नई दिल्ली: Congress in Maharashtra Election 2024: एक कहावत है- दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है. कांग्रेस 'ओवर कॉन्फिडेंस' के कारण हरियाणा का जीता-जिताया विधानसभा चुनाव हार गई. अब महाराष्ट्र में 20 नवंबर को मतदान होना है. पार्टी इस बार ऐसी कोई गलती नहीं करना चाहती, जिसके कारण सियासी पिच पर बोल्ड हो जाए. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस ने हरियाणा की हार से सबक लेते हुए अपनी रणनीति में कई बदलाव किए हैं. AICC की मीटिंग में इन बदलावों पर चर्चा की गई है.


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कांग्रेस ने रणनीति में किए ये 5 बड़े बदलाव
टिकट वितरण: इस बार कांग्रेस पार्टी सर्वे और जिताऊ कैंडिडेट को टिकट थमाएगी. टॉप लीडर्स के कहने पर या उनकी पैरवी पर किसी को टिकट नहीं दिया जाएगा. हरियाणा में पार्टी ने क्षत्रिय क्षत्रप जैसे भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सिंह सुरजेवाला के कहने पर टिकट दिए. इससे गुटबाजी बढ़ी और जिताऊ उम्मीदवारों की अनदेखी हुई


पॉवर सेंटर नहीं: हरियाणा में कांग्रेस ने पूर्व CM भूपेंद्र हुड्डा को पॉवर सेंटर बना दिया था. उनके कहने से न सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति हुई, बल्कि कांग्रेस ने करीब 72 टिकट हुड्डा के समर्थकों को दिए. महाराष्ट्र में पार्टी किसी एक व्यक्ति को शक्ति का केंद्र नहीं बनने देगी. 


सीनियर नेताओं की नियुक्ति: कांग्रेस पार्टी ने महाराष्ट्र के अलग-अलग क्षेत्रों में 11 सीनियर नेताओं को ऑब्जर्वर नियुक्त किया है. ये वहां की जिम्मेदारी संभालेंगे. पार्टी की टिकट न मिलने से खफा होने वाले बागियों को मनाने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की होगी. जबकि हरियाणा में कांग्रेस ने अति आत्मविश्वास दिखाया. सूत्रों का दावा है कि जिन नेताओं को टिकट नहीं मिला, उनसे पार्टी ने संपर्क भी नहीं साधा.


अहम घोषणाएं: हरियाणा में कांग्रेस नेगेटिव वोटिंग के भरोसे थी. पार्टी को लगा कि भाजपा से नाराज वोटर उन्हें वोट दे देगा, इसलिए बार-बार भाजपा की विफलताएं गिनाई गई. खुद के घोषणा पत्र में किए गए वादों पर फोकस कम रहा. कांग्रेस का कैंपेन भी नेगेटिव रहा. लेकिन महाराष्ट्र में कांग्रेस 5 गारंटियों पर विचार कर रही है. जैसे डायरेक्ट मनी ट्रांसफर, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, 10 किलो मुफ्त अनाज, सस्ती बिजली और बेरोजगारी भत्ता. घोषणा पत्र के वादों को अंतिम पंक्ति के वोटर तक पहुंचाने की रणनीति बनाई गई है.


एक जाति पर फोकस नहीं: हरियाणा में कांग्रेस ने जाट जाति पर अधिक फोकस किया. इसका सीधा फायदा भाजपा को हुआ, चुनाव 'जाट बनाम गैर जाट' हो गया. दलित और ओबीसी वोटर्स भाजपा के पक्ष में वोट कर गए. लेकिन महाराष्ट्र में पार्टी सभी जातियों पर दांव खेलेगी, खासकर OBC और दलित जातियों के इर्द-गिर्द चुनावी बिसात बिछाई जाएगी. जातिगत जनगणना का मुद्दा भी प्रभावी तौर पर प्रचारित किया जाएगा.


पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये
हरियाणा में कांग्रेस ने सहयोगियों जैसे- AAP और सपा को मैनेज नहीं किया. पार्टी गठबंधन न करके अकेले चुनावी में समर में उतरी. लेकिन हरियाणा में महाविकास अघाड़ी गठबंधन है जिसमें कांग्रेस के साथ शिवसेना (उद्धव) और NCP (शरद पंवार) है. सहयोगियों को साथ लेकर चलना और इनसे तालमेल बैठाना बड़ी चुनौती होगी. सबसे पहले तो सभी दलों का सीट शेयरिंग पर एकमत होना जरूरी है.


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