अमेठी: सिर्फ गांधी परिवार ही नहीं इन 2 प्रत्याशियों को भी चुनाव जिताकर संसद भेज चुकी है कांग्रेस
Amethi Lok Sabha Seat History: उत्तर प्रदेश की हॉटस्पॉट सीट अमेठी, जो कभी कांग्रेस का अभेद किला हुआ करती थी, वहां से BJP प्रत्याशी और मौजूदा सांसद स्मृति ईरानी ने अपना पर्चा दाखिल कर लिया है. वहीं, कांग्रेस ने इस सीट से अभी तक अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि अमेठी में वापसी के लिए कांग्रेस एक बार फिर राहुल गांधी को चुनावी मैदान में उतारने जा रही है. बहरहाल, आइए एक नजर अमेठी के चुनावी इतिहास पर डालते हैं.
नई दिल्लीः Amethi Lok Sabha Seat History: उत्तर प्रदेश की हॉटस्पॉट सीट अमेठी, जो कभी कांग्रेस का अभेद किला हुआ करती थी, वहां से BJP प्रत्याशी और मौजूदा सांसद स्मृति ईरानी ने अपना पर्चा दाखिल कर लिया है. वहीं, कांग्रेस ने इस सीट से अभी तक अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि अमेठी में वापसी के लिए कांग्रेस एक बार फिर राहुल गांधी को चुनावी मैदान में उतारने जा रही है. बहरहाल, आइए एक नजर अमेठी के चुनावी इतिहास पर डालते हैं.
1967 में अस्तित्व में आई थी अमेठी लोकसभा सीट
उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट साल 1967 में अस्तित्व में आई थी और इस साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यहां से जीत मिली थी. तब कांग्रेस की ओर से विद्याधर वाजपेयी ने जीत हासिल की थी. इसके बाद साल 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में भी विद्याधर वाजपेयी यहां से विजयी रहे थे. 1977 में कांग्रेस ने इस सीट से अपना उम्मीदवार बदलने का फैसला किया और इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी को चुनावी मैदान में उतार दिया.
1980 में अमेठी में जीते थे संजय गांधी
तब संजय गांधी का सामना जनता पार्टी के उम्मीदवार रवींद्र प्रताप सिंह से था. चुनावी नतीजे रवींद्र प्रताप सिंह के पक्ष में आए और संजय गांधी को अपने पहले ही चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. इस हार से आहत हुए बिना संजय अमेठी में लगे रहे और साल 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में रवींद्र प्रताप सिंह को पटखनी दी. इसके कुछ ही महीनों बाद संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत हो गई.
1984 से 91 तक राजीव गांधी रहे अमेठी के MP
संजय गांधी की मौत के बाद बड़े भाई राजीव गांधी ने अमेठी से चुनाव लड़ने का मन बनाया और साल 1984 के लोकसभा चुनाव में मैदान में उतर गए. इस दौरान राजीव गांधी का सामना संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी से हुआ. चुनाव में भाभी को देवर के हाथों हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद धीरे-धीरे अमेठी कांग्रेस का गढ़ बनती चली गई. साल 1989 का लोकसभा चुनाव हो या 1991 का दोनों बार राजीव गांधी को अमेठी की जनता ने सर आंखों पर बैठाया.
1996 में कांग्रेस ने सतीश शर्मा को बनाया उम्मीदवार
लेकिन जब साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई, तो कांग्रेस ने उनके ही करीबी सतीश शर्मा को मैदान में उतारने का फैसला किया. सतीश शर्मा भी कांग्रेस की उम्मीदों पर खड़े उतरे और 1996 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की. हालांकि, 1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इस सीट पर सेंध लगाई और संजय सिंह ने सतीश शर्मा को पटखनी दे दी.
1999 में अमेठी से जीतीं सोनिया गांधी
इसके अलगे ही साल यानी 1999 में फिर लोकसभा चुनाव हुए और इस बार खुद पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अमेठी से चुनाव लड़ने का फैसला किया. सोनिया गांधी का यह फैसला कांग्रेस के हित में गया उन्होंने करीब 3 लाख वोटों से जीत हासिल कीं. इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने अपने चुनावी सफर की शुरुआत इसी सीट से की और 2,90,853 वोट के अंतर से जीत दर्ज की. इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव के नतीजे भी कांग्रेस के पक्ष में रहे.
2014 में भी अमेठी से जीते थे राहुल गांधी
यहां तक 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच भी कांग्रेस इस सीट को जीतने में कामयाब रही थी. बस जीत का अंतर कम हो गया था. इस चुनाव में राहुल गांधी ने BJP उम्मीदवार स्मृति ईरानी को 1,07,903 वोटों के अंतर से पटखनी दी थी. लेकिन अपनी इस हार से आहत हुए बिना स्मृति ईरानी लगातार इस क्षेत्र में डटी रहीं. लिहाजा 2019 के लोकसभा चुनाव में वे राहुल गांधी को इस सीट से हराने में कामयाब रहीं.
अमेठी पर शुरू से ही रहा है कांग्रेस का दबदबा
कुल मिलाकर देखा जाए, तो अमेठी पर शुरू से ही कांग्रेस का दबदबा रहा है और इसे कांग्रेस का गढ़ भी कहा जाता है. लेकिन कांग्रेस अब इस सीट को गंवा चुकी है. ऐसे में पार्टी फिर से इस सीट पर अपना कब्जा जमाने के प्रयास में लगी हुई है. लिहाजा कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस इस बार फिर राहुल गांधी को इस सीट पर उम्मीदवार बना सकती है. अगर वास्तव में ऐसा होता है, तो कांग्रेस की विरासत बचाने की राहुल गांधी के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी होगी.
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