`मिशन दक्षिण` पर BJP
लोकसभा चुनाव के बाद से ही BJP ने तेलंगाना में पैर जमाना शुरू कर दिया था, उसकी नजर विपक्ष की खाली कुर्सी भरने की थी, इसी वजह से उसने इस चुनाव को प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दी, बिहार चुनाव में जीत के बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ओवैसी के किले को तोड़ने के लिए हर वो रणनीति अपनाई जिसकी जरूरत थी.
नई दिल्लीः हैदराबाद निगम चुनाव के जरिए BJP दक्षिण विजय पर निकल चुकी है. कर्नाटक के बाद अब उसका मिशन तेलंगाना-आंध्रप्रदेश, केरल और तमिलनाडु है. ग्रेटर हैदराबाद निगम चुनाव में 49 सीटें जीतकर BJP ने तेलंगाना में बड़ी सेंध लगा दी है. हैदराबाद में बीजेपी की एंट्री से ओवैसी तिलमिलाए हुए हैं उनके मजबूत गढ़ में भगवा झंडा लहरा गया है हालांकि ओवैसी दावा कर रहे हैं कि वो 51 सीट पर लड़े और 44 में जीत दर्ज की. आइए आपको बताते हैं कि BJP की इस विजय के मायने क्या हैं.
GHMC का चुनाव क्यों अहम
सवाल ये है कि आखिर हैदराबाद निगम चुनाव BJP के लिए इतना अहम क्यों हो गया....उसने राष्ट्रीय नेताओं की इतनी बड़ी फौज चुनाव प्रचार में क्यों उतारी, दरअसल इस चुनाव के लिए BJP अपनी तैयारी का लिटमस टेस्ट करना चाह रही थी.
लोकसभा चुनाव के बाद से ही BJP ने तेलंगाना में पैर जमाना शुरू कर दिया था, उसकी नजर विपक्ष की खाली कुर्सी भरने की थी, इसी वजह से उसने इस चुनाव को प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दी, बिहार चुनाव में जीत के बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ओवैसी के किले को तोड़ने के लिए हर वो रणनीति अपनाई जिसकी जरूरत थी.
'भाग्यनगर' में 'भगवा-उदय'!
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम सुनने में तो लोकल बॉली इलेक्शन लगता है लेकिन वो देश के सबसे बड़े नगर निगमों मे से एक है,
ये नगर निगम 4 जिलों हैदराबाद, मेडचल-मलकाजगिरी, रंगारेड्डी और संगारेड्डी में फैला हुआ है पूरे इलाके में 24 विधानसभा सीटें हैं जबकि तेलंगाना की 5 लोकसभा सीटें इसके तहत आती हैं.
तेलंगाना में विधानसभा की कुल 119 सीटें हैं, 2018 के चुनाव में टीआरएस को 88 सीटें, कांग्रेस को 21 सीटें, AIMIM को 7 सीटें, बीजेपी को सिर्फ 1 सीट और अन्य के खाते में 2 सीटें मिली थीं.
यानी 2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में तो बीजेपी औंधे मुंह गिरी थी लेकिन उसकी समझ में ये आ गया था कि हैदराबाद का मैदान उसके लिए मुफीद है...क्योंकि यहां कांग्रेस और टीडीपी बेदम हो चुकी है. AIMIM सिर्फ हैदराबाद तक ही सीमित है...और उसकी भड़काऊ राजनीति से जनता उकता चुकी है.
कांग्रेस-टीडीपी तेलंगाना से साफ
साल 2014 में जब तेलंगाना का गठन हुआ था, तब कांग्रेस को उम्मीद थी कि लंबे समय से चली आ रही अलग राज्य की मांग पूरी करने के लिए उसे लोगों का भारी समर्थन मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ. टीआरएस ने 2014 और 2018 का चुनाव भारी बहुमत से जीत लिया और कांग्रेस का पतन होता चला गया. बीजेपी हर चुनाव को अहम मानती है इस चुनाव में मिली जीत के जरिए वो साउथ में अपना अधूरा मिशन पूरा करने में जुट गई है.
बीजेपी के पास मिशन दक्षिण का मौका
पिछले कई साल से बीजेपी दक्षिण में अपनी पैठ बनाने के लिए संघर्ष कर रही है, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उसका प्रभाव सीमित है, लोकसभा चुनाव में तो उसने अन्य दलों के साथ गठबंधन कर कुछ सीटें जीतीं थी लेकिन अपने दम पर ज्यादा कुछ नहीं कर पाई,
हालांकि लोकसभा चुनाव में तेलंगाना में बीजेपी का वोट प्रतिशत 7 फीसदी से बढ़कर 20 फीसदी हो गया और उसने 4 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि विधानसभा में उसे सिर्फ 1 सीट पर संतोष करना पड़ा था, इसी वोटबैंक के दम पर बीजेपी तेलंगना फतह पर निकली और पहले टेस्ट में वो शानदार नंबर से पास हो चुकी है, नगर निगम चुनाव में जीत के बाद उसकी नजर अब विधानसभा चुनाव पर है.
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