू संस्कृति में गाय का विशेष महत्व होता है और उन्हीं को समर्पित हैं ये गोपाष्टमी पर्व.


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धार्मिक शास्त्रों के अनुसार दिवाली के ठीक बाद आने वाली कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गौ चारण लीला शुरू की थी. कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन मां यशोदा ने भगवान कृष्ण को गौ चराने के लिए जंगल भेजा था. इस दिन गो, ग्वाल और भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करने का महत्व है. हिन्दू धर्म में गाय को माता का स्थान दिया गया है. 


गोपाष्टमी पूजा विधि
- इस दिन गाय की पूजा की जाती हैं. सुबह जल्दी उठकर स्नान करके गाय के चरण स्पर्श किये जाते हैं.
- गोपाष्टमी की पूजा पूरे रीति रिवाज से पंडित जी के द्वारा कराई जाती है.
- सुबह ही गाय और उसके बछड़े को नहलाकर तैयार किया जाता है. उसका श्रृंगार किया जाता हैं, पैरों में घुंघरू बांधे जाते हैं,अन्य आभूषण पहनायें जाते हैं.
- गाय माता की परिक्रमा भी की जाती हैं. सुबह गायों की परिक्रमा कर उन्हें चराने बाहर ले जाते है.
- इस दिन ग्वालों को भी दान दिया जाता हैं. कई लोग इन्हें नये कपड़े दे कर तिलक लगाते हैं.
- शाम को जब गाय घर लौटती है, तब फिर उनकी पूजा की जाती है, उन्हें अच्छा भोजन दिया जाता है. खासतौर पर इस दिन गाय को हरा चारा खिलाया जाता हैं.
- जिनके घरों में गाय नहीं होती है वे लोग गौ शाला जाकर गाय की पूजा करते है, उन्हें गंगा जल, फूल चढाते है, दिया जलाकर गुड़ खिलाते है.
- औरतें कृष जी की भी पूजा करती है, गाय को तिलक लगाती है. इस दिन भजन किये जाते हैं. कृष्ण पूजा भी की जाती हैं.
- गाय को हरा मटर एवं गुड़ खिलाया जाता है.
- कुछ लोग गौशाला में खाना और अन्य समान का दान भी करते है.
- गौ माता का हिन्दू संस्कृति में अधिक महत्व हैं. पुराणों में गाय के पूजन, उसकी रक्षा, पालन,पोषण को मनुष्य का कर्तव्य माना गया हैं. हम सभी को गौ माता की सेवा करना चाहिये, क्यूंकि वह भी हमें एक माँ की तरह ही पालन करती हैं.


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