Jagannath Rath Yatra 2021: आखिर कैसे लग गई जगन्नाथ भगवान के मुंह पर जूठन, जानिए रहस्य
पुराने समय में भक्तिन कर्माबाई बाल जगन्नाथ को अपना बेटा मानती और उनकी खूब सेवा करती थी. वह सुबह-सुबह ही किसी बच्चे की तरह उन्हें तैयार करती और जल्दी से जल्दी खिचड़ी बनाकर खिला देती ताकि रात भर के सोए बाल जगन्नाथ को सुबह-सुबह कुछ खाने को मिल जाए. लेकिन एक दिन क्या हुआ
नई दिल्लीः Jagannath Rath Yatra 2021: 12 जुलाई को होने वाली रथ यात्रा के लिए ओडिशा के जगन्नाथ पुरी धाम में तैयारियां जारी हैं. भक्ति भाव से भरे इस धार्मिक आयोजन के कई रोचक पहलू हैं जो देशभर में ही नहीं बल्कि विदेशों तक से लोगों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींच लाते हैं.
बीते दो सालों से Corona ने भले ही रथयात्रा ( Jagannath Rath Yatra 2021) में लोगों का पहुंचना मुश्किल कर दिया हो, लेकिन जगन्नाथ स्वामी की अनुकंपा की कथाएं तो नहीं रोकी जा सकती हैं.
किसी भी सीमा से परे हैं कथाएं
यह कथाएं किसी सीमा, किसी पाबंदी से परे हैं और भक्त-भगवान के मिलन का अचूक जरिया भी हैं. ऐसी ही एक कथा है जगन स्वामी की भक्त कर्माबाई की. कर्माबाई की कथा एक बार और इस तथ्य को स्थापित करती है कि भगवान भाव के भूखे हैं और उन्हें इससे अधिक कुछ भी प्यारा नहीं है. बाकी सब झूठ है.
कर्माबाई भगवान को लगाती थी भोग
बताते हैं कि बहुत पुराने समय में भक्तिन कर्माबाई बाल जगन्नाथ को अपना बेटा मानती और उनकी खूब सेवा करती थी. वह सुबह-सुबह ही किसी बच्चे की तरह उन्हें तैयार करती और जल्दी से जल्दी खिचड़ी बनाकर खिला देती ताकि रात भर के सोए बाल जगन्नाथ को सुबह-सुबह कुछ खाने को मिल जाए.
वह भूखे न रहें. इसलिए उसे अपने स्नान का भी ध्यान नहीं रहता था.
साधु ने कर्माबाई को बताई भोग की विधि
एक दिन कर्माबाई के यहां एक साधु भिक्षाटन करते पहुंचे. साधु ने देखा कि कर्माबाई ने बिना स्नान किए ही खिचड़ी बनाकर ठाकुर जी को भोग लगा दिया. साधु ने घोर अनर्थ कहते हुए भक्तिन को समझाया कि ठाकुर को भोग लगाने के कुछ नियम होते हैं. कम से कम स्नान तो कर ही लेना चाहिए.
बालभोग में लग गई देर
अगले दिन कर्माबाई ने साधु के बताए नियमों के अनुसार ठाकुर जी के लिए खिचड़ी बनाई. नियम, पूजा-पाठ, जाप आदि में दोपहर हो गई, इसके बाद उसने खिचड़ी बनाई. वह बहुत दु:खी हुई कि आज मेरा ठाकुर भूखा ही रह गया. ठाकुर जी जब उनकी खिचड़ी खा ही रहे थे कि मंदिर से भी उनके लिए 56 भोग का आह्वान आ गया.
मंदिर में जूठे मुंह ही पहुंच गए ठाकुर
कर्म और वचन में बंधे ठाकुर को मंदिर लौटना ही पड़ा, लेकिन इन चक्करों में उनके मुंह-होंठ पर खिचड़ी की जूठन लगी रह गई. पुजारियों ने देखा कि ठाकुर जी के मुंह पर खिचड़ी लगी हुई है, तब पूछने पर ठाकुर जी ने सारी कथा उन्हें बताई. जब यह बात साधु को पता चली तो वह बहुत पछताया और उसने कर्माबाई से क्षमायाचना करते हुए वह जैसे चाहे वैसे अपने बाल जगन्नाथ की सेवा करे.
भगवान तो केवल भावना देखते हैं. इसके बाद से पुरी में खिचड़ी का बालभोग लगाया जाने लगा. आज भी भक्त इसे कर्माबाई की खिचड़ी और जगन्नाथ का प्रसाद मानकर ग्रहण करते हैं.
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