नई दिल्ली: आगामी विधानसभा चुनाव में कर्नाटक की कुर्सी पर किसका कब्जा होगा? इस सवाल का जवाब जानने के लिए फिलहाल इंतजार करना होगा, लेकिन कांग्रेस के लिए ये चुनाव कमबैक करने का सबसे खास मौका है. इन दिनों कांग्रेस के सियासी गुणा-गणित से ये समझा जा सकता है कि पार्टी के दिग्गज नेताओं ने ये भाप लिया है कि कर्नाटक में जीत के बाद वो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव में अपना दमखम बेहतर तरीके से दिखा सकेंगे. ऐसे में कर्नाटक विधानसभा चुनाव की अहमियत कांग्रेस समझ रही है. आपको उन 5 सॉलिड फैक्टर के बारे में बताते और समझाते हैं, जिससे कांग्रेस के जीत के आसार ज्यादा दिखा रहे हैं.


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वैसे कई राजनीतिक दिग्गजों का मानना है कि इस बार भी कर्नाटक में त्रिकोणीय मुकाबला देखा जाएगा. बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस तीनों की राह आसान नहीं रहेगी, लेकिन इनमें कांग्रेस को इस चुनाव से ज्यादा उम्मीदें हैं. आपको एक-एक कर उन 5 वजह के बारे में बताते हैं, जिससे फिलहाल की स्थिति में कांग्रेस का पलड़ा ज्यादा भारी लग रहा है.


1). मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना
कांग्रेस पार्टी के सिपहसलारों और दिग्गज नेताओं ने अक्टूबर माह में ही कर्नाटक चुनाव को लेकर सबसे बड़ा हथौड़ा मार दिया था. शशि थरूर बनाम मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर जंग चल रही थी. एक तरफ केरल केरल के तिरुवनन्तपुरम से सांसद थरूर थे, तो दूसरी तरफ कर्नाटक के बीदर जिले में जन्मे और राज्यसभा में विपक्ष के नेता खड़गे थे.


शशि थरूर बनाम मल्लिकार्जुन खड़गे के इस चुनाव में कई सारे विवाद भी सामने आए. शशि थरूर ने कई गंभीर आरोप लगाए. चुनाव हुए और नतीजे सामने आए, तो शशि थरूर दूर-दूर तक कहीं नहीं थे. मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस जीत के बाद कांग्रेस की बागडोर संभाली. ऐसे में उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद ये चुनाव उनके लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है, क्योंकि अपने घर में हारना सबसे ज्यादा परेशान करता है. कांग्रेस ने कर्नाटक के नेता को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है, ऐसे में इसका लाभ आगामी चुनाव में कहीं न कहीं मिल सकता है.


2). बीजेपी के खिलाफ राज्य में एंटी इनकम्बेंसी का माहौल
बीजेपी ने किस स्थिति में और कितनी जोड़-तोड़ के बाद कर्नाटक में सरकार बनाई ये सभी ने देखा. पहले येदियुरप्पा का 2018 में शपथ ले लेना और फिर उसके बाद इस्तीफा देना, ये सारा सियासी ड्रामा चलता रहा और सियासी गुणा-गणित से बीजेपी की कोशिश कामयाब हो गई. मगर इस बार अब तक का आंकलन कह रहा है कि कर्नाटक में बीजेपी के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी का माहौल कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकती है.


अब कांग्रेस की कोशिशों से ये समझा भी जा सकता है कि कांग्रेस कर्नाटक को जरा भी हल्के में लेने के मूड में नहीं है. उसे पूरी उम्मीद है कि कर्नाटक के रण में इस बार उसकी ही विजय होगी, लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ा फैक्टर एंटी इनकम्बेंसी का है. अगर कांग्रेस इस चुनाव में इसका फायदा भी उठाने में कामयाब हो गई तो, उसकी वापसी के रास्ते और मजबूत हो जाएंगे.


3). भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी की कर्नाटक में कोशिशें
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने कर्नाटक में काफी लंबा समय बिताया. कहीं न कहीं उन्होंने ये संकेत देने की कोशिश की, पार्टी का अध्यक्ष कर्नाटक से है और भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कर्नाटक को तवज्जो दी जा रही है. राहुल ने जिस तरह से दक्षिण में यात्रा के जरिए लोगों से जुड़ने की कोशिश की, वो कांग्रेस पार्टी के लिए कर्नाटक में संजीवनी साबित हो सकती है.


कांग्रेस के पास कर्नाटक में बेहतर मौका है. बीजेपी को इस बात का अंदाजा है कि कर्नाटक का चुनाव आसान नहीं होगा. अभी से ही कई मंत्रियों और प्रधानमंत्री मोदी का कई चक्कर कर्नाटक दौरा हो चुका है. कांग्रेस को ये समझने में देर नहीं करनी चाहिए कि राहुल गांधी ने जिस तरह भारत जोड़ो यात्रा के जरिए लोगों से जुड़ाव बढ़ाया, उसी तरह अभी से ही कर्नाटक में कांग्रेस के दिग्गजों की टीम मैदान पर चुनाव तक के लिए उतर जानी चाहिए. कर्नाटक में इसी साल मई से पहले विधानसभा चुनाव होना है.


4). बीजेपी में अंदरूनी कलह चुनाव के दौरान आ सकती है सामने
किसी भी पार्टी में अंदरूनी कलह के चलते सबकुछ एक झटके में खत्म हो सकता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण हाल ही में हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में देखने को मिला. हिमाचल चुनाव कांग्रेस के लिए एक मॉडल है, वहीं बीजेपी के लिए एक सबक है. जिस तरह हिमाचल में सीट को लेकर और बड़े नेताओं में मनमुटाव के बढ़ते-बढ़ते बीजेपी कमजोर होती चली गई. उसी तरह बीजेपी कर्नाटक में कमजोर हो सकती है.


राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कर्नाटक बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. बसवराज बोम्मई से पार्टी के कई नेताओं की नाराजगी है, जो फिलहाल खुलकर सामने तो नहीं आई है. हालांकि दावा किया जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में इसका असर देखा जा सकता है. कहीं न कहीं कांग्रेस के लिए ये एक और प्लस पॉइंट है.


5). कई बीजेपी के नेता पार्टी छोड़ थाम रहे कांग्रेस का हाथ
कांग्रेस कर्नाटक में खुद को मजबूत करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. अक्सर आपने ये सुना और पढ़ा होगा कि कांग्रेस के नेता पार्टी छोड़कर बीजेपी का रुख कर रहे हैं. कर्नाटक में बीजेपी की अंदरूनी कलह इतनी बढ़ गई है कि आए दिन किसी छोटे-बड़े नेता की नाराजगी की खबरें सामने आती रहती हैं. पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार, पूर्व विधायक और पूर्व मेयर कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं.


बीजापुर के पूर्व विधायक मनोहर ऐनापुर और कोल्लेगला के पूर्व विधायक जी एन नंजुंदास्वामी के साथ मैसूर के पूर्व मेयर पुरुषोत्तम कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. कांग्रेस के प्रदेश प्रमुख डीके शिवकुमार ने ये दावा किया कि आने वाले दिनों में बीजेपी विधायक भी कांग्रेस में शामिल होंगे. ऐसे में कहीं न कहीं कर्नाटक में बीजेपी को कांग्रेस कमजोर कर रही है.


कर्नाटक विधानसभा चुनाव में क्या होगा ये तो मतदान और मतगणना के बाद ही पता चलेगा. अभी चुनावी बिगुल बजने के बाद हर दिन माहौल बदलता है, हवा का रुख बदलता है. कांग्रेस की मजबूती फिलहाल हो सकती है, मगर किसी से सच ही कहा है कि ये राजनीति है, यहां कभी भी कुछ भी हो सकता है. अनिश्चितता मतलब सियासत...


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