नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट सहित देशभर के हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीशों के तबादले और नए मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्तियों से लेकर नए हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति का सिलसिला शुरू होने जा रहा है. जस्टिस यूयू ललित के देश के 49वें मुख्य न्यायाधीश नियुक्त होने के बाद से ही उनके कार्यकाल की पहली कॉलेजियम की बैठक और उसके द्वारा की जाने वाली सिफारिश को लेकर इंतजार था.


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17 नए नामों की सिफारिश
मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की दो बैठकों के जरिए हाईकोर्ट जज नियुक्ति के लिए 17 नए नामों की सिफारिश केन्द्र को की गई है. वही 3 एडिशनल जजों को स्थायी करने के लिए निर्णय लिया गया है.


सोमवार देर शाम जारी किए गए कॉलेजियम स्टेटमेंट के अनुसार सीजेआई ललित की अध्यक्षता में 7 सितंबर को हुई पहली कॉलेजियम की बैठक में 9 नाम पर निर्णय लिया गया. जिसमें 6 न्यायिक अधिकारियों को बॉम्बे हाईकोर्ट के जज के तौर पर पदोन्नत किया गया. वहीं 3 अतिरिक्त न्यायाधीशों को कर्नाटक हाईकोर्ट में स्थायी जज बनाया गया.


12 सितंबर सोमवार को हुई कॉलेजियम की दूसरी बैठक में बॉम्बे हाईकोर्ट के लिए 2 और पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में 9 नए जज की नियुक्ति की सिफारिश केंद्र को भेजी गई है. कॉलेजियम की इन बैठकों में एक खास बात ये हुई है कि इसमें सात महिलाओं को जज बनाने की सिफारिश की गई है.


पदोन्नति के लिए  तबादले और नियुक्ति
सूत्रों के अनुसार सीजेआई यूयू ललित के कार्यकाल के तीसरे-चौथे सप्ताह में कॉलेजियम की लगातार बैठकों के जरिए सुप्रीम कोर्ट के लिए 4 जज, वरिष्ठ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के बड़े हाईकोर्ट में तबादले और कई सीनियर मोस्ट जजों को पदोन्नति के रूप में हाईकोर्ट मुख्य न्यायाधीश बनाने को लेकर फैसले लिए जा सकते हैं.


7-12 सितंबर को हुई कॉलेजियम बैठक में भी देश के अलग अलग हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर निर्णय हुए हैं- राजस्थान हाईकोर्ट, इलाहाबाद हाईकोर्ट सहित कई हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति की पेंडिंग फाइल को भी अगले सप्ताह तक पंख लग सकते हैं.


कॉलेजियम अगले कुछ दिनों में सुप्रीम कोर्ट में 4 जजों की नियुक्ति पर भी सहमति बनाने के लिए बैठक कर सकता हैं. पूर्व सीजेआई एन वी रमन्ना, जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस एलएन राव और जस्टिस एएम खानविलकर के रिटायर होने के चलते ये पद रिक्त हुए हैं. अब इन पदों पर नियुक्ति के लिए बार के प्रतिनिधि के तौर 2 वकीलों और 2 हाई कोर्ट जजों के नाम को लेकर चर्चा शुरू हो चुकी हैं.


गौरतलब है कि सीजेआई यूयू ललित का कार्यकाल 8 नवंबर 2022 तक हैं. ऐसे में कॉलेजियम के फैसले लेने के लिए उनके पास 8 अक्टूबर तक का वक्त हैं. परंपरा के अनुसार सेवानिवृति से एक माह पूर्व मुख्य न्यायाधीश बड़े फैसले से खुद को अलग करते हैं. पूर्व सीजेआई रमन्ना ने भी सेवानिवृति से ठीक एक माह पूर्व 26 जुलाई को अंतिम कॉलेजियम की बैठक की थी.


क्षेत्र हाईकोर्ट का प्रतिनिधित्व
कानूनविदों के अनुसार कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट में 4 पदों के लिए बार और बेंच से नामों का चयन कर सकता है. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस डॉ रवि रंजन, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस रविशंकर झा के नाम सुप्रीम कोर्ट के लिए वरिष्ठता क्रम है.


सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल 16 हाईकोर्ट का प्रतिनिधित्व मौजूद हैं, जिसमें सर्वाधिक दिल्ली हाईकोर्ट के 4 जज मौजूद है. इसी तरह बॉम्बे हाईकोर्ट, कर्नाटक हाईकोर्ट और गुजरात हाईकोर्ट के 3-3 जज सुप्रीम कोर्ट में हैं.


कोलकाता केरल पंजाब हरियाणा राजस्थान मद्रास और इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2-2 जज मौजूद हैं, वहीं मध्यप्रदेश उत्तराखंड और गुवाहाटी हाईकोर्ट से 1-1 जज हैं.


इसी के चलते वरिष्ठता के बावजूद कई हाईकोर्ट के वरिष्ठ मुख्य न्यायाधीश के नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम नजरअंदाज कर सकता है. वहीं अब तक सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधित्व से दूर रहे हाईकोर्ट से जजों के नाम आगे बढ़ाये जा सकते हैं.


मित्तल, मागरे, मनिंदरसिंह
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों में जम्मू कश्मीर सीजे जस्टिस पंकज मित्तल और झारखंड सीजे जस्टिस डॉ रवि रंजन के नाम सर्वाधिक चर्चा में हैं. जस्टिस मित्तल मूल इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज हैं. वहीं डॉ रंजन मूल पटना हाईकोर्ट के जज हैं. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में पटना हाईकोर्ट के प्रतिनिधि के तौर पर एक भी जज नहीं हैं. वहीं देश की सर्वाधिक संख्या वाले इलाहाबाद से मात्र 2 जज हैं.


इसके साथ ही पटना हाईकोर्ट सीजे जस्टिस संजय करोल और पंजाब हरियाणा सीजे जस्टिस रवि शंकर झा के नाम भी चर्चा में हैं. जस्टिस करोल मूल हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के जज हैं और सुप्रीम कोर्ट में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के कोई जज नहीं हैं. वहीं जस्टिस रविशंकर झा का मूल हाईकोर्ट मध्यप्रदेश हाईकोर्ट हैं. वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट से जस्टिस जे के माहेश्वरी हैं.


धर्म, वर्ग का प्रतिनिधित्व
हमारे देश की सर्वोच्च अदालत में कभी भी धर्म या क्षेत्र के अनुसार जजों की नियुक्ति का प्रावधान नहीं है, लेकिन आजादी के बाद से ही सर्वोच्च अदालत में सभी धर्मों जातियों और क्षेत्रों के उचित प्रतिनिधित्व को महत्व दिया जाता रहा है. जिसके लिए कई बार वरिष्ठता क्रम को भी नजरअंदाज किया गया है, कई बार बिना कारण के भी वरिष्ठता क्रम को नजरअंदाज कॉलेजियम ने किया है.


कानूनविदों के अनुसार वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अब्दुल नजीर जस्टिस के एम जोसेफ जस्टिस जे बी पारदीवाला के रूप में मुस्लिम ईसाई और फारसी के प्रतिनिधित्व का सामंजस्य है.


जस्टिस एस अब्दुल नजीर चार माह बाद 4 जनवरी 2023 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. उनकी सेवानिवृत्ति से पूर्व सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम नए मुस्लिम जज की नियुक्ति कर सकता है. वर्तमान में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अमजद एहतेशाम सैयद एकमात्र हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हैं. जो कि मूल बॉम्बे हाईकोर्ट के जज हैं.


सर्वोच्च अदालत में बॉम्बे हाईकोर्ट के तीन जज मौजूद हैं. मूल पटना हाईकोर्ट के जज जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह वरिष्ठता क्रम में जस्टिस अमजद एहतेशाम सैयद के बाद दूसरे नंबर पर है, जिनका कार्यकाल लंबे समय 10 मई 2025 तक है.


ऐसे में जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के सीनियर मोस्ट जज जस्टिस अली मोहम्मद मागरे सर्वाधिक चर्चा में हैं, क्योंकि वर्तमान में देश की सर्वोच्च अदालत में जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट का प्रतिनिधित्व नहीं हैं. वहीं मागरे मुस्लिम जज भी हैं ऐसे में वे देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंचने वाले कश्मीर के पहले मुस्लिम जज हो सकते हैं.


सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जे एस खेहर के बाद किसी भी सिख जज की नियुक्ति नहीं हो पाई है. ऐसे में बार कोटे से सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह, पी एस पटवालिया का नाम सर्वाधिक चर्चा में है. मनिंदर सिंह मजहबी सिख भी हैं. आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत इन्हें अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है.


बार का प्रतिनिधित्व
सीनियर एडवोकेट पी एस पटवालिया, मनिंदर सिंह, एन वेंकटरमण, के वी विश्वनाथन ऐसे नाम हैं, जो लंबे समय से बार के प्रतिनिधित्व के नाम के तौर पर चर्चा में हैं.


करीब चार दशक से लीगल फिल्ड में प्रेक्टिसरत पी एस पटवालिया सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट हैं. पटवालिया के पिता जस्टिस कुलदीप सिंह देश की सर्वोच्च अदालत के जज रहे हैं. 1988 में जस्टिस कुलदीप सिंह देश की आजादी के बाद एडवोकेट से सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त होने वाले चौथे अधिवक्ता रहे हैं. पी एस पटवलिया ने अपने वकालत के सफर की शुरुआत 1987 से पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट से की.


एडवोकेट मनिंदर सिंह के जरिए सुप्रीम कोर्ट में बार के प्रतिनिधि के रूप में भी एक मजबूत पक्ष हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से कॉमर्स ग्रेजुएट मनिंदर सिंह को टेलीकॉम, ब्रॉडकास्टिंग और अन्य विवादों के मामले में विशेषज्ञता हासिल हैं. मनिंदर सिंह को वर्ष 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट मनोनीत किया गया.


जून 2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद उन्हें केन्द्र सरकार के मामलो की पैरवी के लिए एएसजी नियुक्त किया गया. लेकिन बाद में 2018 में मनिंदर सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. मनिंदर सिंह देश देश के कई बहुचर्चित और हाईप्रोफाइल मामलों में पैरवी कर चुके हैं.


बार के प्रतिनिधि के रूप में एएसजी एन वेकंटरमण और के वी विश्वनाथन के नाम भी चर्चा में हैं. एन वेंकटरमण को टैक्सेशन और कमर्शियल कानूनों के मामले में विशेषज्ञता हासिल हैंटैक्सेशन के मामले में तो वे सबसे अधिक मांग वाले वकीलों में से एक हैं- वेंकटरमन वर्ष 2006 में 39 वर्ष की कम उम्र में सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित होने वाले देश के सबसे कम उम्र के अधिवक्ताओं में से एक हैं. सीनियर एडवोकेट के रूप में वेंकटरमन ने अब तक देश की बॉम्बे, दिल्ली, कलकत्ता और मद्रास चार्टर्ड हाईकोर्ट सहित कुल 23 हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर चुके हैं.


महिला प्रतिनिधित्व
देश की सर्वोच्च अदालत में वर्तमान में कार्यरत 30 में से 4 जज महिलाएं हैं. जस्टिस इंदिरा बनर्जी अगले कुछ दिनों में 23 सितंबर को सेवानिवृत होने जा रही हैं. ऐसे में ये संख्या घटकर फिर से 3 हो जाएगी.


सीजेआई यूयू ललित ने हाल ही में पुडुचेरी में डॉ बी आर अंबेडकर राजकीय विधि महाविद्यालय के स्वर्ण जयंती समारोह के समापन समारोह को संबोधित किया था. जिसमें उन्होंने न्यायपालिका में महिला प्रतिनिधित्व की वकालत करते हुए कहा था कि निकट भविष्य में न्यायपालिका की शोभा बढ़ाने वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि होगी.


हाल ही सीजेआई ललित की अध्यक्षता में हुई दो बैठकों में तीन हाईकोर्ट में 17 जज नियुक्त करने की सिफारिश की गई, जिसमें सात महिलाएं शामिल हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में चौथे पद के लिए महिला जज की नियुक्ति की जा सकती हैं.


