नई दिल्ली: Maneka Gandhi and Varun Gandhi: गांधी-नेहरू परिवार भारत की सियासत में आजादी से पहले से सक्रिय है. इसे भारत का सबसे बड़ा सियासी परिवार भी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. लेकिन आज इसी परिवार का बेटा टिकट के लिए एक पार्टी का मुंह तक रहा है. जबकि एक वो दौर भी था जब उसकी दादी और नाना देश के PM हुआ करते थे. आप पहचान ही गए होंगे, हम वरुण गांधी की बात कर रहे हैं. ऐसे कयास हैं कि वरुण गांधी का भाजपा पीलीभीत से टिकट काट सकती है. इसी बीच वरुण की बैकस्टोरी खूब चर्चा में है. लोगों के मन में यह सवाल होगा कि इतने बड़े खानदान से ताल्लुक रखने वाला शख्स आज एक टिकट का मोहताज क्यों है? आखिर क्या हुआ था जिसे कारण एक 2 साल के लड़के को आधी रात को अपनी मां के साथ PM हाउस छोड़ना पड़ा?


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संजय गांधी की मौत
वरुण गांधी की मां मेनका गांधी पूर्व PM इंदिरा गांधी की बहू हैं. यानी वरुण इंदिरा के पोते हैं. मेनका की शादी इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी से हुई थी. दिसंबर 1980 में संजय की एक विमान हादसे में मौत हो गई. वरुण का जन्म पिता की मौत से 9 महीने पहले ही हुआ था. इस दौरान इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री हुआ करती थीं. बेटे की मौत के बाद बहु मेनका से उनकी दूरी बढ़ गई. लेखक खुशवंत सिंह ने लिखा, 'अनबन इतनी बढ़ गई कि दोनों का एक छत के नीचे रहना भी मुश्किल हो गया.' 


मनेका की थी राजनीति में दिलचस्पी
जेवियर मोरो ने अपनी किताब 'The Red Sari' में बताया है कि छोटे बेटे की मौत के बाद इंदिरा गांधी बड़े बेटे राजीव को सियासत में आगे बढ़ाने लगी थीं. लेकिन मेनका गांधी चाहती थीं कि वे अपने पति की तरह राजनीति में सक्रिय हों. लेकिन इंदिरा इससे इत्तेफाक नहीं रखती थीं. वे कई बार मेनका को चेता चुकी थीं, वे चाहती थीं कि मनेका राजनीति से दूर रहे. 


जब गुस्से में लाल होकर लौटीं इंदिरा
इंदिरा गांधी विदेश यात्रा पर गई हुई थीं. उनके पीछे से मेनका गांधी ने लखनऊ में अपने समर्थकों के साथ एक सभा की. यह बात इंदिरा को नागवार गुजरी. जेवियर मोरो अपनी किताब में लिखते हैं कि इंदिरा गांधी 28 मार्च, 1982 की सुबह लंदन से वापस आईं. उस दौरान वे गुस्से में लाल थीं. आते ही मेनका ने उनको नमस्ते करना चाहा, लेकिन इंदिरा ने कहा-इस बारे में बाद में बात करेंगे. कुछ देर बाद एक सर्वेंट के जरिये इंदिरा ने मेनका को कहलवाया मैडम (इंदिरा) आपसे मिलना चाहती हैं. वे पहुंची तो इंदिरा गांधी वहां धीरेंद्र ब्रह्मचारी (इंदिरा के योग गुरु) और आर. के. धवन (इंदिरा के पर्सनल सेक्रेटरी) के साथ खड़ी थीं. इंदिरा ने बिना कोई भूमिका बनाते हुए मेनका को घर से निकल जाने के लिए कहा. इस पर मेनका ने अपना कसूर पूछा. इंदिरा ने कहा, मैंने तुमसे कहा था कि लखनऊ में मत बोलना, लेकिन तुमने मनमर्जी की. यहां से निकल जाओ. अपनी मां के घर वापस चली जाओ. इस पर मेनका ने कहा, मैं ये घर नहीं छोड़ना चाहती. इंदिरा और भड़कीं तो मेनका ने कहा, मुझे सामान पैक करने के लिए कुछ वक्त चाहिए. इंदिरा बोलीं- तुम यहां से कोई सामान नहीं ले जा सकती, तुम यहां से जाओ.  


'मेनका संजय की पत्नी है, ये घर उसका भी है'
इसके बाद मेनका गांधी ने अपने कमरे जाकर रोते हुए बहन अंबिका को फोन किया. पूरा माजरा बताते हुए कहा कि जल्दी से यहां आ जाओ. अंबिका ने अपने फैमिली फ्रेंड पत्रकार खुशवंत सिंह को पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. साथ ही PM हाउस (1, सफदरजंग रोड, नई दिल्ली) के बाहर तुरंत प्रेस को भेजने के लिए कहा. अंबिका मेनका के पास पहुंची. मेनका अपना सामान सूटकेस में ठूंस रही थीं. तभी इंदिरा गांधी आईं और कहा कि फौरन यहां से चली जाओ. मैंने कहा था कि तुम यहां से कुछ भी नहीं ले जा सकती. इस पर अंबिका ने कहा कि मेनका संजय की पत्नी है. ये घर उसका भी है. इस पर इंदिरा ने कहा कि ये घर देश के प्रधानमंत्री का है. ये कहकर वे वहां से चली गईं. दूसरी ओर मेनका आधी रात को अपना सामान गाड़ी में रखवाने लगीं. 


वरुण पर मां मेनका गांधी का हक
इंदिरा गांधी अपने पोते वरुण को मेनका के साथ भेजने के लिए तैयार नहीं थीं. वे दो साल के वरुण को संजय की आखिरी निशानी के तौर पर अपने पास रखना चाहती थीं. लेकिन मेनका भी अड़ गईं, उन्होंने कहा कि मैं अपने बेटे वरुण के बिना नहीं जाने वाली. इस पर इंदिरा के करीबियों ने उन्हें समझाया कि बेटे पर मां का कानूनी हक है. PM हाउस में कानूनी एक्सपर्ट बुलाए गए, उन्होंने समझाया कि मेनका कोर्ट से वरुण की कस्टडी ले सकती हैं. इस पर इंदिरा गांधी मान गईं और वरुण को भी मेनका के साथ ही भेजने का फैसला किया. 


नामी परिवार में कलह
मेनका गांधी ने अपने सोए हुए बेटे वरुण को गोद में लिया. गाड़ी में सूटकेस रखकर अपनी बहन के साथ चली गईं. रात को 11 बजे देश के सबसे नामी परिवार की कलह मीडिया के कैमरों में कैद हो गई थी. अगली सुबह के अखबारों ने पहले पन्ने पर इस घरेलू तमाशे को जगह दी. 1984 में मेनका ने राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से निर्दलीय लड़ा, लेकिन हार गईं. 1989 में जनता दल के टिकट पर पीलीभीत से सांसद बनीं. 2004 से मेनका भाजपा में हैं, तब से वे लगातार सांसद हैं. 2009 से उनके बेटे वरुण गांधी भी सांसद हैं. लेकिन इस बार चर्चा है कि भाजपा से मां-बेटे की टिकट कट सकती है. 


नोट: ये तथ्य जेवियर मोरो की किताब 'द रेड साड़ी' से लिए गए हैं, हम इनकी पुष्टि नहीं करते.


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