नई दिल्ली: कर्नाटक में 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार सोमवार शाम थम गया. इस बार के चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता बरकरार रखने के लिए तो वहीं कांग्रेस उसे पटखनी देने के लिए जोर आजमाइश कर रही है. राज्य की तीसरी सबसे बड़ी ताकत जनता दल (सेक्युलर) ने भी मतदाताओं को रिझाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी. जोर-शोर से चले प्रचार अभियान में नेताओं के एक-दूसरे पर निजी हमले करने के मामले भी सामने आए. सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के शीर्ष नेता पिछले कुछ दिन से पूरे राज्य में प्रचार अभियान में जुटे हुए थे.


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सत्ता के लिए बीजेपी और कांग्रेस में कांटे की टक्कर
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में क्रमिक रूप से बदलाव की 38 साल पुरानी परंपरा को तोड़ने और दक्षिण भारत में अपने गढ़ को बचाने की कोशिश में जुटी है. भाजपा से सत्ता छीनने के लिए कांग्रेस कड़ी मेहनत कर रही है और 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए मुख्य विपक्षी दल के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास कर रही है. पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल (सेक्युलर) को चुनाव प्रचार में अपनी पूरी शक्ति झोंकते देखा गया और वह (जद-एस) चुनावों में ‘किंगमेकर’ नहीं, बल्कि विजेता बन कर उभरना चाहता है.


224 सदस्यीय कर्नाटक विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने लोगों से चुनाव में बहुमत देने की अपील की ताकि उनकी पार्टी एक मजबूत और स्थिर सरकार बना सके. भाजपा का प्रचार अभियान मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, डबल इंजन सरकार, राष्ट्रीय मुद्दों और कार्यक्रमों या केंद्र सरकार की उपलब्धियों के इर्द-गिर्द घूमता रहा. भाजपा के प्रचार अभियान में राज्य सरकार की उपलब्धियों का ज्यादा प्रचार नहीं किया गया.


चुनाव में बजरंग दल के मुद्दे पर खूब हुई सियासत
भाजपा ने कहा कि कर्नाटक में एक बार फिर उसकी सरकार बननी चाहिए ताकि वह केंद्र सरकार के साथ मिलकर राज्य में विकास कार्यों को आगे बढ़ा सके. पार्टी और उसके नेताओं ने ओबीसी के तहत मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण खत्म करने के कर्नाटक सरकार के फैसले का बचाव करने की कोशिश की, और सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों का नकारने के प्रयास भी किए. भाजपा और उसके नेताओं विशेष रूप से प्रधानमंत्री ने 'जहरीले सांप' जैसे विपक्षी दलों के बयानों को चुनाव प्रचार में मुद्दा बनाया. मोदी और भाजपा मशीनरी ने दक्षिणपंथी संगठन बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के कांग्रेस को प्रस्ताव को 'बजरंगबली विरोधी' और 'हिंदू विरोधी' बताया.


कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान भ्रष्टाचार/घोटाले, 40 प्रतिशत कमीशन के आरोप, और अडाणी प्रकरण को मुद्दा बनाया. कांग्रेस ने अपनी पांच प्रमुख चुनावी 'गारंटियों' का प्रचार किया. साथ ही भाजपा पर आरोप लगाया कि वह 2018 के घोषणापत्र में किए गए '90 प्रतिशत वादों को पूरा करने में विफल' रही. एक समय में जब ऐसा लग रहा था कि सब कुछ ठीक चल रहा है, तो कांग्रेस सिद्धरमैया के इस बयान से विवादों में घिर गई कि 'पहले से ही एक लिंगायत मुख्यमंत्री है, जो सबसे भ्रष्ट है.'


भाजपा ने सिद्धरमैया के इस बयान को पूरे लिंगायत समुदाय का 'अपमान' बताया. इसके अलावा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना 'एक जहरीले सांप' से की और फिर उनके बेटे तथा चित्तपुर के विधायक प्रियंक खड़गे ने मोदी को 'नालायक बेटा' कहा, जिसपर भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया दी. इससे पहले, कांग्रेस ने आम तौर पर स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया और शुरुआत में पार्टी के प्रचार अभियान की कमान भी स्थानीय नेताओं के हाथों में रही. हालांकि, बाद में पार्टी के केंद्रीय नेताओं जैसे एआईसीसी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाद्रा ने जोर-शोर से प्रचार किया. जद (एस) का जोर भी स्थानीय मुद्दों पर रहा.


जद (एस) ने भी चलाया एक अत्यधिक स्थानीय अभियान
पार्टी का नेतृत्व केवल उसके नेता एच. डी. कुमारस्वामी ने किया. बाद में पार्टी संरक्षक देवेगौड़ा बढ़ती उम्र और बीमारियों के बावजूद प्रचार में शामिल हुए. जद (एस) ने भी एक अत्यधिक स्थानीय अभियान चलाया, जिसका नेतृत्व केवल उसके नेता एच डी कुमारस्वामी ने किया, जिसमें पार्टी संरक्षक देवेगौड़ा भी अपनी उन्नत उम्र और संबंधित बीमारियों के बावजूद बाद में शामिल हुए. मोदी ने 29 अप्रैल से अब तक करीब 18 जनसभाएं और छह रोड शो किये हैं.


चुनाव कार्यक्रम की 29 मार्च को घोषणा होने से पहले मोदी ने जनवरी से तब तक सात बार राज्य का दौरा किया था और विभिन्न सरकारी योजनाओं एवं परियोजनाओं का लोकार्पण व शिलान्यास किया. साथ ही, सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों के साथ हुई कई बैठकों को संबोधित किया. भाजपा नेताओं के मुताबिक, मोदी के पूरे प्रदेश के दौरे ने पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया है और मतदाताओं में विश्वास भरा है. पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा सहित पार्टी के अन्य नेताओं के तूफानी चुनाव प्रचार का उसे लाभ मिलेगा. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री और शाह ने मतदान से पहले कांग्रेस को पीछे धकेल दिया है.’’


बीजेपी के इन मंत्रियों ने चुनाव में झोंकी ताकत
उक्त नेताओं के अलावा भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, हिमंत विश्व शर्मा, शिवराज सिंह चौहान, प्रमोद सावंत तथा केंद्रीय मंत्रियों--निर्मला सीतारमण, एस जयशंकर, स्मृति ईरानी, नितिन गडकरी-- सहित अन्य ने भी प्रचार करने के लिए राज्य के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया है. भाजपा को 2008 और 2018 के विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद राज्य में अपने बूते सरकार बनाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा था.


हालांकि, इस बार पार्टी स्पष्ट जनादेश की उम्मीद कर रही है. पार्टी ने कम से कम 150 सीट पर जीत हासिल करने का लक्ष्य रखा है. कांग्रेस की ओर से शुरूआत में चुनाव प्रचार प्रदेश के नेता सिद्धरमैया और डी के शिवकुमार के इर्द-गिर्द केंद्रित था, खड़गे ने इसे गति दी और पार्टी के शीर्ष नेताओं राहुल तथा प्रियंका के इसमें शामिल होने से तैयारियों को मजबूती मिली. चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में पहुंचने पर कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शनिवार को हुब्बली में पार्टी की एक जनसभा को संबोधित किया. यह चुनाव कांग्रेस अध्यक्ष के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई भी है, क्योंकि खड़गे स्वयं राज्य के कलबुर्गी जिले के रहने वाले हैं. कांग्रेस पार्टी ने भी 150 सीट पर जीत का लक्ष्य रखा है.
(इनपुट- भाषा)


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