सुशांत हत्याकांड: जांच को गुमराह करते समय हुईं ये आठ अहम गलतियां
सबूत छिपाना या सबूत मिटाना या जांच ही न होने देना- ये तीनों ही जांच को गुमराह करने के तरीके हैं. सुशांत हत्याकांड की जांच को गुमराह करने की कोशिश के दौरान कई गलतियां हुईं जिन्होंने साबित किया कि मामला वो नहीं जैसा दिखने की कोशिश की जा रही है, बल्कि मामला वो है जिसे छुपाने की कोशिश की जा रही है..
नई दिल्ली. जब अपने वीडियो में रिया चक्रवर्ती ने सत्यमेव जयते कहा था तो उनको पता नहीं था कि वे सच कह रही हैं. सत्य की जीत होती है और आज सत्य की ही जीत होती दिखाई दे रही है सुशांत हत्याकांड में. इन लोगों को लगा था कि प्लानिंग परफेक्ट है और इनके द्वारा अंजाम दिया गया ये कत्ल भी एक परफेक्ट मर्डर है. किन्तु ये कोल्ड ब्लडेड मर्डर कई सुराग छोड़ गया और हत्या के बाद का भी होमवर्क किसी थर्ड क्लास मुम्बइया फिल्म जैसा ही था जो स्क्रीन पर आते ही पिट गया.
सीक्वेंस नंबर 1- सुशांत का मर्डर
मुम्बइया फिल्मों की भाषा में यदि इस मर्डर की रात जो कुछ भी हुआ उसे इस मर्डर मिस्ट्री का सीक्वेंस नंबर वन मान लें तो इस सीक्वेंस का कोई चित्र या चलचित्र फिलहाल मौजूद नहीं है क्योंकि मिल नहीं सकता है. अभी सिर्फ इसकी कल्पना ही की जा सकती है क्योंकि फिलहाल इस पर कोई भी पुख्ता सबूत आधिकारिक तौर पर किसी के पास नहीं है
सीक्वेंस नंबर 2- सुशांत का स्टाफ
सीक्वेंस नंबर टू में सुबह का सीन नज़र आता है जब सुबह सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की खबर उड़ाई जाती है. सीक्वेंस नंबर टू में जिस तरह सुशांत की बहन का इंतज़ार नहीं किया जाता और दरवाजा जल्दी खुलवा लिया जाता है, दरवाजे का लॉक तोड़ने वाला फटाफट आ जाता है, अचानक दो-दो एम्बुलेंस सुशांत के शव को लेने आ जाती हैं, सुशांत के शव को उतार कर लिटा लिया जाता है, बाद में सिद्धार्थ नीरज दीपेश बताते हैं कि हम लोगों ने बॉडी को उतारा है जबकि एम्बुलेंस का ड्राइवर अलग से बताता है कि बॉडी को हमने उतारा है. लेकिन ये एम्बुलेंस ड्राइवर मीडिया के कैमरे पर बयान देने से बचने लगता है और पुलिस की धमकी देने लगता है. ऐसे में ये भी समझ नहीं आता कि बॉडी को उतारा गया या बॉडी पहले से उतरी हुई थी?
सीक्वेंस नंबर 3- पुलिस का पदार्पण
सीक्वेंस नंबर थ्री में पुलिस नज़र आती है. मुंबई पुलिस सीन में आते ही कहने लगती है ये आत्महत्या का मामला है. घर में मौजूद लोग पहले ही कह रहे होते हैं कि ये आत्महत्या है. मुंबई पुलिस सुशांत के शांत निष्प्राण शरीर को देख कर भी इसे आत्महत्या का मामला बताती है और कमरे में आत्महत्या का स्टूल न होने या गले में निशान बने होने पर कोई संदेह नहीं करते और मान लेते हैं कि कमरे में मिले कपड़े से ही सुशांत ने आत्महत्या की है और सम्भव है गले का निशान कपड़े ने ही बना दिया हो.
सीक्वेंस नंबर 4- शव को ले जाना
इसी नेबरहुड में रहने वाली सुशांत की बहन मीतू से कोई कुछ नहीं पूछता. और वे भी बिलकुल खामोश हो जाती हैं जो कि अभी तक खामोश ही हैं. पुलिस पास के सरकारी अस्पताल की बजाए दूर के एक निजी अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए बॉडी को ले जाती है. वहां सिर्फ एक घंटे में ही पोस्टमार्टम हो जाता है और उसकी रिपोर्ट अधूरी सामने आती है जिसमें आत्महत्या का समय ही नहीं लिखा होता है, मुंबई पुलिस किसी तरह की कोई एफआईआर दर्ज करने की जरूरत नहीं समझती है और उसके बाद देखते ही देखते सुशांत का अंतिम संस्कार हो जाता है.
