नई दिल्ली: कहते हैं कि फिल्में समाज का आइना होती हैं, लेकिन क्या ये फिल्मीं सितारे भी आज इस समाज का हिस्सा रह गए हैं? आज हम लगभग हर दिन और हर हिन्दी फिल्म के लिए 'बायकॉट बॉलीवुड' शब्द सुन रहे हैं. इस शब्द से शायद अब पूरी हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री भी परेशान हो चुकी है. हालांकि, इसके बावजूद लोगों की नाराजगी को दूर करने के लिए कितने प्रयास किए गए?


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कई फिल्मों में किया गया सनातन धर्म का अपमान


सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से ही लोग इतने दुखी और गुस्से में हैं कि उन्होंने कई स्टारकिड्स की फिल्मों को सिरे से नकार दिया है. इसके अलावा लगातार सनातन धर्म का अपमान करती बड़े बजट की फिल्मों ने लोगों के गुस्से को और भड़का दिया है. कभी 'ब्रह्मास्त्र' का शिवा जूते पहनकर मंदिर में घंटी बजाता दिखा, तो कभी, फिल्म 'थैंक गॉड' में चित्रगुप्त के किरदार को अर्ध नग्न महिलाओं के साथ पेश कर दिया गया. दूसरी ओर 'काली' पोस्टर के विवाद को अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता है.


2022 में लगी फ्लॉप फिल्मों की लाइन


अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों और कब तक सिर्फ हिंदू देवी-देवताओं और लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई जाएगी? या फिर फिल्में बनाने के लिए किसी भी धर्म के लोगों की भावनाएं क्यों आहत करनी हैं? 2022 में 'गंगूबाई काठियावाड़ी', 'भूल भुलैया 2' और 'द कश्मीर फाइल्स' को छोड़ दिया जाए तो सारी हिंदी फिल्में ढेर हुई हैं. इनमें 'झुंड', 'रनवे 34', 'बच्चन पांडे', 'जयेशभाई जोरदार', 'धाकड़', 'जर्सी', 'सम्राट पृथ्वीराज', 'रक्षाबंधन', 'हीरोपंती 2', 'लाइगर' और 'लाल सिंह चड्ढा' जैसी फिल्में शामिल हैं. फिल्में पहले भी बनती थी, सफल भी होती है और आज भी यादगार हैं. 


ऑरिजिनल कंटेंट पर नहीं दिया जा रहा ध्यान


मैं अगर यहां अपनी बात करूं तो मुझे फिल्में देखना बहुत पसंद है, हमेशा से ही रहा है, लेकिन पहले फिल्में देखने के बाद मैं उसके डायरेक्टर, लिरिसिस्ट, या राइटर के बारे में और जानने की कोशिश करती थी. क्योंकि मुझे डायलॉग्स से लेकर, गानों और डायरेक्शन में एक ताजगी दिखाई देती थी, जो शायद हम सभी को मजबूर कर देती थी कि हम उस फिल्म की पूरी टीम के बारे में पढ़ें. हालांकि, आज की फिल्में बाद में रिलीज होती हैं, इसके स्टार्स, डायरेक्टर, सिंगर और अन्य लोग खुद को मशहूर करवाने की पहले कोशिश में लग जाते हैं. इन सबके बीच शायद वह इस बात पर ध्यान देना ही भूल जाते हैं कि उन्हें एक ऑरिजिनल कॉन्टेंट दर्शकों के बीच पेश करना है, न कि कहीं से प्रेरित होकर कोई कहानी, गाना या म्यूजिक संजो कर रख देना है.


आहत है आम लोग


सोशल मीडिया आज बहुत स्ट्रॉन्ग बन चुका है. बेशक कुछ लोगों ने इसका इस्तेमाल दूसरों को भड़काने के लिए किया हो, लेकिन हर शख्स के अपने अलग विचार होते हैं और आज सबकी एक ही आवाज सुनाई देती है 'बायकॉट बॉलीवुड'. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोग बहुत बुरी तरह आहत हैं. जिन सितारों को वह अपना दोस्त मानते हैं, जिन्हें सालों तक प्यार देकर उन्होंने फर्श से अर्श तक पहुंचाया है, उन पर अपनी नाराजगी जाहिर करने का भी उन्हें पूरा हक है. दूसरी ओर अब सितारों का भी फर्ज बनता है कि वह जनता को सिर्फ दर्शक न मानकर उन्हें भी अपना दोस्त समझते हुए अपनी उन गलतियों को सुधारे जो मुमकिन हैं.


कई डायलॉग्स आज किए जाते हैं याद


खैर, बॉलीवुड के सितारे और फिल्में सदियों से दुनियाभर के लोगों की पसंदीदा रही हैं. बीते कई सालों में रिलीज हुईं फिल्मों पर नजर डालें, तो उनके डायलॉग्स आज भी अक्सर हमारी जुबां पर आ ही जाते हैं, जैसे, 'राहुल... नाम तो सुना ही होगा.' या फिर 'रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप होते हैं नाम है शहंशाह', या 'कितने आदमी थे?' इन डायलॉग्स को कई बार रीक्रिएट किया जा चुका है, लेकिन आज भी इनमें वहीं नयापन, ताजगी, जोश और ड्रामा दिखता है, जो उस समय था जब ये फिल्में रिलीज हुई थीं.


बदलाव की उम्मीद में हैं दर्शक


आज दर्शक सिर्फ एक बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं. लोग आज सिर्फ मनोरंजन के लिए ही फिल्में नहीं देखते, बल्कि वह उम्मीद करते हैं कि उन्हें उसमें कुछ अर्थपूर्ण कहानी देखने को मिलेगी, जो कम से कम किसी जाति या धर्म को न ठेस पहुंचाए. तब तक के लिए ओटीटी का शुक्रिया अदा किया जा सकता है. यहां हर दिन दर्शकों के लिए इतना शानदार और जबरदस्त कंटेंट पेश किया जा रहा है कि लोगों को अपने एंटरटेनमेंट में किसी भी तरह की कमी महसूस ही नहीं हो रही.


ये भी पढ़ें- काजोल ने क्यों करियर के पीक पर अजय देवगन से की थी शादी? 16 साल बाद स्क्रीन पर स्वीकारा था पति का सरनेम


Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.