दो वाकये जब कर्नाटक ने कांग्रेस नेतृत्व की नैया बचाई तो इसके बाद पार्टी केंद्र की सत्ता में आई
राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की किस्मत खराब होने पर कई मौकों पर उसे दक्षिण भारत से नया जीवन मिला है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों ने शनिवार को एक बार फिर इस बात को साबित कर दिया कि दो आम चुनावों और कई विधानसभा चुनावों में एक के बाद एक हार के बाद एक बार फिर नई जान फूंकने के लिए जी-जान से जुटी इस पुरानी पार्टी को बहुत महत्वपूर्ण मौका दिया है. कांग्रेस महासचिव और पार्टी के संचार प्रभारी जयराम रमेश ने दक्षिण से पार्टी के पुनरुद्धार के पैटर्न पर प्रकाश डाला.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की किस्मत खराब होने पर कई मौकों पर उसे दक्षिण भारत से नया जीवन मिला है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों ने शनिवार को एक बार फिर इस बात को साबित कर दिया कि दो आम चुनावों और कई विधानसभा चुनावों में एक के बाद एक हार के बाद एक बार फिर नई जान फूंकने के लिए जी-जान से जुटी इस पुरानी पार्टी को बहुत महत्वपूर्ण मौका दिया है. कांग्रेस महासचिव और पार्टी के संचार प्रभारी जयराम रमेश ने दक्षिण से पार्टी के पुनरुद्धार के पैटर्न पर प्रकाश डाला.
चिकमंगलूर में कांग्रेस का असाधारण प्रदर्शन
एक ट्वीट में उन्होंने कहा, चिकमंगलूर जिले में कांग्रेस पार्टी के लिए यह एक असाधारण परिणाम है, जो भाजपा का गढ़ बन गया था. इसने वहां की 5 में से सभी 5 सीटों पर जीत हासिल की. 1978 में इंदिरा गांधी ने चिकमंगलूर से चुनाव जीतकर राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के पुनरुत्थान की शुरुआत की थी. इतिहास जल्द ही खुद को दोहराएगा!
चिकमंगलूर सीट से इंदिरा ने जीता था उपचुनाव
1975 में आपातकाल लगाने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 1977 के आम चुनावों में हार गई थीं, यहां तक कि अपनी उत्तर प्रदेश की रायबरेली संसदीय सीट से भी वह हार गईं. आम चुनावों में हार के बाद इंदिरा गांधी ने पार्टी के पुनरुद्धार के लिए दक्षिण भारत जाने का फैसला किया और एक साल बाद उन्होंने चिकमंगलूर संसदीय सीट से लोकसभा उपचुनाव लड़ने का फैसला किया.
वह 1978 के उपचुनावों में चिकमंगलूर से जीतीं और संसद में लौटीं और फिर 1980 के लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय स्तर पर वापसी की.
सोनिया गांधी ने भी कर्नाटक की ओर देखा था
1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद 90 के दशक के अंत में एक बार फिर से अपने अस्तित्व के लिए चुनौती का सामना करने वाली कांग्रेस ने कर्नाटक से एक बार फिर अपने भाग्य का पुनरुद्धार देखा. राजीव गांधी की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी सोनिया गांधी ने राजनीति से दूरी बना ली थी. हालांकि कमजोर हो रही पार्टी को फिर से मजबूत करने के लिए 1998 में उन्हें राजनीति में प्रवेश करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
बेल्लारी से सुषमा स्वराज को हराया था
सोनिया गांधी ने तब 1999 के लोकसभा चुनाव कर्नाटक के बेल्लारी और उत्तर प्रदेश के अमेठी से लड़ने का फैसला किया और दोनों सीटों से जीत हासिल की. उन्होंने बेल्लारी में भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज को हराया. हालांकि, दोनों सीटों से जीतने के बाद उन्होंने लोकसभा में अमेठी का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना.
फिर 2004 में सत्ता में हुई थी वापसी
साल 1999 में जीतने के बाद सोनिया गांधी 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) को सत्ता में वापसी कराई, जो मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री के रूप में लगातार दो बार सत्ता में रही.
2023 के कर्नाटक चुनाव में जीत से मनोबल बढ़ा
2023 के कर्नाटक चुनाव और चिकमंगलूर की सभी पांच सीटों पर जीत ने कांग्रेस को नई उम्मीद दी है, जो नौ वर्षों में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है, जहां वह कई राज्यों में सत्ता से बाहर हो गई और दो लोकसभा चुनाव भी हार गई. कांग्रेस वर्तमान में छत्तीसगढ़, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में अपने दम पर सत्ता में है. बिहार और झारखंड में यह सरकार में साझीदार है. इस साल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस कर्नाटक विधानसभा की 224 सीटों में से 136 सीटों के साथ सत्ता में वापसी करने के लिए तैयार है.
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