महाराष्ट्र की राजनीति के नए डार्कहॉर्स `अजित पवार` क्यों भड़के शरद पवार से ?
महाराष्ट्र में हाई वोल्टेज ड्रामे का अंत हो गया है. देवेंद्र फणडवीस मुख्यमंत्री और अजित पवार नए उपमुख्यमंत्री के साथ. लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि अजित पवार एनसीपी प्रमुख शरद पवार के फैसले के खिलाफ क्यों चले गए. सुप्रीया सुले नाम का डर कहीं अजित पवार को सताने तो नहीं लगा था.
मुबंई: महाराष्ट्र में सरकार बनाने की कवायद अब खत्म हो गई है. एक नाटकीय रूप से भाजपा-एनसीपी की सरकार बन गई है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री अजित पवार के साथ. 23 नवंबर की यह सुबह शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस कभी नहीं भूल पाएगी. उधर शरद पवार, उद्धव ठाकरे और सोनिया गांधी में बातचीत चलते रही और इधर एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने पासा ही पलट दिया. महाराष्ट्र की पूरी राजनीति में बवंडर ला देने वाले अजित पवार ने किसी डार्कहॉर्स की तरह एनसीपी के 22 विधायकों के साथ भाजपा को समर्थन दे सरकार बनाने का रास्ता तय कर दिया. लेकिन सवाल यह उठता है कि शरद पवार के खिलाफ जा कर अजित पवार ने शिवसेना की बजाए भाजपा को समर्थन देने की रणनीति क्यों बनाई ?
महिला उपमुख्यमंत्री के सपनों पर फिरा पानी
राजनीतिक हलकों से मिल रही खबर के मुताबिक शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन में मुख्यमंत्री पद पर तो उद्धव ठाकरे का नाम तय हो गया था लेकिन एनसीपी की ओर से शरद पवार ने अपने भतीजे अजित पवार के नाम के बदले सुप्रीया सुले का नाम प्रस्तावित किया था. सुप्रीया सुले एनसीपी प्रमुख शरद पवार की बेटी हैं जबकि भतीजे अजित पवार उनके राजनीतिक वारिस माने जाते थे. अजित पवार के नाम पर सहमति पार्टियों में तो थी लेकिन शरद पवार चाहते थे कि राज्य में कोई महिला उपमुख्यमंत्री हो. इस बाबत सुप्रीया सुले को राजनीति में ढ़लने का भी अच्छा मौका मिल जाता. लेकिन 1991-92 से ही एनसीपी प्रमुख शरद पवार के संग रहने और राजनीति सीखने वाले अजित पवार खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगे थे. ऐसे में उन्होंने पार्टी लाइन से इतर जा कर भाजपा को समर्थन दे दिया.
सुप्रीया सुले के राजनीतिक वारिस बनाए जाने से उखड़े अजित
यहीं नहीं पवार परिवार में राजनीतिक वारिस को लेकर भी हल्की-फुल्की रार नजर आने लगी थी. दरअसल, शरद पवार की बेटी सुप्रीया सुले ने राजनीति में एंट्री 2009 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के साथ ली. तभी से ऐसा माना जाता है कि एनसीपी प्रमुख अजित पवार की जगह सुप्रीया सुले को ज्यादा तवज्जो देने लगे थे. अजित पवार का पार्टी के ऊपर प्रभाव भी सीमित होने लगा था. ऐसे में एनसीपी की बागडोर के हाथ से छूट जाने का डर अजित पवार को सताता ही रहा और न चाहते हुए भी वे सुप्रीया सुले को अपना राजनीतिक प्रतिद्वंदी समझने लगे. ऐसे में जब महाराष्ट्र में खिचड़ी गठबंधन की सरकार बनने ही वाली थी और उसके लिए सुप्रीया सुले का नाम आगे आया तो बाजी पलटी अजित पवार ने और एनडीए के साथ आ खड़े हुए.
अब कुछ यूं हैं समीकरण
हालांकि, आहत हुए शरद पवार ने ट्वीट कर अपना पक्ष भी रखा. उन्होंने कहा कि यह अजित का अपना निजी फैसला है, वह इसके पक्ष में नहीं हैं. अब मामला यहां आ पहुंचा है कि एनसीपी सुप्रीमो के पास 32 विधायक तो अजित पवार के पास 22 विधायकों का समर्थन है. भाजपा के पास पहले से 105 सीटें थी. उसे 15 और सीटों का समर्थन चाहिए था महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए. अजित पवार के साथ 22 विधायकों का समर्थन और कुछ निर्दलीय विधायकों का साथ पा कर देवेंद्र फडणवीस अपनी दूसरी पारी खेलने को तैयार हैं.