फिलहाल देश के 25 हाईकोर्ट में एक भी महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं हैं. पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट की वरिष्ठ जज जस्टिस सबीना देश में महिला जजों के तौर पर सबसे वरिष्ठ हैं. वहीं हाईकोर्ट जजों की वरिष्ठता में भी उनका नाम काफी उपर है. बेटी के विवाद के चलते अक्सर उन पर सवाल खड़े किए जाते रहे हैं. जस्टिस सबीना 21 जनवरी 1997 को पंजाब हरियाणा न्यायिक सेवा में एडीजे के तौर पर शामिल हुई थी. मार्च 2008 में उन्हें हाईकोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किया गया. अप्रैल 2016 में उन्हे राजस्थान हाईकोर्ट में ट्रांसफर किया गया और अक्टूबर 2010 में उन्हें हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया गया. मई 2022 में उन्हें कुछ समय के लिए हिमाचल हाईकोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया.


देश के अलग अलग हाईकोर्ट में गिनी चुनी ही महिला जज वरिष्ठता सूची में उपर है. उसमें भी मुख्यतौर से दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस मुक्त गुप्ता दिल्ली 2009, पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस रीतु बहरी 2010 और गुजरात हाईकोर्ट की जज जस्टिस सोनिया गिरधर गोकानी 2011 हैं. कॉलेजियम के समक्ष बार से भी महिला अधिवक्ता के चयन का विकल्प मौजूद हैं.


वरिष्ठता के लिए तबादले
देश के 25 हाईकोर्ट में राजस्थान, कर्नाटक और मद्रास हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के तीन पद रिक्त हो चुके हैं. इन हाईकोर्ट में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश कार्यरत हैं. वही सुप्रीम कोर्ट जज के लिए चयन होने वाले 1-2 हाईकोर्ट सीजे के पद भी रिक्त हो सकती हैं. ऐसे में कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट जजों के लिए सिफारिश करने के बाद सबसे पहले इन हाईकोर्ट में तबादले के जरिए सीजे नियुक्ति की सिफारिश कर सकता है.


पंरपरा के अनुसार सुप्रीम कोर्ट पहले वरिष्ठ हाईकोर्ट सीजे को बड़े हाईकोर्ट में तबादले के जरिए पदोन्नत करते हैं. और उसके बाद सीनियर मोस्ट जजों को पदोन्नति के तौर पर छोटे हाईकोर्ट में सीजे बनाए जाते रहे है. केरला सीजे जस्टिस एस मणिकुमार, मेघालय सीजे जस्टिस संजीब बनर्जी, उड़ीसा सीजे डॉ जस्टिस एस मुरलीधर, सिक्किम सीजे विश्वनाथ सोमादेर को तबादले के जरिए बड़े हाईकोर्ट में पदोन्नति दी जा सकती है.


नए मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति
देश के कई हाईकोर्ट में वरिष्ठ हो चुके जजों में से भी पदोन्नति के जरिए मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की जा सकती है. वरिष्ठता के मामले में देश के अलग अलग हाईकोर्ट के डॉ जसवंत सिंह-2007, जस्टिस प्रसन्ना बी वराले-2008, जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल-2008, जस्टिस मनमोहन-2008, जस्टिस ए जी मसीह-2008, जस्टिस रंजन गुप्ता-2008, जस्टिस इन्दिरा प्रसन्ना मुखर्जी -2009, जस्टिस चित्रा रंजन दास -2009, जस्टिस सबीना-2008, जस्टिस डी मुरूस्वागमी -2009, जस्टिस टी राजा-2009,  जस्टिस एम एम श्रीवास्तव-2009, जस्टिस संजय कुमार मिश्रा-2009, जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर -2009, जस्टिस टी एस विसागननम 2009 को पदोन्नति का इंतजार हैं.  


देश की सर्वोच्च अदालत से पहले तीन जजों का कॉलेजियम देश के अलग अलग हाईकोर्ट में जजों की कवायद को पूर्ण कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट जजों की नियुक्ति के लिए 5 जजों के कॉलेजियम की बैठक तय करती है. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में अगले कुछ दिनों में होने वाली कॉलेजियम की बैठकों का इंतजार है.


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