Lal Kitab लाल किताब के अनुसार केतु को कान, रीढ़, पुत्र, पौत्र, नपुंसकता आदि का कारक मना जाता है. कुंडली का छठा घर केतु का पसंदीदा होता है औऱ वह इसी घर में विश्राम करता है. इस भाव में गुरु की युति के साथ केतु अत्यधिक प्रभावशाली होता है. जातक के पुत्र के लिए यह संबंध अत्यंत लाभकारी माना जाता है. इसके साथ ही केतु की यह स्थिति जातक को अच्छा सलाहकार बनाती है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

छठे भाव में केतु का अर्थ
केतु को सर्प की पूंछ माना जाता है और यह मूल रूप से काले और सफेद रंग का होता है. यह शुक्र और राहु के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध में रहता है. वहीं चंद्रमा और मंगल इसके प्रमुख शत्रु माने जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि जब तक घर में पलंग रहेगा तब तक केतु की नकारात्मकता कभी भी प्रबल नहीं होगी.


यदि छठे भाव में गुरु केतु के साथ हो तो जातक दीर्घायु होता है और उसकी माता अधिकांश समय सुखी रहती है. यदि मंगल और सूर्य जैसे अन्य ग्रह भी छठे भाव में उसके साथ हों तो केतु अत्यधिक सकारात्मक हो जाता है. जब छठे भाव में केतु का संबंध चंद्रमा से हो तो जातक की माता को बहुत कष्ट होने वाला होता है.


छठे भाव में स्थित केतु के उपाय
1. सोने की अंगूठी बाएं हाथ की अंगुली में धारण करना चाहिए.
2. दूध में केसर मिलाकर पीना चाहिए.
3. कान में सोना पहनना अत्यंत शुभ होता है.
4. पालतू जानवर की तरह कुत्ते को पालें.


(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले लें.)


यह भी पढ़िए- Vastu Shastra: भूलकर भी घर में इस जगह पर न रखें झाड़ू, शुरू हो जाएंगे बुरे दिन


Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.