नई दिल्लीः Happy Janmashtmi 2021:आने वाली 30 अगस्त 2021 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा. मंदिरों से लेकर घरों में इसके लिए तैयारियां चल रही हैं. इसके साथ ही कई स्थानों पर दही-मटकी प्रतियोगिता का आयोजन भी होता है, जो कि कृष्ण की मटकी फोड़ वाली लीला से प्रेरित है. 


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ईष्ट को मानने का अर्थ उसकी नकल नहीं
आज के दौर में हम अपने आराध्यों के किए कर्मों की नकल तो करते हैं, लेकिन उसके किए जाने के पीछे क्या वजह रही होगी, इसके मर्म को नहीं समझते हैं. यही एक वजह जो हमें आध्यात्म की चेतना से दूर रख रही है.



अपने ईष्ट को मानने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि जो उसने किया वही बार-बार करना है, बल्कि यह समझने की जरूरत है तब कि परिस्थिति के अनुसार आराध्य ने ऐसा किया था तो हम उसके अनुयायी आज की बिगड़ी परिस्थति सुधारने के लिए क्या कर सकते हैं. 


कृष्ण फोड़ देते थे गोपियों की मटकी
आधुनिक युग में देखा जाए तो श्रीकृष्ण हमारे ‘अध्यात्मिक दर्शन’ के सबसे बड़े आधार स्तंभ हैं. अगर श्री कृष्ण को केवल मानव स्वरूप में ही जाना जाए तो भी उनका जीवन ऐसे सधे हुए कर्मों का उदाहरण रहा है कि कोई भी व्यक्ति खुद ही भगवान जैसा हो जाए. 


वास्तव में कृष्ण का पूरा जीवन ही श्रेष्ठ प्रबंधन का सुन्दर उदाहरण है. बालकाल को ही स्मरण करें तो एक प्रसंग आता है कि वह गोपिकाओ की दूध -दही की मटकी फोड़ दिया करते थे जो कि गोकुल से मथुरा राज्य में कर के रूप में जाती थीं.


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कंस गोकुल पर कर रहा था अत्याचार
अब आप खुद सोचिये कि क्या ये उचित है, कोई राज्य कर (Tax) के रूप में राज्य के भविष्यों का आधार ही छीन ले. वास्तव में श्री कृष्ण ने अपने देश- काल की परिस्थितियों और समस्याओं को बचपन से ही पहचाना और उनका निवारण करना प्रारंभ कर दिया था.



कंस ने गोकुल पर कर बढ़ा दिया था और उसके इस आर्थिक अत्याचार को चुनौती देने के लिए कृष्ण बाल लीला के तौर पर गोपिकाओं की मटकी फोड़ देते थे और सारा दूध-दही माखन गोकुल के बच्चों के साथ बांट कर खा लेते थे. असल में यह दूथ-माखन उन्हीं बच्चों का अधिकार था.


दही-हांडी का आयोजन
दही-हांडी का आयोजन गलत नहीं है, किया जा सकता है. लेकिन सिर्फ प्रतिस्पर्धा वाले नजरिए से ही इसे देखना ठीक नहीं है. जरूरी है कि इसकी वजह भी समझी जाए, तभी जन्माष्टमी का असल उद्देश्य सफल होगा. 


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