नई दिल्ली: Vijaya Raje Scindia: 1984 का लोकसभा चुनाव कई मायनों में अहम था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के दो महीने बाद हुए चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर थी. जहां एक ओर लोग बिन मां के बेटे राजीव को लेकर सॉफ्ट थे, वहीं दूसरी तरफ एक मां अपने बेटे के खिलाफ ही चुनाव प्रचार में उतर आई थी. 1984 के लोकसभा चुनाव में राजमाता विजया राजे सिंधिया और उनके बेटे माधवराव सिंधिया के बीच की कलह सार्वजनकि हो गई थी. 


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मां-बेटे में अनबन
दरअसल, 1980 के लोकसभा चुनाव में ग्वालियर के सिंधिया राजघराने के राजकुमार माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस जॉइन कर ली थी. दिलचस्प बात ये है कि माधवराव की मां राजमाता विजया राजे सिंधिया भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थीं. माधवराव मां की मर्जी के खिलाफ जाकर कांग्रेस में शामिल हुए थे. 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को ग्वालियर संसदीय सीट से टिकट थमा दिया. 


अटल बोले- ग्वालियर से चुनाव मैं लडूंगा
तब ऐसे कयास थे कि भाजपा के संस्थापक अटल बिहारी वाजपेयी राजस्थान की कोटा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. लेकिन तभी खबर मिली की राजमाता अपने बेटे के खिलाफ ग्वालियर से पर्चा भर सकती हैं. तब अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि माधवराव के सामने मैं ग्वालियर से चुनाव लडूंगा. कहा जाता है कि उन्होंने मां-बेटे की तकरार को रोकने के लिए यह फैसला किया. 


राजमाता ने निभाया राज धर्म
राजमाता ने राजधर्म निभाया. उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के पक्ष में जमकर रैलियां की. लोगों से उनके पक्ष में वोट डालने की अपील की. कांग्रेस ने माधवराव को यहां से इसलिए टिकट दिया था, क्योंकि यह राजमाता के प्रभाव का इलाका था. लेकिन अब खुद राजमाता ही माधवराव के खिलाफ वोट करने की अपील कर रही थीं.


चुनाव के नतीजे 
चुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में रहे, इस सीट पर राजमाता की पकड़ कमजोर हुई और उनके बेटे की धाक मजबूती से जमने लगी. माधवराव सिंधिया ने अटल बिहारी वाजपेयी को 1.75 लाख वोटों से चुनाव हराया. माधवराव को 3.07 लाख वोट आए. जबकि अटल को 1.32 लाख वोट ही मिले.  


हंस पड़े अटल
अटल चुनाव हार गए. जैसे उन्हें रिजल्ट की जानकारी मिली, वे जोर से हंसे. जब उनसे हंसने का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ग्वालियर से चुनाव लड़कर मैंने मां-बेटे की लड़ाई को महल तक से बाहर सड़क पर नहीं आने दिया. मैं यहां से चुनाव नहीं लड़ता तो राजमाता चुनाव लड़ जाती, जो मैं बिलकुल नहीं चाहता था. एक बार साल 2005 में अटल ग्वालियर दौरे पर आए थे. तब उनसे हार का कारण पुछा गया. इस पर उन्होंने कहा कि ग्वालियर में मेरी हार पर एक इतिहास छिपा हुआ है, जो केवल मैं ही जानता हूं.


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