नई दिल्लीः देशभर के स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों द्वारा गैर शैक्षणिक कार्यों से अलग रखने की मांग को लेकर अक्सर आवाजें उठती हैं, लेकिन देश की न्यायपालिका में ये आवाज मौन नजर आती है. इसके बावजूद पिछले दस वर्षों में गैर न्यायिक कार्यों में कार्यरत जजों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है.


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गैर न्यायिक कार्य में जजों की बढ़ती संख्या
देशभर की अदालतों में न्यायिक कार्यों के लिए नियुक्त जजों में से करीब 2000 जज गैर न्यायिक कार्यों में लगे हुए हैं. ये संख्या देश की जिला अदालतों में कार्यरत कुल जजों की संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक है.


SC में 18 हाई कोर्ट का पेश किया गया ब्योरा
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के एएसजी के एम नटराज ने हाल ही में एक केस की सुनवाई के दौरान देश के 18 हाई कोर्ट के अधीन जिला अदालतों में गैर न्यायिक कार्य में लगे जजों का ब्योरा पेश किया था. उनके दिए गए आकड़ों के अनुसार 18 हाई कोर्ट के अधीन कार्यरत 17,020 जजों में से 15,391 जज न्यायिक कार्य में और 1869 जज गैर न्यायिक कार्य में लगे हुए हैं. के एम नटराज ने गैर न्यायिक कार्य में अधिक संख्या को पेंडेंसी का बड़ा कारण बताया है.


सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों व उच्च अदालतों से मांगा जवाब
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि देश में न्यायिक अधिकारियों की एक बड़ी संख्या गैर न्यायिक कार्य में लगी हुई है. केंद्र ने देश की सर्वोच्च अदालत के साथ ही सभी हाई कोर्ट और जिला अदालतों में प्रशासनिक कार्यों के संचालन के लिए प्रबंधकों के एक विशेष कैडर का सुझाव दिया है. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के दिए सुझाव के साथ ही इन्फ्रास्ट्रक्चर पर किए गए खर्च की जानकारी के लिए सभी हाई कोर्ट और राज्यों से 4 सप्ताह में जवाब मांगा है.


4.24 करोड़ केसों की पेंडेंसी और 5343 पद रिक्त
हाल ही में केंद्रीय कानून मंत्री ने राज्यसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए बताया था कि देशभर की जिला अदालतों में जजों के स्वीकृत 24,631 पदों पर कुल 19,288 जज कार्यरत हैं. सरकार के अनुसार 29 जुलाई 2022 तक देश की जिला अदालतों में कुल 5,343 जजों के पद रिक्त हैं. इसी तारीख को इन अदालतों में लंबित केसों की संख्या 4 करोड़ 24 लाख 7 हजार 800 है.


देश में वर्तमान में जिला एवं अधीनस्थ अदालतों के लिए कुल 20,595 कोर्ट रूम और 18,000 से अधिक आवास उपलब्ध हैं.  


विधिक सेवा- सबसे बड़ा कार्यक्षेत्र
पिछले कुछ वर्षों में देश की अदालतों में लंबित केस कम करने के लिए राष्ट्रीय लोक अदालत और स्थायी लोक अदालतें बड़ा जरिया बनकर उभरी हैं. 2011 के बाद तो खासतौर से मुकदमों के एक साथ डिस्पोजल के लिए राष्ट्रीय लोक अदालत एक नया जरिया बन गया, लेकिन अदालतों में बैठकर न्यायिक कार्य करने वाले जजों के लिए गैर न्यायिक कार्य का यह सबसे बड़ा कार्यक्षेत्र भी बन गया.


वर्तमान में देशभर में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, राज्य और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से लेकर तालुका विधिक सेवा समिति तक में करीब 800 से अधिक न्यायिक अधिकारी कार्यरत हैं.


नालसा के अधीन देशभर में 36 राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और 670 जिला विधिक सेवा प्राधिकरण कार्यरत हैं. इन सभी 36 राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में सदस्य सचिव के रूप में वरिष्ठ जिला एवं सत्र न्यायाधीश कार्यरत हैं. वहीं जिला प्राधिकरणों में एडीजे से लेकर एसीजेएम स्तर के न्यायिक अधिकारी जिला सचिव के रूप में गैर न्यायिक कार्य में जुटे हुए हैं.


देश के कई राज्यों में राज्य सरकारों को लीगल ओपिनियन देने का काम भी अब जिला एवं सत्र न्यायाधीश स्तर के अधिकारी करने लगे हैं.


