नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश की उत्तर प्रदेश की रायबरेली और अमेठी सीट से अभी तक कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है. यह दोनों ही लोकसभा सीटें कांग्रेस का पारंपरिक गढ़ मानी जाती रही हैं. रायबरेली लोकसभा सीट 1952 के लोकसभा चुनाव से मौजूद है तो अमेठी सीट का निर्माण 1967 में हुआ था. अमेठी लोकसभा सीट पर केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अपने कैंडिडेट की घोषणा कर चुकी है. अमेठी में स्मृति ईरानी एक बार फिर बीजेपी कैंडिडेट होंगी. माना जा रहा है कि जल्द ही बीजेपी रायबरेली में भी कैंडिडेट का ऐलान कर सकती है. बीजेपी ने पहले ही प्रत्याशी की घोषणा कर एक राजनीतिक बढ़त हासिल करने की कोशिश की है. दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी ने अभी तक दोनों ही सीटों पर किसी भी प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है. दोनों ही हॉट सीट मानी जाती हैं क्योंकि एक सीट से सोनिया गांधी तो दूसरी सीट से राहुल गांधी चुनाव जीतकर संसद में पहुंचते रहे हैं. 


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कांग्रेस के गढ़, बस एकाध बार मिली विपक्षी पार्टियों को जीत
अब जरा रायबरेली और अमेठी के राजनीतिक इतिहास पर डालते हैं. रायबरेली लोकसभा सीट पर पहली बार लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था. 1952, 1957, उसके बाद 1960 के उपचुनाव, 1962 के चुनाव, 1967 के चुनाव और 1971 के चुनाव में रायबरेली सीट से लगातार कांग्रेस के सांसद जीतकर संसद पहुंचने रहे. संसद पहुंचने वालों में फिरोज गांधी से लेकर इंदिरा गांधी तक का नाम शामिल है. पहली बार 1977 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर जनता पार्टी के कैंडिडेट राज नारायण की जीत हुई थी. राज नारायण की जीत को बड़े प्रतीकात्मक महत्व का माना जाता है. इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में इंदिरा गांधी लोकसभा चुनाव हार गई थी लेकिन 1980 के चुनाव में महज 3 साल बाद एक बार फिर यह सीट कांग्रेस के पास आ गई.


इंदिरा गांधी 1980 में यहां से फिर चुनाव जीतीं. 1980 के ही उपचुनाव में अरुण नेहरू ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की. उसके बाद अरुण नेहरू 1984 में भी जीते फिर 1989 में कांग्रेस के टिकट पर शीला कौल ने जीत हासिल की. 1991 में एक बार फिर शीला कौल जीती थीं. 1996 में पहली बार इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के अशोक सिंह चुनाव जीत कर संसद पहुंचे. 1998 में अशोक सिंह ने एक बार फिर इस सीट पर जीत हासिल की. और इन्हीं दोनों बार बीजेपी इन इस सीट को जीतने में कामयाब हो पाई है. इसके बाद 1999 से लेकर 2019 तक लगातार कांग्रेस इस सीट पर जीत हासिल करती रही है. 2004 से 2019 तक लगातार सोनिया गांधी ही सीट से जीतकर संसद पहुंचती रही.


अमेठी सीट का चुनावी इतिहास
अगर अमेठी की बात करें तो 1967 में पहली बार यहां चुनाव हुए थे. जिसमें कांग्रेस के विद्याधर बाजपेई ने जीत हासिल की थी. विद्याधर बाजपेई 1971 में भी चुनाव जीत कर संसद पहुंचे थे. इस सीट पर भी कांग्रेस को 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के रविंद्र सिंह के हाथों हर का सामना करना पड़ा था. लेकिन यह सीट भी कुछ-कुछ रायबरेली जैसी ही है. 1980 में सीट से संजय गांधी चुनाव जीते तो फिर 1981 के उपचुनाव से लेकर 1984, 1989 और 1991 के चुनाव में राजीव गांधी ने जीत हासिल की थी. 1991 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के सतीश शर्मा ने यहां से जीत हासिल की.


इसके बाद 1996 के लोकसभा चुनाव में भी सतीश शर्मा यहां से जीते. 1998 में पहली बार बीजेपी के टिकट पर अमेठी राजघराने के संजय सिंह ने जीत हासिल की. लेकिन इसके बाद 1999 में सोनिया गांधी तो फिर 2004, 2009, 2014 तक लगातार राहुल गांधी सीट से चुनाव जीतते रहे. 2019 में भारतीय जनता पार्टी की कैंडिडेट स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को चुनाव हराया.


क्या 'टूटेगा' गांधी परिवार का रिश्ता?
गांधी परिवार की परंपरागत सीटें होने के बावजूद अमेठी और रायबरेली दोनों ही सीटों को लेकर कांग्रेस असमंजस में दिख रही है. सपा के साथ सीट शेयरिंग फाइनल हुए भी करीब एक महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है लेकिन दोनों सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा नहीं हुई है. इससे उलट वायनाड में राहुल गांधी के चुनाव लड़ने की घोषणा हो चुकी है. बीते लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी इसी सीट से जीतकर संसद पहुंचे थे जबकि अमेठी में उनकी हार हुई थी. 


वर्तमान आंकड़ों की बात करें तो यूपी में कांग्रेस के पास सिर्फ रायबरेली सीट ही है. इस सीट से कई बार प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने को लेकर भी अटकलें आई हैं. लेकिन अभी तक पार्टी ने कैंडिडेट का आधिकारिक ऐलान नहीं किया है. जबकि वाराणसी सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ यूपी बीजेपी अजय राय के नाम की घोषणा की जा चुकी है. अमेठी-रायबरेली को लेकर कांग्रेस लीडरशिप के निर्णय का अभी भी इंतजार किया जा रहा है कि वह किसे यहां से चुनावी मैदान में उतारेगा? देखना होगा कि क्या ये कैंडिडेट गांधी परिवार से ही होंगे या फिर पार्टी किसी अन्य प्रत्याशी पर भरोसा दिखाएगी.


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