नई दिल्ली: संगीत वो भाषा है जिसे पढ़ने के लिए कोई डिग्री नहीं चाहिए. जो हंसते को रुला दे और रोते को हंसा दे और प्यार के ना होते हुए भी प्यार को एहसास करवाए वो है संगीत. भारत की संस्कृति के इस अनमोल खजाने को दुनिया तक पहुंचाने वाले महान संगीतकार एआर रहमान का आज जन्मदिन है. वैसे तो इनकी आवाज इनकी कला के दुनियाभर में कई कद्रदान हैं लेकिन एआर रहमान खुद एक महान कव्वाल के फैन थे. आइए जानते हैं पूरा किस्सा...


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दमा दम मस्त कलंदर का कमाल


एआर रहमान के एक खास दोस्त सारंग ने एक बार उन्हें एक सीडी दी थी. उस वक्त एआर रहमान को अंदाजा भी नहीं था कि वो किसकी सीडी है. हमेशा साउथ इंडिया के संगीत में जीने वाले रहमान के कानों में पहली बार दमा दम मस्त कलंदर के बोल पड़े. आवाज थई नुसरत फतेह अली खान साहब की. पहली बार मुंह से निकला ये क्या है, किसकी आवाज है? बस फिर क्या मन में नुसरत जी से मिलने की ठान ली. शेखर कपूर ने मिलाने का वादा तो किया था लेकिन वो वादा भी वादा ही रहा.



ऐसे हुआ दीदार


कहते हैं ना कि जब किस्मत में मिलना लिखा हो तो लोग मिल ही जाते हैं. ऐसा ही कुछ एआर रहमान के साथ भी हुआ. एआर रहमान न्यू यर्क किसी एल्बम के सिलसिले में गए थे. तभी पता चलाकि यहां तो नुसरत फतेह अली खान साहब भी आए हुए हैं. फिर क्या उनका गाना सुनने चल दिए. खचाखच भरे स्टेडियम को देख एआर रहमान चकाचौंध रह गए. मन ही मन सोचने लगे कि एक कलाकार को और क्या चाहिए. फिर नुसरत जी से मिलने बैकस्टेज पहुंचे. पांच-छह सौ लोगों के साथ एआर रहमान नुसरत फतेह अली खान के दीदार का इंतजार करने लगे.



मिलकर किया काम


गौरतलब नुसरत साब के मैनेजर ने एआर रहमान को पहचान लिया. पहली मुलाकात में ही एआर रहमान ने उनसे संगीत सीखने की इच्छा जाहिर कर दी और नुसरत साहब ने मना भी नहीं किया. फिर रात दो बजे हेटल में महफिल लगी. उसी महफिल में कव्वाली का पहला ज्ञान संगीतकार क मिला. इसके बाद दोनों को साथ में काम करने की सलाह भी दी गई. रहमान और नुसरत फतेह अली खान ने मिलकर 'मां तुझे सलाम' के एक गाने 'चंदा सूरज लाखों तारे' में मिलकर काम किया. यहां तक की नुसरत साब के साथ पाकिस्तान में भई रहमान ने कुछ दिन गुजारे थे.


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