सीक्वेंस नंबर 5- मुंबई पुलिस की 'जांच'
सीक्वेंस नंबर फोर में मुंबई पुलिस तथाकथित जांच शुरू कर देती है और नेपोटिज़्म और डिप्रेशन के दो जोरदार पत्ते खेले जाते हैं. सारा मामला नेपोटिज़्म से जुड़ा लगने लगता है बहुत सारे इंटरव्यू होने लगते हैं और पुलिस इन इंटरव्यूज को जांच बता कर खुश होती है. ये दिखाया जाने लगता है कि नेपोटिज़्म से दुःख सुशांत सिंह डिप्रेशन के शिकार हो गए थे जिसके कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली. किन्तु इसके बाद मीडिया की कोशिशों के बाद पुलिस की ये सारी चालें फ्लॉप हो जाती हैं क्योंकि मीडिया सुशांत की जिंदादिली के एक नहीं अनेक सबूत सामने लाती है और रहा सवाल नेपोटिज़्म का सुशांत की फिल्मों का लगातार हिट होना इस फिजूल के अनफिट तथ्य को बाहर कर देता है और तो और हत्या के एक दिन पहले भी सुशांत के एक नए प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई थी.
सीक्वेंस नंबर 6- बिहार पुलिस को असहयोग
सारे देश ने इन्डिया की सबसे जबर्दस्त पुलिस को जबर्दस्त ऐक्शन में देखा जब बिहार पुलिस सुशांत के पिता द्वारा की गई एफआईआर पर तफतीश करने मुंबई पहुंची. मुंबई की स्कॉटलैन्ड यार्ड ने जितना हो सका जम कर असहयोग किया बिहार पुलिस का. बिहार पुलिस के तीनों जांच अधिकारियों को लगातार महसूस कराया गया कि उन्हें पसन्द नहीं किया जा रहा है. इस जांच टीम ने जब मामले से जुड़े कुछ अहम दस्तावेजों की मांग की तो मुंबई पुलिस ने उनको वो भी उपलब्ध नहीं कराये.
सीक्वेन्स नंबर 7- विनय तिवारी का आगमन
इसके बाद बिहार पुलिस के एसपी विनय तिवारी को जांच के लिए मुंबई भेजा गया. दोनों राज्यों के पुलिस विभागों के बीच बातचीत भी हो गई और सूचनाओं का आवश्यक आदान-प्रदान भी हो गया. इसके बाद जब विनय तिवारी मुंबई पहुंचे तो अचानक मध्य रात्रि को उनको बताया गया कि आप क्वरेन्टीन कर दिए गए हैं अब 14 दिन बाद ही आप क्वारंटीन की अवधि पूर्ण करके बाहर आ सकेंगे और तभी आप कोई जांच भी कर पाएंगे. एक पुलिस अधिकारी को हाउस अरेस्ट कर दिया गया था कोरोना के नियमों का फायदा उठा कर. कोई कुछ न कर सका -न विनय तिवारी, न बिहार पुलिस और न ही बिहार के मुख्यमंत्री.
सीक्वेंस नंबर 8- सीबीआई जांच का विरोध
ये बताये बिना कि क्यों नहीं चाहिए सीबीआई जांच, मुंबई पुलिस ने कहा कि हमें सीबीआई जांच नहीं चाहिए, हम जांच करने में सक्षम हैं. हालांकि उसने ये नहीं कहा कि हम वास्तव में जांच करेंगे या नहीं. फिर प्रदेश के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने भी टीवी पर बयान दिया कि सीबीआई जांच नहीं चाहिए. उसके बाद और भी ऊपर के सियासतदारों ने भी यही कहा - नहीं चाहिए सीबीआई इंटरवेंशन..हम कर लेंगे इन्वेस्टिगेशन ! लेकिन न्याय तो होना ही था, सीबीआई आई और उसके बाद अब तक जो हुआ है, आप देख ही रहे हैं. सत्यमेव जयते !!
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