नई दिल्ली: रक्षाबंधन का पर्व जहां भाई-बहन के रिश्तों का अटूट बंधन और स्नेह का विशेष अवसर माना जाता है. रक्षाबंधन एक भारतीय त्यौहार है, जो श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. सावन में मनाए जाने के कारण इसे सावनी या सलूनो भी कहते हैं.


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बेटियां भी बांधती है पिता को राखी


राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चांदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है.


राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं परंतु ब्राहमणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित संबंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बांधी जाती है.


राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता. लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन है कि देव और दानवों में जब युध्द शुरू हुआ तब दानव हावी होते नजर आने लगे.


भगवान इंद्र के किसने बांधा था धागा


भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये. वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी. उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर के अपने पति के हाथ पर बांध दिया. वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था.


लोगों का विश्वास है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजयी हुए थे. उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है. यह धागा धन,शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है.


स्कन्ध पुराण में भी है रक्षाबंधन को जिक्र


स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है. कथा कुछ इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थ्रना की. तब भगवान ने वामन अबतार लेकर ब्राम्हण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे. गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी.


भगवान ने तीन पग में सारा अकाष पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया. इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकानाचूर कर देने के कारण यह त्योहार \'बलेव\' नाम से भी प्रसिद्ध है. कहते हैं कि जब बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया. भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया.


उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान बलि को अपने साथ ले आयीं. उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी. विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भागवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिए फिर से प्राप्त किया था. हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है.


रक्षाबंधन में अवश्य करें ये उपाय, होगा लाभ


1. भाई-बहन साथ जाकर गरीबों को धन या भोजन का दान करें.
2. गाय आदि को चारा खिलाना, चींटियों आदि को दाना खिलाना चाहिए. इस दिन बछड़े के साथ गोदान का बहुत महत्व है.
3. ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान दें और भोजन कराएं.
4. अगर कोई व्यक्ति पूरे माह शिव उपासना से वंचित रहा है तो अंतिम दिन शिव पूजा और जल अभिषेक से भी वह पूरे माह की शिव भक्ति का पुण्य और सभी भौतिक सुख पा सकता है.
5 . राखी बांधते समय बहनें निम्न मंत्र का उच्चारण करें, इससे भाईयों की आयु में वृ्द्धि होती है.


“येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: I तेन त्वांमनुबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल I “


राखी बांधते समय उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करना विशेष शुभ माना जाता है. इस मंत्र में कहा गया है कि जिस रक्षा डोर से महान शक्तिशाली दानव के राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से में तुम्हें बांधती हूं यह डोर तुम्हारी रक्षा करेगी.


बहनें कैसे लगाएं तिलक


तिलक नीचे से ऊपर की तरफ लगाएं.
तर्जनी से तिलक न करें.
नाखून को शारीर पर स्पर्श न करें.
तिलक हमेशा बैठकर करें.
मांगलिक कार्य में सफेद तिलक लगाने से बचें.
रोली, सिंदूर, चन्दन, जल, भस्म, हल्दी से.
सिर्फ अनामिका से ही तिलक करें.
अनामिका और अंगूठे से पकडकर अक्षत चढ़ाएं.


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