भीम का घमंड चकनाचूर करने वाले हनुमानजी को भी हुआ था अभिमान, प्रभु राम ने किया था दूर
प्रभु श्रीराम ने अतुल बल के धाम हनुमान के अहंकार को दूर करते हुए उन्हें यह आशीर्वाद दिया था कि जो कोई भी मनुष्य सचे मन से तुम्हारी अस्तुति करेगा वह कभी भी मानसिक विकार से ग्रसित नहीं कर सकता.
नई दिल्ली: मंगलवार का दिन हिंदू धर्म में परमभक्त हनुमानजी को समर्पित है. इस दिन बजरंग बली की आराधना करने से न सिर्फ धन और बेहतर स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है बल्कि मन के विकार भी दूर होते हैं. ज्ञानियों में अग्रगण्य कहे जाने वाले बजरंग बली को भी एक बार अहंकार ने अपने प्रभाव में ग्रसित कर लिया था. तब प्रभु श्रीराम ने अतुल बल के धाम हनुमान के अहंकार को दूर करते हुए उन्हें यह आशीर्वाद दिया था कि जो कोई भी मनुष्य सचे मन से तुम्हारी अस्तुति करेगा वह कभी भी मानसिक विकार से ग्रसित नहीं कर सकता.
जानिए क्या है पूरा प्रसंग
तमिल भक्त कवि महर्षि कम्बन के द्वारा रचित राम कथा 'इरामावतारम्' में इस कथा का वर्णन किया गया है. कथा के अनुसार लंका पर विजय प्राप्त करने की कामना से राम ने भगवान शिव की पूजा करने का विचार किया. पूजा पूर्णतः दोष मुक्त हो और पूर्णरूपेण शुभ फलदाई हो इसके लिए सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी लंकापति रावण को आचार्य पद की जिम्मेदारी दी गई. रावण भी अपने आराध्य देव के पूजा में सम्मिलित होने का निमंत्रण अस्वीकार नहीं कर सका. कथा के अनुसार वह माता जानकी को साथ लेकर स्वयं समुद्रतट पर आ पहुंचा.
इधर पूजा की तैयारी में जुटे भगवान राम को आभास होता है कि शिवलिंग के बिना पूजा कैसे संभव हो सकती है. उन्होंने तत्काल हनुमान को शिव नगरी काशी से शिवलिंग ले आने के लिए भेजा. इस बीच शुभ मुहूर्त बीतता देख रावण ने यथाशीघ्र पूजा शुरू करने की सलाह दी. रावण के द्वारा मुहूर्त बीतने की बात सुनते ही मां सीता ने रेत से ही शिवलिंग बना दिया, और पूजा शुरू हो गई. पूजा के समाप्त होने पर काशी से शिवलिंग लेकर आए हनुमानजी मायूस हो जाते हैं. उन्होंने श्रीराम से आग्रह किया कि रेत के बने शिवलिंग को हटा कर उनके द्वारा लाए गए शिवलिंग को प्रतिस्थापित कर दिया जाए.
दूर हुआ हनुमान का घमंड
अंतर्यामी प्रभु राम जान गए कि जिस लिंग की प्राणप्रतिष्ठा स्वयं प्रभु शंकर के सबसे बड़े भक्त रावण ने किया हो. जिसकी पूजा वो स्वयं अपने हाथों से किए हैं, हनुमानजी उसे अभी भी बालू का ढेर ही समझ रहे हैं. तब प्रभु राम ने मुस्कुराते हुए हनुमानजी से कहा कि आप ही बालू से बने शिवलिंग को हटा कर अपने द्वारा लाए गए शिवलिंग को स्थापित कर दीजिए.
हनुमानजी जी अपने समस्त बल के प्रयोग से भी जब बालू से निर्मित शिवलिंग को हिला भी नहीं पाए तब उन्हें अपनी भूल का आभास होता है. वो प्रभु के समक्ष नतमस्तक हो क्षमा याचना करने लगते हैं. हनुमानजी को दोष मुक्त देख दयानिधान ने उन्हें क्षमा करते हुए यह आशीर्वाद दिया कि आज के बाद तुम्हारी आराधना करने वाले किसी भक्त को भी कभी अहंकार जैसा मानसिक विकार नहीं हो सकता.
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