नई दिल्ली: करण जौहर ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बॉलीवुड फिल्मों के गिरते स्तर पर बातचीत की है. वहीं नेपोटिज्म के मुद्दे पर अक्सर गालियां सुनने वाले करण ने बताया कि क्यों वह स्टारकिड्स को अपनी फिल्मों में ज्यादा मौका देते हैं, और नए चेहरे को लॉन्च करने से कतराते हैं. मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कई टॉपिक्स पर खुलकर जवाब दिया.


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हिंदी फिल्मों की मार्केटिंग सबसे बुरी


करण ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मैं अगर किसी नए चेहरे को लॉन्च करता हूं तो कोई भी फिल्म देखने नहीं आएगा. हमें उस चेहरे को बहुत ज्यादा प्रमोट करना पड़ेगा. जिसमें भारी भरकम खर्चा होता है. साउथ फिल्मों में मार्केटिंग कॉस्ट खर्च नहीं करना पड़ती है. और यहां हम मॉल इवेंट में पूरा मॉल बुक करते हैं, हजारों लोग पहुंचे हैं, लेकिन फिल्म देखने 100 लोग भी नहीं जाते. हिंदी सिनेमा की मार्केटिंग सबसे वाहियात है.


ओरिजिनल कंटेंट है कमी


करण ने कहा - 'हम हमेशा फ्लो के साथ चलते हैं. 70 के दशक में हमारी फिल्म इंडस्ट्री में ओरिजिनल कंटेंट बनता था, लेकिन 80 के दशक तक आते-आते रीमेक्स का तूफान आ गया. आज भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. हम अब तमिल और तेलुगु की हर फेमस फिल्मों का रीमेक कर रहे है.



यहीं से नुकसान की शुरुआत हुई है. हम अब तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की तुलना में पीछे रह गए हैं. आज हमारे अंदर दृढ़ विश्वास की भारी कमी हो गई है.


मेरे जैसे निर्देशक ट्रेंड्स के भवर में फंस गए हैं


करण ने कहा- 'मेरे जैसे कई फिल्ममेकर ट्रेंड्स का हिस्सा बनकर रह गए हैं. साल दर साल कुछ ऐसी फिल्में आती हैं जिसको देखकर अन्य फिल्ममेकर भी वैसे ही फिल्में बनाते लगते हैं. 90 के दशक में हम आपके कौन है फिल्म आई तो हमने उसी जॉनर की कई सारी फिल्में बनाई. 2010 में दबंग की सफलता के बाद हमने कमर्शियल फिल्म बनाना शुरू कर दिया.' अब हम क्रिएटिव काम नहीं कर पा रहे हैं.


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