नई दिल्ली: Raju Srivastava Death: इस बात से तो शायद हर शख्स वाकिफ होगा कि कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव (Raju Srivastava) बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) के कितने बड़े फैन थे. फैन भी ऐसे-वैसे नहीं, लोग उन्हें जूनियर अमिताभ बच्चन तक कहने लगे थे. राजू की सादगी से भरी जिंदगी के कई किस्से ऐसे हैं, जो बहुत मजेदार रहे हैं, जिन्हें याद कर लोगों के चेहरों पर मुस्कान और आंखों नमी आ जाती है. राजू का शुरुआती जीवन हमारे और आपके जैसा ही था. यानी बहुत सामान्य सा. पढ़ाई करो और फिल्में तुम्हें खाने के लिए नहीं देंगी.


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राजू श्रीवास्तव में आए पिता गुण


कानपूर के रमेश चंद्र श्रीवास्तव उर्फ बलई काका के घर 25 दिसंबर, 1968 को एक प्यारे से बेटे का जन्म हुआ. नाम रखा सत्य प्रकाश श्रीवास्तव, जिन्हें प्यार से बाद में राजू कहा जाने लगा और यही नाम देखते ही देखते दुनियाभर में छा गया. खैर राजू श्रीवास्तव के पिता पेशे से कोर्ट में पेशकार हुआ करते थे, साथ ही अवध रीजन के मशहूर हास्य कवि कहे जाते थे. पिता के यह कवि वाले गुण बचपन से ही न जाने कहा से राजू में भी आ गए. वह जब पिता को स्टेज पर देखते को उनके भीतर भी ऐसे ही मंच पर खड़े होने की इच्छा होने लगती.


पिता की कविताएं सुनाया करते थे राजू


राजू पढ़ाई के ज्यादा शौकीन नहीं थे, वह तो बस मौका मिलते ही अपने पिता की कविता वाली डायरी लेकर घर की छत पर जाकर उसके पन्ने पलटते रहते और उसमें अक्सर कुछ कविताएं यादकर स्कूल में अपने दोस्तों के सामने सुनाते. अब पिता की शानदार कविताओं के साथ राजू का अपना ही एक अलग अंदाज घुलकर उन्हें और रोचक बना देता था. राजू को अलग-अलग लोगों की नकल करने का शौक था.


अक्सर इंदिरा गांधी को सुना करते थे राजू


घर में टीवी तो था नहीं, इसलिए राजू रेडियो सुनकर ही अपना मन बहलाते. हालांकि, घर का माहौल इतना सख्त था कि पिता अगर सामने बैठे हों तो रेडियो पर भी कोई रोमांटिक गाना सुनने में असहजता महसूस होने लगती थी. ऐसा ही तो शायद करीब 40 साल पहले हर मिडिल क्लास परिवार में हुआ करता था, या शायद देश के कई हिस्सों में आज भी ऐसा होता है. अब ऐसे में राजू रेडियो पर ज्यादातर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज ही सुना करते थे. इसी कारण उन्होंने इंदिरा गांधी की आवाज की और उनके बोलने के स्टाइल की नकल उतारते हुए मिमिक्री करना शुरू कर दिया.


पिता से मिला बढ़ावा


राजू को बचपन में पिता से भी काफी बढ़ावा मिला. कहा जाता है कि जब उनके घर कोई मेहमान आता तो पिता मनोरंजन के लिए अक्सर राजू को बुलाकर कहते, 'बेटा जरा बताओ तो इंदिरा जी कैसे बोलती है?' इस कारण सभी राजू की खूब वाह-वाही करते और उनके लिए तालियां बजाते. राजू अपने लिए तालियों की इन गड़गड़ाहट को सुनकर बहुत खुश हुआ करते थे. उन्हें हमेशा से यही तो चाहिए था.


अब था अमिताभ बच्चन को जानने का वक्त


इंदिरा गांधी की मिमिक्री से तो राजू श्रीवास्तव ने खूब मनोरंजन किया. अब वक्त था महानायक अमिताभ बच्चन को पहचानने का. एक दिन जब राजू अपने स्कूल पहुंचे तो उनकी क्लास का एक लड़का हाथ से बेल्ट घसीटता हुआ फिल्म 'शोले' के गब्बर की एक्टिंग कर रहा था. उसे देखकर राजू को लगा ये कौन सी बला है भाई? उन्होंने अपने दोस्त को साइड में ले जाकर इसके बारे में पूछा, तब पता चला कि ये तो फिल्म का किरदार है और मजेदार बात ये पता चली कि टिकट लेकर कोई भी शख्स फिल्म देखने जा सकता है.


...और अमिताभ बच्चन के फैन बन गए राजू


रिपोर्ट्स की माने तो राजू की मां को बिल्कुल पसंद नहीं था कि उनका बेटा फिल्मी चेहरों और इस दुनिया की ओर आकर्षित हो. वहीं, राजू तो अपनी ख्वाबों की दुनिया का एक बड़ा सा पहाड़ खड़ा कर चुके थे, जहां पहुंचने के लिए वह निरंतर प्रयास भी कर रहे थे. राजू को अब फिल्म देखनी थीं, जिसके लिए उन्होंने धीरे-धीरे पैसे जमा करना शुरू कर दिया. पैसे जमा होते ही वह तुरंत थिएयर में 'शोले' देखने पहुंच गए और यहां से नन्हें राजू बन गए अमिताभ बच्चन के सबसे बडे़ फैन.


जूनियर अमिताभ बच्चन कहे जाने लगे थे राजू


राजू ने अमिताभ बच्चन की मिमिक्री करनी शुरू कर दी. वह उनके डायलॉग्स याद करते और अपने अंदाज में इन्हें पेश कर लोगों को खूब हंसाते. अब आलम ये था कि आस-पास के लोग उन्हें अपने घर फंक्शन-पार्टीज में अमिताभ की मिमिक्री करने के लिए बुलाने लगे.



हालांकि, उनकी मां हमेशा कहती थीं, 'ई अम्ताब बच्चन रोटी नाई देत. (ये अमिताभ बच्चन रोटी नहीं देता)', लेकिन बाद में जब राजू अपने आस-पास के इलाकों में मशहूर हो गए तो उन्होंने भी मां से मजाक करते हुए कहा, 'अम्ताब बच्चनै ही अब रोटी देहैं (अमिताभ बच्चन ने ही अब रोटी दी है.)'  यही वो दौर था जब राजू को जूनियर अमिताभ कहा जाने लगा.


फिर कभी नहीं हंसाने आएंगे 'गजोधर भईया'


राजू ने अपने करियर को एक ऊंचा मुकाम दिलाने के लिए ऑटो चलाया, पार्टीज में शोज किए, रियलिटी शोज में हिस्सा लिया, उनकी ऑडियो कैसेस्ट्स निकाली गईं,कई फिल्मों में छोटे-मोटे रोल्स किए साथ ही राजनीति में भी हाथ आजमाया. उन्होंने अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए हर मुश्किल का हंसते हुए ही नहीं, बल्कि सभी को हंसाते हुए सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी. आज  उनका इस दुनिया से रुख्सत हो जाना पूरी फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक बड़ी हानि है. अब गजोधर भईया का नाम तो रहेगा, लेकिन उनके जैसे कॉमेडियन हम शायद दोबारा कभी नहीं देख पाएंगे.


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