नई दिल्ली: Navratri 2022: नवरात्रि कोई नव दुर्गा की नौ शक्तियों का कोई रूप नहीं हैं बल्कि हमारे आयुर्वेद के ज्ञाता ऋषि मुनियों ने कुछ औषधियों को इस ऋतु में विशेष सेवन हेतु बताया था.जिससे प्रत्येक दिन हम सभी उसका सेवन कर शक्ति के रूप में शारीरिक व मानसिक क्षमता को बढ़ाकर हम शक्तिवान, ऊर्जावान बलवान व विद्वान बन सकें. नौ तरह की वह दिव्यगुणयुक्त महा औषधियां निस्संदेह बहुत ही प्रभावशाली व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के साथ साथ हम ताउम्र बदलते मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी स्वयं को ढालने में सक्षम हो और निरोगी बन दीर्घायु प्राप्त करे


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

1. प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़ 
कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है.


2.द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानि ब्राह्मी
 यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर करने वाली है. इसलिए ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है.यह मन व मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है. यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है.


3. तृतीय चंद्रघंटा यानि चन्दुसूर 
चंद्रघंटा, इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है. यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है. इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है. यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं. शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है.


4. चतुर्थ कुष्माण्डा यानि पेठा
इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं. इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है. मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है. यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है. कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है.


5. पंचम स्कंदमाता यानि अलसी 
यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं. यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है. अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा.अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:..उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी.


6.  षष्ठम कात्यायनी यानि मोइया 
इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका. इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं. यह कफ, पित्त, अधिक विकार व कंठ के रोग का नाश करती है.


7. सप्तम कालरात्रि यानि नागदौन 
यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है. सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है/ यह सुख देने वाली और सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है.


8.  तुलसी
तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र. ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है व हृदय रोग का नाश करती है. तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी.अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि: तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् . मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:.


9. नवम शतावरी
जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं. शतावरी बुद्धि बल व वीर्य के लिए उत्तम औषधि है. यह रक्त विकार औरं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है. सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है. उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं.


इस आयुर्वेद की भाषा में नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित व साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करतीं है. अत: मनुष्य को इन औषधियों का प्रयोग करना चाहिए .


Disclaimer: इस लेख के द्वारा आप तक जानकारी लाने का प्रयास किया है, लेकिन फिर भी किसी भी होम रेमेडी, हैक या फिटनेस टिप को ट्राई करने से पहले आप अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें.  यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Hindustan इसकी पुष्टि नहीं करता है.


इसे भी पढ़ेंः Navratri 2022: नवरात्रि में जौ बोना क्यों शुभ माना जाता है, जानिए महत्व और कारण


Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.