नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट के सीनियर मोस्ट जज जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने देश के 50 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित हुए भव्य समारोह में उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई. जस्टिस चन्द्रचूड़ के शपथ लेने के साथ ही देश के न्यायिक इतिहास में यह पहला मौका दर्ज हो गया है जब पहले मुख्य न्यायाधीश रह चुके शख्स के बेटे ने भी मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली हो. जस्टिस चंद्रचूड़ का दो साल का कार्यकाल होगा और वह 10 नवंबर 2024 को रिटायर होंगे.


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जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ देश की न्यायपालिका में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में एक उदार और मानवतावादी जज के रूप में पहचाने जाते हैं. खासतौर पर जब महिलाओं और हाशिए के लोगों के अधिकारों से संबंधित मुद्दों की बात आती है. तब जज के रूप में उन्होंने कई अहम और परिवर्तनकारी दृष्टिकोण का साहस के साथ समर्थन किया है. लेकिन एक हकीकत ये भी है कि उनके फैसलों की अधिकता और विभिन्नता बहुत अधिक है उन्हें किसी एक विचारधारा के भीतर बंधा हुआ नहीं समझा जा सकता है.


जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ का सफर
-11 नवंबर 1959 को जन्मे जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ का पूरा नाम 'धनंजय यशवंत चंद्रचूड़' है. इनके पिता वाई वी चंद्रचूड़ भी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे हैं.
-सेंट स्टीफंस कॉलेज, नई दिल्ली से इकोनॉमिक्स में ऑनर्स की डिग्री हासिल की.
-कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री.
-हार्वर्ड लॉ स्कूल, यूएसए से एलएलएम की डिग्री और न्यायिक विज्ञान (एसजेडी) में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.
-अधिवक्ता के तौर पर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट, गुजरात, कलकत्ता, इलाहाबाद, मध्य प्रदेश और दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस की.
-जून 1998 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट नियुक्त किया गया.
-वर्ष 1998 से 2000 तक वे भारत सरकार के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल रहें.
-29 मार्च 2000 में उन्हे बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किया गया.
-बॉम्बे हाईकोर्ट के जज रहते महाराष्ट्र न्यायिक अकादमी के निदेशक पद पर रहे.  
-29 मार्च 2000 से इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज बनने तक, बॉम्बे हाईकोर्ट में जज रहें.
-अक्टूबर 2013 में उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली थी.
-जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त किए गए.


बेहद मांग में रहने वाले जज प्रोफेसर
जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ को एक जज के साथ साथ एक बेहतरीन वक्ता और शिक्षक के रूप में पहचान मिली हुई है. देश और दुनिया के कई संस्थानों और कार्यक्रमों में जस्टिस चन्द्रचूड़ की बेहद मांग रही हैं. लोकतंत्र की स्वतंत्रता, आजादी से लेकर मानवीय मूल्यों को लेकर दिए गए उन्हे व्याख्यान हमेंशा ही उनके फैसलों की तरह ही चर्चा में रहे हैं.


जस्टिस चन्द्रचूड़ मुंबई विश्वविद्यालय में संवैधानिक कानून के विजिटिंग प्रोफेसर रहें है.अमेरिका के ओक्लाहोमा यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ में भी विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर काम कर चुके हैं. ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, हार्वर्ड लॉ स्कूल, येल लॉ स्कूल और यूनिवर्सिटी ऑफ़ वीट वाटर सैंड, दक्षिण अफ्रीका में दर्जनों व्याख्यान दे चुके हैं. मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र उच्चायोग, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक सहित  संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक सहित संयुक्त राष्ट्र के निकायों द्वारा आयोजित सम्मेलनों में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ में दिए गए उनके व्याख्यान आज भी याद किए जाते हैं.


ऐतिहासिक फैसलों की लंबी फ़ेहरिस्त
13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त होने के बाद से जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नाम पर अनगिनत ऐतिहासिक फैसले हैं. ​उनके फैसलों की फेहरिस्त बेहद लंबी है. आईए कुछ फैसलों पर नजर डालते हैं.


-24 अगस्त 2017 को नौ जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया.


-22 जुलाई 2022 को एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 24 हफ्ते की गर्भवती अविवाहित महिला को गर्भपात की इजाज़त दे दी.


-6 सितंबर 2018 को देश की सर्वोच्च अदालत ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है. इसके अनुसार आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अब अपराध नहीं माना जाएगा.


-शफ़ीन जहान बनाम अशोकन के एम मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने हादिया के धर्म और विवाह के लिए साथी की पसंद को सही ठहराया.


-सबरीमाला मंदिर मामले में, उन्होंने माना कि सबरीमाला मंदिर से 10-50 वर्ष की आयु के बीच की महिलाओं को बाहर करना संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन है.


-दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच विवाद के मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि उपराज्यपाल दिल्ली के कार्यकारी प्रमुख नहीं हैं.


-तहसीन पूनावाला मामले में जज लोया की मौत की परिस्थितियों की जांच की मांग को खारिज कर दिया था.


-जोसेफ शाइन मामले में, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने व्यभिचार को अपराध से मुक्त करने में बहुमत की राय से सहमति व्यक्त की. उन्होंने पाया कि आईपीसी की धारा 497 (व्यभिचार) संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है.


-पत्रकार मोहम्मद जुबैर मामले में उन्हें ज़मानत दे दी और कहा कि गिरफ्तारी की शक्ति का प्रयोग संयम से किया जाना चाहिए.


-रोमिला थापर मामले में भीमा कोरेगांव में कथित रूप से हिंसा भड़काने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक आपराधिक साजिश में भाग लेने के लिए पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के संबंध में बेंच के एसआईटी नहीं बनाने के फैसले पर अहसमति जताई.


-साल 2018 में आधार की अनिवार्यता और उससे निजता के उल्लंघन पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने बहुमत से कहा कि आधार नंबर संवैधानिक रूप से वैध है. लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ ने इससे अलग राय जताते हुए आधार को असंवैधानिक करार दिया.


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