Rekha Bhardwaj Birthday: रेखा भारद्वाज की आवाज में जो सौंधापन है वो कुल्हड़ में रखी चाय जैसा है. जितना भी टेस्ट करो मन नहीं भरता. लगता है कि एक गाना और एक गाना और! आज भले ही रेखा भारद्वाज की आवाज को लोग बहुत पसंद करते हैं लेकिन एक वक्त था जब खुद रेखा भारद्वाज को अफनी आवाज पसंद नहीं थी उन्हें लगता था कि वो कभी प्लेबैक सिंगर नहीं बन पाएंगी. उनका ये हौंसला किसी और ने नहीं बल्कि गुलजार साहब ने बढ़ाया. एक के बाद एक गाना और हौंसला बढ़ता गया फिर रेखा भारद्वाज ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.


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बचपन और संगीत


रेखा जब सिर्फ 3 साल की थीं तभी से उन्होंने गाना शउरू कर दिया था. संगीत से रेखा भारद्वाज का गहरा लगाव था. पिता का संगीत से इतना लगाव था कि हर महीने घर पर ही संगीत कार्यक्रम आयोजित किया जाता जिसमें रेखा भी गाया करतीं. बचपन से लता मंगेशकर की आवाज को सुनती आईं रेखा को लगा था कि वो कभी प्लेबैक सिंगर नहीं बन पाएंगी.



विशाल भारद्वाज ने दिया साथ


पहली बार जब पति विशाल भारद्वाज के साथ काम करने लगीं तो जो गाना चुना गया वो बुल्ले शाह के काफियां से लिया गया. 1993 में विशाल बआरद्वाज ने ठान लिया कि वो गाना कंपोज करेंगे और रेखा भारद्वाज गाएंगी, उस दौरान गुलजार साहब के साथ 'माचिस' को लेकर भी चर्चा चल रही थी. विशाल भारद्वाज के जरिए गुलजार से मिलीं. सफर फिर भी आसान नहीं था.



गुलजार ने बढ़ाया हौंसला


रेखा भारद्वाज की जिंदगी में विशाल भारद्वाज का आना. फिर प्यार से शादी का सफर उन्हें आग ले गया. दोनों भले ही एक-दूसरे स अलग थे लेकिन संगीत के लिए दोनों के प्यार ने उन्हें बांधकर रखा. उनकी आवाज में एक अकेलापन है. कई बार वो खुद कहती हैं कि ये अकेलापन डिप्रेशन का नहीं बल्कि सुकून का है.


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