कई राज्यों के विधि विभागों में प्रमुख विधि सचिव के पद को छोड़ दिया जाए तो भी 5-6 न्यायिक अधिकारी गैर न्यायिक कार्य में लगे हुए हैं. इनका कार्य केवल सरकार को ओपिनियन देने से लेकर प्रशासनिक कार्य करना है. इसी तरह सरकार के बड़े संस्थानों में भी लॉ डायरेक्टर जैसे पदों के लिए बाकायदा नियमों में बदलाव कर जिला एवं सत्र न्यायाधीश स्तर के अधिकारी की नियुक्ति का रास्ता तैयार किया गया, जबकि दूसरी तरफ सरकार को ओपिनियन देने के लिए लीगल सर्विस के अधिकारियों का एक पूरा सिस्टम इन राज्यों में मौजूद है.


कई आयोग के रजिस्ट्रार
देश के कई राज्यों में कार्यरत लोकायुक्त कार्यालयों, राज्य उपभोक्ता आयोग से लेकर राज्य मानवाधिकार आयोग कार्यालयों में रजिस्ट्रार से लेकर डिप्टी रजिस्ट्रार के पद पर भी न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति की गई है. 2010 के बाद इस तरह के आयोगों में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति बढ़ी है.  


मुख्य न्यायाधीश के निजी सचिव
देश में वर्तमान में 25 हाई कोर्ट कार्यरत हैं. प्रत्येक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की सहायता के लिए मुख्य न्यायाधीश कार्यालय में एक नियत संख्या में स्टाफ नियुक्त होता है. देश के कई राज्यों में मुख्य न्यायाधीश के मुख्य निजी सहायक का कार्य मंत्रालयिक कर्मचारी या हाईकोर्ट सर्विस स्टाफ वर्षों से सेवाएं दे रहे हैं. दूसरी तरफ कई हाई कोर्ट में यही कार्य डीजे स्तर के न्यायिक अधिकारी कर रहे हैं, जिनकी नियुक्ति को लेकर अक्सर सवाल भी खड़े होते रहे हैं.  


जरूरत या इच्छा
राज्य के लॉ डिपार्टमेंट लीगल ऑफिसर द्वारा संचालित किए जाने चाहिए, इसके लिए बाकायदा जेएलओ, लीगल ऑफिसर, सीनियर लीगल ऑफिसर तक के पद सभी राज्यों में अलग-अलग नाम से हैं. केवल प्रमुख विधि सचिव का पद ही जिला एवं सत्र न्यायाधीश स्तर के अधिकारी के लिए रिजर्व होता था, लेकिन पिछले कुछ सालों में ही राज्यों के विधि विभाग पर पूर्णतया न्यायिक अधिकारियों के अधीन आ गए हैं. प्रमुख विधि सचिव के साथ अब 5-6 विधि सचिव के पदों पर भी न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति की जाने लगी हैं. ये पद केवल इन अधिकारियों के लिए राज्यों की राजधानी में रुके रहने का जरिया मात्र बन गया.


अदालतों में अनुभवी अधिकारियों की जरूरत 
देश के कई राज्यों में अनुभवी न्यायिक अधिकारी भी सरकार को लीगल ओपिनियन देने या जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों में प्रशासनिक कार्य के लिए लगे हुए हैं. एक तरफ जहां देश की अदालतों में अनुभवी न्यायिक अधिकारियों की जरूरत है, वहीं इन अधिकारियों की नियुक्ति गैर न्यायिक कार्यों में होने से न्याय प्रणाली को दोहरा नुकसान हो रहा है.


अधिकतर विधि विभागों में 20 साल से अधिक सेवा के अनुभव वाले न्यायिक अधिकारी कार्य कर रहे हैं, जिससे दो तरह से नुकसान हो रहा है. उनके अनुभव का लाभ नहीं मिल पाने से एक ओर जहां ज्यूडिशरी को नुकसान हो रहा है, वहीं जिस कार्य का इन अधिकारियों को अनुभव नहीं है वह कार्य करने को मिल रहा है, जिसमें पॉलिसी मेकिंग और रेवेन्यू से जुड़े हुए मामले आते हैं. इन दोनों ही मामलों में न्यायिक अधिकारी को कोई अनुभव नहीं होता है.


केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि जजों का न्यायिक समय न्याय देने के लिए खर्च किया जाना चाहिए, ना कि प्रशासनिक, वित्तीय, विधिक सेवा या अन्य कार्य के लिए. केंद्र ने रजिस्ट्रार की निगरानी में प्रबंधकों के एक विशेष काडर तैयार करने का सुझाव दिया. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के सुझाव को स्वीकार नहीं किया है, लेकिन कई बिंदुओं पर सभी हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से जवाब मांगा है.


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