देश की वंचित आबादी तक कानूनी सहायता पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी: जस्टिस यू यू ललित
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यू यू ललित ने कहा है कि देश की वंचित आबादी तक कानूनी सहायता पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के दो दिवसीय प्रथम जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के राष्ट्रीय सम्मेलन का रविवार को समापन हुआ. विज्ञान भवन में आयोजित हुआ इस तरह का पहला आयोजन हुआ, जिसमें देशभर से 1300 से अधिक जिला न्यायाधीश मौजूद रहें, समापन समारोह को नालसा कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस यू यू ललित, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल ने सम्बोधित किया.
जस्टिस यू यू ललित ने बताया उद्देश्य
समारोह को सम्बोधित करते हुए जस्टिस यू यू ललित ने कहा कि नालसा के जरिए देश भर में राज्य और जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा कानूनी सहायता प्रदान करने की इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश के अंतिम छोर और वंचित व्यक्ति तक निःशुल्क कानूनी सहायता पहुंचे.
जस्टिस ललित ने देशभर से आए जिला न्यायाधीशों और सचिवों के प्रयासों की तारीफ करते हुए कहा कि 'जिला न्यायाधीश न्यायपालिका में जमीनी स्तर पर काम करते हैं और वास्तविक मुद्दों को जानते हैं, और जहां कानूनी सहायता की आवश्यकता होती है उनसे उनका सीधा वास्ता होता हैं, इसलिए जिला न्यायाधीशों पर ज्यादा जिम्मेदारी हैं.
'हर नुक्कड़ तक पहुंच सकते हैं हम'
जस्टिस ललित ने कहा कि विशेष अभियान के जरिए 42 दिनों की अवधि में हम कानूनी सहायता के लिए लगभग 19.5 लाख गांवों तक पहुंचने में कामयाब हुए हैं. उन्होंने कहा की हमारे बेहतरीन ताकत हैं और हम देश के हर नुक्कड़ तक पहुंच सकते हैं.
जस्टिस ललित ने कहा कि 'इस आंदोलन को अंत तक ले जाते हैं, तो देश के अधिक लोग कानूनी सहायता तक पहुंच सकते हैं.'
लीगल सर्विस के कैंपेन में लॉ स्टूडेंट को शामिल करने का आह्वान करते हुए जस्टिस ललित ने कहा कि 'जब हमने ये अभियान शुरू किया तब युवाओं और कानून के छात्रों को इसमें शामिल करने की बात कहीं थी. जिससे आज हमारे पास तालुका स्तर तक कानूनी सहायता पहुचाने की व्यवस्था हैं. हमारा लक्ष्य समाज के वंचित वर्ग से आने वाले सभी सत्तर प्रतिशत तक पहुंचना है.'
'हम जागरूक कर सकते हैं'
जस्टिस ललित ने जिला न्यायाधीशों को संबोधित करते हुए कहा कि हम स्वभाव से न्यायिक अधिकारी हैं, हम कानूनी सहायता के डिस्पेंसर नहीं हैं, हम कानूनी सहायता के सूत्रधार हैं. इसलिए हम उन्हें उनके अधिकार के बारे में जागरूक कर सकते हैं.
उन्होंने कहा कि 'एनडीपीएस या पॉक्सो जैसे कानून यह कहता है कि जमानत आसानी से नहीं दी जानी चाहिए, इसलिए न्यायिक अधिकारियों के रूप में आपकी भूमिका अलग है, लेकिन कानूनी सहायता अधिकारियों के रूप में आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आरोपी को अदालत में पेश नहीं किया जाए या समय पर आवेदन दाखिल किया जाए.'
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कही ये बड़ी बात
समापन समारोह को सम्बोधित करते हुए जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने न्यायिक प्रणाली में प्रौद्योगिकी के महत्व पर अपने विचार साझा किए. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट, हाइकोर्ट और जिला अदालतें ट्विटर और टेलीग्राम चैनल सहित संचार के आधुनिक साधनों के उपयोग पर बहुत मितभाषी रही हैं, इसे बदलने की आवश्यकता है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि संचार के साधनों का उपयोग करने के लिए हमारे इस प्रतिरोध को बदलना होगा. उन्होंने कहा हम सामान्य भाषा का उपयोग करके अपने नागरिकों तक पहुंच सकते हैं, जो समाज में बहुत प्रचलित हो रही है. जब तक हम न्यायिक संस्थानों के रूप में संचार के साधनों को अपनाने के लिए इस प्रतिरोध को नहीं छोड़ते हैं, जो हमारे समाज में इतना व्यापक है, तो हम खेल हार गए होते. हम पहले से ही खेल को खोने की प्रक्रिया में हैं जब तक कि हम इस डर को नहीं छोड़ते कि अगर हम संचार के आधुनिक साधनों का उपयोग करते हैं तो क्या होगा.'
हमें परिवर्तन का अग्रदूत बनना होगा
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग को अपनाने के खिलाफ रहे जजों को संबोधित करते हुए कहा कि 'जजों को लगता है कि जब मैं अपनी अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू करूंगा तो क्या होगा? क्या लोग हमारा आकलन करना शुरू कर देंगे?'
उन्होंने कहा कि 'अधिकांश जजों को लगता है हम दुनिया को लाइव स्ट्रीमिंग दिखाकर न्यायिक समुदाय को मिल रहे सम्मान को खो देंगे कि हम जब डायस पर बैठते है तो कैसे व्यवहार करते हैं. हमें अपने काम करने के तरीकों को बदलना होगा. बड़े पैमाने पर जवाबदेही की दुनिया है और मुझे लगता है, हम बड़े पैमाने पर समुदाय का सम्मान अर्जित कर सकते हैं, बशर्ते कि हम समाज मे बेहद प्रचलित हो रहे मंच को अपनाएं और आगे बढ़ें. न्यायिक प्रणाली को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता है, हमें परिवर्तन का अग्रदूत बनना होगा.'
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