नई दिल्ली.    अनुराग बसु अब सीधे ही हिन्दू धर्म और संस्कृति के विरोध में खड़े नजर आ रहे हैं. जिन्होंने उनकी बनाई बेसिरपैर की ये फिल्म- लूडो गलती से देख ली है उन्होंने अफ़सोस अपने डेढ़ दो घंटे एक बकवास फिल्म पर बर्बाद करने का तो है ही, साथ ही डर ये भी है कि बाकी लोग इसे देख कर इस फिल्म की बेशर्म कोशिश के शिकार न हो जाएंं जिसमें सीधे-सीधे हिन्दू धर्म का उपहास करने और सांकेतिक रूप से हिन्दू संस्कृति को चोट पहुंचाने की कोशिश की गई है. 


'पीके' की शैली में बनाया मजाक


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हिन्दू त्रिदेवों का बेशर्मी से मजाक बनाया गया है इस फिल्म में. और उसको बिलकुल उस ढंग से ही फिल्माया गया है जिस ढंग से आमिर खान की 'पीके' फिल्म में दिखाया गया था. स्वांग रचने वाले तीन लोग ब्रम्हा, विष्णु, महेश का भौंडा सा रूप धरे सड़क पर नाच-कूद कर रहे हैं, जिन्हें देख कर फिल्म का हीरो आदित्य राय कपूर वितृष्णा के भाव से मुंह बना रहा है. जान-बूझ कर इस तरह से कुछ हिन्दी फिल्मों में हिन्दुओं के देवी-देवताओं को फूहड़ स्वांग रचा कर पेश किया जा रहा है और उनको तरह तरह की घटिया हरकतें करते दिखाया जा रहा है जो भारत में हिन्दू धर्म-संस्कृति के विरुद्ध चली आ रही पुरानी फिल्मी साजिश को आगे बढ़ाने की नीच कोशिश है.


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महाभारत के प्रसंग पर बोला झूठ


महाभारत के कौरवों के विषय में कहने की आवश्यकता नहीं, सर्वविदित है कि वे नायक नहीं खलनायक थे. इसके विपरीत हिन्दुओं की इस धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत को झूठ बोल कर झूठा दिखाने की कोशिश की गई. ऊबड़-खाबड़ और बेसिर-पैर की इस फिल्म की शुरुआत में ही दो विदूषक लूडो का बोर्ड लेकर लूडो खेलने एक निर्जन स्थान में पहुंच जाते हैं जिसमें से एक अज्ञानी बनने का अभिनय करने वाला व्यक्ति दूसरे ज्ञानी बनने का अभिनय करने वाले व्यक्ति से पाप-पुण्य की परिभाषा पूछता है. इस तरह के प्रश्नों की हंसी उड़ाते हुए वह धूर्तता भरे उत्तर देता है जिसमें सत्य असत्य के रूप में स्थापित किये जाने की कोशिश होती है. इसी तरह उस अज्ञानी ने जब पूछा कि कौरव नायक थे या खलनायक तो उस दूसरे महा-ज्ञानी ने उनको नायक सिद्ध किया और पांडवों को खलनायक भी. अपने इस अ-धार्मिक झूठ के पांव लगाने के लिये वह एक झूठा प्रसंग भी स्वयं ही गढ़ कर सुना देता है.


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भारतीय जीवन-मूल्यों को नष्ट किया


फिल्म में दिखाया गया है कि मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाली हीरोइन जिसकी शादी चार दिन बाद होने वाली है, एक व्यक्ति के साथ जो उसका प्रेमी भी नहीं है, लिव-इन रिलेशन शुरू कर देती है. इस फिल्म की नायिकायें बेशर्मी से शराब पीते दिखाई जाती हैं और मुख्य नायिका जो चार दिन बाद विवाहित होने वाली है, एक दृश्य में हीरो के साथ सांकेतिक तौर पर रति-क्रिया करते भी नजर आते हैं. इस तरह ये दिखाने की कोशिश की गई है कि भारतीय युवतियों के भी जीवन-मूल्य किसी नैतिकता से बंधे नहीं हैं और उत्श्रंखलता और भोगवादी पश्चिमी संस्कृति के समर्थक बन रहे हैं आज के युवा.


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