नई दिल्ली: पितृ पक्ष में पितरों को तर्पण देने के लिए और अपने दिवगंतों की आत्मा की शांति के लिए उनका श्राद्ध किया जाता है. लेकिन श्राद्ध के समय कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए.


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किसे करना चाहिए पूर्वजों का श्राद्ध


जिस तरह पिता-माता की अंतिम क्रिया ज्येष्ठ पुत्र और कनिष्ठ पुत्र के द्वारा किया जाना विशेष धार्मिक महत्व रखता है. ठीक उसी तरह पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म में ज्येष्ठ अथवा कनिष्ठ पुत्र के द्वारा ही किया जाना चाहिए. हालांकि इसमें सभी भाइयो का योगदान बहुत जरूरी है. श्राद्धकर्म सब मिलकर करें लेकिन विधान ज्येष्ठ अथवा कनिष्ठ पुत्र द्वारा ही किया जाना चाहिए.


क्या होता है मघा श्राद्ध


श्राद्ध की हर एक तिथि का अपना महत्व होता है. पितृ पक्ष की इन्हीं तिथियों में से एक है मघा श्राद्ध. आज शुक्र प्रदोष को मघा नक्षत्र श्राद्ध का विशेष योग बन रहे हैं. हिन्दू पंचांग के अनुसार त्रयोदशी तिथि के दिन होने वाली श्राद्ध को मघा श्राद्ध कहते हैं. शास्त्रों में यह बताया गया है कि मघा नक्षत्र में किया जाने वाला श्राद्ध पराक्रम, प्रतिष्ठा, शुभ लक्ष्मी तथा वंश वृद्धि करने वाला होता है.


जानिए मघा श्राद्ध का महत्व?



ज्योतिष शास्त्र में मघा नक्षत्र के देव पितृ हैं. इसलिए श्राद्ध में इस तिथि का महत्व अधिक है. मघा नक्षत्र का नक्षत्र मंडल में दसवां स्थान माना जाता है और इसके चारों चरण सिंह राशि में आते हैं. इस नक्षत्र का स्वामी केतु है. राशि स्वामी सूर्य है.
यदि मघा नक्षत्र अपराह्न काल के दौरान दो दिनों में आंशिक रूप से प्रबल होता है, तो वह दिन अनुष्ठान करने के लिए उपयुक्त माना जाता है. यह आम तौर पर पितृ पक्ष का 13वां दिन होता है.

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