बेटे को खोकर पूरी तरह टूट गई थीं द्रौपदी मुर्मू! हार नहीं मानी, हर जंग में मिली जीत
राष्ट्रपति पद की कुर्सी तक पहुंचने के लिए द्रौपदी मुर्मू का सफर आसान नहीं रहा है. उनकी जिंदगी कई सारे ऐसे हादसे हुए हैं, जिससे वो पूरी तरह टूट गईं. हालांकि उन्होंने कभी हार नहीं माना और यही वजह है कि चुनौतियों को चुनौती देने वाली द्रौपदी मुर्मू का सफर बेहद रोचक है.
नई दिल्ली: द्रौपदी मुर्मू किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनका अब तक का सफर कैसा रहा है? क्या उनके जीवन में कभी ऐसा भी वक्त आया, जब वो पूरी तरह टूट गई थी. तो आपको द्रौपदी मुर्मू से सियासी सफर में बाधा बनने वाले सबसे बड़े हादसे के बारे में बताते हैं.
द्रौपदी मुर्मू की जिंदगी की सबसे बड़ी चुनौती!
वैसे तो हर व्यक्ति की जिंदगी में अपनी-अपनी परेशानियां होती हैं, लेकिन इन सबके बीच द्रौपदी मुर्मू के सामने भी एक ऐसी चुनौती आई, जब को पूरी तरह टूट गईं. चुनौतियों ने कई दफा उनकी परीक्षा ली, लेकिन उनके निजी जीवन में बार-बार हादसे होते रहे. एक वक्त ऐसा आ गया जह मुर्मू डिप्रेशन की जद में आ गई थी.
वो वक्त था, साल 2009 जब द्रौपदी मुर्मू को सबसे बड़ा झटका लगा. उनके बड़े बेटे की एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई. उस दौरान उनके बेटे की उम्र केवल 25 वर्ष थी. ये सदमा झेलना उनके लिए बेहद मुश्किल हो गया. इसके बाद वर्ष 2013 में उनके दूसरे बेटे की भी मृत्यु हो गई, फिर 2014 में उनके पति का भी देहांत हो गया.
मुर्मू के लिए खुद को संभाल पाना बेहद मुश्किल हो गया था. वो मेडिटेशन करने लगी. 2009 से ही मेडिटेशन के अलग अलग तरीके अपनाए. लगातार माउंट आबू स्थित ब्रहमकुमारी संस्थान जाती रही.
द्रौपदी मुर्मू के सियासी सफर पर एक नजर
NDA ने काफी मंथन के बाद द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया. आपको उनके सफर के बारे में बताते हैं.
20 जून, 1958
ओडिशा के मयूरभंज में जन्म हुआ
वर्ष 1997
रायरंगपुर नगर पंचायत की पार्षद चुनी गईं
वर्ष 2000
ओडिशा के रायरंगपुर से विधायक बनीं
वर्ष 2000
ओडिशा सरकार में परिवहन, वाणिज्य मंत्री बनीं
वर्ष 2013
BJP एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य चुना गया
वर्ष 2015
झारखंड की 9वीं राज्यपाल नियुक्त की गईं
संथाल आदिवासी तबके से राष्ट्रपति के पद तक का सफर तय करने वाली वे अकेली महिला हैं. उनका नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो रहा है और इसके लिए सबसे बड़ी मददगार उनकी हार न मानने वाली प्रवृत्ति ही है.ट
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