मैं सुशांत सिंह राजपूत.. आप सभी को कुछ बताना चाहता हूं, हर कोई यही सोचता है मैंने इस दुनिया के षड्यंत्र और मानसिक तनाव के चलते आत्महत्या कर ली. मगर इसमें ज़रा भी सच्चाई नहीं है, क्योंकि मैं आत्महत्या कर ही नहीं सकता हूं. मेरी पूरी जिंदगी इस बात की सबसे बड़ी साक्ष्य है कि मैं एक जिंदादिल इंसान था, जो कभी भी खुदकुशी कर ही नहीं सकता. यदि आपको इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है, तो मैं आपको समझाता हूं कि मैं ये बार-बार क्यों कह रहा हूं कि मैंने सुसाइड नहीं किया.


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मेरे मरने के बाद मुझसे जुड़ी ढेर सारी बातें आपतक तरह-तरह के माध्यम से पहुंच गई होंगी, लेकिन मैं भी आपको कुछ बताना चाहता हूं. मेरी जिंदगी में आम और खास के बीच कोई फर्क नहीं था, क्योंकि मैंने अपने करियर की शुरुआत दिल्ली में थिएटर के जरिए की थी, आपको शायद ही मालूम होगा कि उस वक्त मुझे एक थिएटर करने का 250 रुपये मिलता था, लेकिन मेरा जुनून और मेरी उत्तेजना मुझे हमेशा आगे की तरफ ढ़केलती रही.



दिल्ली के बाद मुंबई, बैकअप डांसर, IIFA अवार्ड के स्टेज पर स्टार्स के पीछे डांस करना, सीरियल में छोटा सा रोल, पवित्र रिश्ता, काई पो चे, शुद्ध देसी रोमांस... एक के बाद एक फिल्में और मेरी जिंदगी को बदल देने वाला प्रोजेक्ट महेंद्र सिंह धोनी की बायोग्राफी.. मैं बढ़ता रहा, लेकिन मैंने कभी अपनी जमीन नहीं छोड़ी. मुझे मालूम था कि मेहनत और हुनर को मौके की तलाश होती है. ऐसे ही हुनर को तराशना मेरा सपना बन गया. मेरी 34 साल की जिंदगी का सफर इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि मैं अपने सपने को पूरा करने के लिए जमीन आसमान एक कर सकता था. मैं वही सुशांत था, जो कभी एक थिएटर करके 250 रुपये कमाता था. इसी के साथ मेरे सपनों की लिस्ट बन चुकी थी. "ड्रीम 50"


मेरा "ड्रीम 50" अधूरा रह गया


मैं अपने 'ड्रीम 50' को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत कर रहा था, लोगों ने मुझे रोकने की काफी कोशिश की. कुछ मीडिया के साथियों ने तो मुझे "Bad Boy of Bollywood" की उपाधि दे दी. लेकिन मेरी हर उड़ान से मुझे और ताकत मिलती थी. क्या आपको मालूम है कि मेरी ड्रीम 50 की लिस्ट में क्या-क्या शामिल था?


इस ड्रीम 50 की सूची में से कुछ सपनों को मैंने पंख लगा दिया था, लेकिन कई मुख्य सपने पूरे करने अभी बाकी थे. मैं प्रकृति से बहुत प्रेम करता था इसीलिए मैंने 1000 पेड़ लगाने का लक्ष्य रखा था.


इस लिस्ट में कई ख्वाब अधूरे रह गए, लेकिन मैंने इसे अधूरा नहीं छोड़ा. मैं तो लगातार अपने सपनों को पूरा कर रहा था. मैं 100 बच्चों को इसरो या नासा में वर्कशॉप के लिए भेजना चाहता था. मैं कोडिंग सीखना चाहता था, क्योंकि मैंने भविष्य को महसूस किया था. आने वाले वक्त में हिंदी, अंग्रेजी की तरह कोडिंग भी एक प्रकार की भाषा होगी. मैं तो अंधे लोगों को भी कोडिंग सिखाना चाहता था.


मैंने चांद पर जमीन खरीदी थी


मैंने भूमि इंटरनेशनल लूनर लैंड्स रजिस्ट्री से चांद पर जमीन खरीदी थी. एक अडवांस टेलिस्कोप मीड 14, LX00 से मैं उसे देखता था. मैं अपनी जिंदगी के हर लक्ष्य की तरफ बढ़ ही रहा था. मैं बहुत खुश था. मुझसे प्यार करने वालों की तादाद काफी थी, इसलिए मुझे नफरत करने वालों की बिल्कुल परवाह नहीं थी.



