नई दिल्लीः Navratri 2022: आज शारदीय नवरात्रि का पहला दिन है. इस दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. उनकी आराधना से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है. मां शैलपुत्री को माता पार्वती का स्वरूप माना जाता है. इस दिन मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना कर व्रत रखने से भक्तों को मनोवांछित फल मिलता है. सभी कष्टों का निवारण होता है. माता शैलपुत्री का जन्म शैल या पत्थर से हुआ इसलिए उनकी पूजा से जीवन में स्थिरता आती है. मां को वृषारूढ़ा, उमा नाम से भी जाना जाता है. उपनिषदों में मां को हेमवती भी कहा गया है.


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शारदीय नवरात्रि 2022
नवरात्रि - दिन  1 -  प्रतिपदा
मां शैलपुत्री पूजा -  घटस्थापना


नवरात्र में घटस्थापना और कलश स्थापना का विशेष महत्व है. घटस्थापना के दिन से नवरात्रि का प्रारंभ माना जाता है. नवरात्र में प्रतिपदा अथवा प्रथमा तिथि को शुभ मुहुर्त में घट स्थापना पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है. शास्त्रों के अनुसार, कलश को भगवान गणेश की संज्ञा दी गई है और किसी पूजा के लिए सर्वप्रथम गणेश जी की वंदना की जाती है.


घटस्थापना के नियम
- दिन के एक तिहाई हिस्से से पहले घटस्थापना की प्रक्रिया संपन्न कर लेनी चाहिए.
- इसके अलावा कलश स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त को सबसे उत्तम माना गया है.
- घटस्थापना के लिए शुभ नक्षत्र - पुष्या, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, हस्ता, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और पुनर्वसु


घटस्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
- सप्त धान्य (7 तरह के अनाज)
- मिट्टी का एक बर्तन जिसका मुंह चौड़ा हो
- पवित्र स्थान से लाई गई मिट्टी
- कलश, गंगाजल (उपलब्ध न हो तो सादा जल)
- पत्ते (आम या अशोक के)
- सुपारी
- जटा वाला नारियल
- अक्षत (साबुत चावल)
- लाल वस्त्र
- पुष्प (फूल)


घटस्थापना विधि
- सर्वप्रथम मिट्टी के बर्तन में रख कर सप्त धान्य को उसमे रखें.
- अब एक कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग (गर्दन) में कलावा बांधकर उसे उस मिट्टी के पात्र पर रखें.
- अब कलश के ऊपर अशोक अथवा आम के पत्ते रखें.
- अब नारियल में कलावा लपेट लें.
- इसके बाद नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर और पल्लव के बीच में रखें.
- घटस्थापना पूर्ण होने के बाद देवी का आह्वान किया जाता है.


पूजा संकल्प मंत्र
ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्राह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुकनामसम्वत्सरे
आश्विनशुक्लप्रतिपदे अमुकवासरे प्रारभमाणे नवरात्रपर्वणि एतासु नवतिथिषु
अखिलपापक्षयपूर्वक-श्रुति-स्मृत्युक्त-पुण्यसमवेत-सर्वसुखोपलब्धये संयमादिनियमान् दृढ़ं पालयन् अमुकगोत्रः
अमुकनामाहं भगवत्याः दुर्गायाः प्रसादाय व्रतं विधास्ये.


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