नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि यौन उत्पीड़न से संबंधित शिकायतों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और यदि आंतरिक शिकायत समिति कानूनी रूप से निर्धारित 90 दिन के भीतर कार्यवाही समाप्त नहीं करती है तो शिकायतों को रद्द नहीं किया जाना चाहिए.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

किस मामले पर सुनवाई के दौरान अदालत ने कही ये बात?
न्यायमूर्ति विकास महाजन ने कहा कि शिकायतों को उनके तार्किक अंत तक ले जाना चाहिए, जो शिकायतकर्ता और आरोपी के हित में है. दरअसल एक चार्टर्ड अकाउंटेंट ने कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013 के तहत अपने खिलाफ दायर एक शिकायत के आधार कार्यवाही शुरू किए जाने को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, जिसपर सुनवाई करते हुए अदालत ने उक्त टिप्पणियां की.


याचिकाकर्ता ने कई आधारों पर अपने खिलाफ कार्यवाही को चुनौती दी. एक आधार यह भी है कि शिकायत दर्ज होने के 90 दिन बाद भी आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) अपनी जांच पूरी करने में विफल रही.


'यौन उत्पीड़न की शिकायतों को गंभीरता से देखा जाए'
हाल में पारित अदालत के आदेश में कहा गया है, 'प्रथम दृष्टया मेरा मानना ​​है कि यौन उत्पीड़न की शिकायत और उसके बाद होने वाली जांच को केवल इस कारण से रद्द नहीं किया जा सकता है कि आंतरिक शिकायत समिति अधिनियम की धारा 11(4) में दी गई समय सीमा के भीतर जांच पूरी करने में विफल रही है.


अदालत में कहा गया है, 'यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यौन उत्पीड़न के आरोपों वाली ऐसी शिकायतों को गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ देखा जाना चाहिए और तदनुसार, उनकी जांच की जानी चाहिए. शिकायतों को उनके तार्किक निष्कर्ष पर ले जाया जाना चाहिए, यह शिकायतकर्ता और उस व्यक्ति के हित में है, जिसके खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए हैं.'


अदालत ने फिलहाल कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और याचिका के संबंध शिकायतकर्ता व आईसीसी से जवाब मांगा है.
(इनपुट: भाषा)


इसे भी पढ़ें- Bihar: शराब छिपाने का शातिराना जुगाड़, सड़क पर ही बना दिया तहखाना



Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.