ड्रीम 50 में मेरा सबसे खास सपना ये था कि मैं औरतों को सेल्फ-डिफेंस, यानी आत्म-रक्षा की ट्रेनिंग देने में मदद करना चाहता था. ड्रीम 50 के अलावा भी ऐसे बहुत से सपने थे. जो अभी भी अधूरे रह गए, उनमें से एक ख्वाब 'पानी' मूवी भी है. बहुत से लोग कह रहे कि मैंने उस प्रोजेक्ट के चलते आत्महत्या कर ली. जो इस गलतफहमी में जी रहा है उसे मैं ये नसीहत देता चाहता हूं कि प्लीज़ आप लोग मेरे बारे में तुक्का लगाने के बजाय मेरी फिल्म छिछोरे को दिल से देखिए और समझिए...


मैं दावा करता हूं कि छिछोरे देखने के बाद आपको यकीन हो जाएगा कि मैं कभी सुसाइड कर ही नहीं सकता. मैंने जिंदगी में बहुत उतार चढ़ाव देखे हैं. मुझे जान से प्यारी मेरी मां ने उस वक्त इस दुनिया को छोड़ दिया जब मैं सिर्फ 16 साल का था. उस वक्त मैं बहुत कमजोर था. मेरी जिंदगी की वो एक कमी कभी नहीं पूरी हुई. लेकिन मैंने कभी Give Up नहीं किया. जब मैंने अपनी मां को खोने के बाद ऐसा कदम नहीं उठाया, तो भला कुछ करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट और मेरे साथ हो रहे दुर्व्यवहार के चलते मैं जिंदगी का साथ छोड़ दूंगा? अगर मैं इतनी आसानी से हार मान जाता तो मैं आज भी दिल्ली के मंडी हाउस के बाहर चाय समोसे खाकर अपनी किस्मत को कोसता रहता और यहां तक कभी नहीं पहुंच पाता.


जिन लोगों ने इस बात पर यकीन कर लिया कि मैंने आत्महत्या कर लिया, वो शायद मुझे कभी नहीं समझ पाएंगे. मैं किसी को समझाना नहीं चाहता, लेकिन इस दुनिया को ये चीख-चीखकर बताना चाहता हूं कि मैं बुज़्दिल नहीं हूं, मैंने खुद को नहीं मारा, मैंने सुसाइड नहीं किया, मैंने मौत को गले नगीं लगाया. क्योंकि मैंने अपनी आखिरी फिल्म दिल बेचारा.. में भी यही कहा है कि "जन्म कब लेना है और मरना कब है? हम डिसाइड नहीं कर सकते.. पर कैसे जीना है हम डिसाइड कर सकते हैं"


क्या आपने इस बात पर यकीन कर लिया कि मैं यानी सुशांत सिंह राजपूत, जो फिल्मों के जरिए जीने का अंदाज सिखाने की कोशिश करता रहा. मैंने हमेशा अपनी जिंदगी में हार को हराकर हर बार जीत को गले लगाया. असल जिंदगी से लेकर पर्दे तक मैंने जिसने हमेशा चुनौती को चुनौती देकर उसे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. और ये दुनिया आज मेरे रहस्यमयी मौत पर ये स्वीकार कर रही है कि मैं इतना कमजोर पड़ गया कि खुदकुशी कर ली. कोई भला ये सोच भी कैसे सकता है?


हां, एक बात और क्या कभी आपके मन में ये सवाल नहीं उठा कि अगर मैंने खुद से फांसी लगाई होती तो मेरे गले का निशान.. चोट का निशान.. और भी कई सवाल हैं, जो आपके मन में भी जरूर आए होंगे. मेरी मौत भले ही एक राज हो, लेकिन मैंने आत्महत्या नहीं की है और ना ही मुझे ठीक से ये याद है कि मुझे किसने मारा और क्यों मारा है? मरने तक मुझे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि....          इसीलिए मैं भी चाहता हूं कि मेरी मौत के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए एक उच्च स्तरीय जांच हो, जैसे कि हर कोई CBI जांच की मांग कर रहा है. मैं भी बड़े स्तर की जांच की मांग करता हूं, क्योंकि मैंने आत्महत्या नहीं की. "मैं सुशांत सिंह राजपूत, मैं सुसाइड कर ही नहीं सकता..!"  


यह अभी तक मिले सबूतों के आधार पर आयुष सिन्हा की कलम से लिखा गया है.