नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून का इस्तेमाल आरोपियों को परेशान करने के लिए एक औजार के रूप में नहीं किया जाना चाहिए और अदालतों को हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तुच्छ मामले इसकी पवित्र प्रकृति को "विकृत'' न करें. शीर्ष अदालत ने दो लोगों के खिलाफ चेन्नई की एक अदालत में लंबित आपराधिक मुकदमे को निरस्त करते हुए कहा कि कानून निर्दोषों को डराने के लिए ‘तलवार’ की तरह इस्तेमाल किये जाने के बजाय निर्दोषों की रक्षा के लिए ढाल के रूप में अस्तित्व में है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने की यह टिप्पणी


न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति एस. रवीन्द्र भट की पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के पिछले साल अगस्त के फैसले के खिलाफ एक अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के प्रावधान के कथित उल्लंघन से संबंधित एक आपराधिक शिकायत रद्द करने की अर्जी ठुकरा दी गई थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रारंभिक जांच और शिकायत दर्ज करने के बीच चार साल से अधिक का अंतर था और पर्याप्त समय बीत जाने के बाद भी शिकायत में किये गये दावों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया गया था. इसने कहा कि हालांकि अत्यधिक देरी आपराधिक शिकायत रद्द करने का अपने आप में एक आधार नहीं हो सकती है, लेकिन इस तरह की देरी के लिए ‘अस्पष्ट कारण’ इसे रद्द करने के आधार के तौर पर एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में माना जाना चाहिए.


न्याय दिलाने के लिए शुरू हो आपराधिक कार्यवाही


पीठ ने 16 दिसंबर को दिए अपने फैसले में कहा, एक बार फिर हम कह रहे हैं कि शिकायत दर्ज करने और आपराधिक कार्यवाही शुरू करने का उद्देश्य केवल न्याय के उद्देश्य को पूरा करने के लिए होना चाहिए और कानून का इस्तेमाल आरोपियों को परेशान करने के लिए एक उपकरण के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए. खंडपीठ ने उच्च न्यायालय का आदेश रद्द करते हुए कहा कि कानून एक पवित्र चीज है, जो न्याय के लिए अस्तित्व में आता है और अदालतों को कानून के संरक्षक तथा सेवक के तौर पर हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तुच्छ मामले कानून की पवित्र प्रकृति को विकृत न करें.


इस आधार पर खारिज हुई याचिका


उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ताओं द्वारा दायर याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि मामले के तथ्यों का पता लगाने के लिए एक पड़ताल की आवश्यकता थी. शीर्ष अदालत ने पाया कि रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि भले ही ड्रग इंस्पेक्टर द्वारा शिकायत दर्ज कराई गई थी, लेकिन शिकायत को कायम रखने के लिए अधिकारी द्वारा कोई सबूत उपलब्ध नहीं कराया गया था. न्यायालय ने अपील की अनुमति देते हुए कहा कि वर्तमान मामले में प्रतिवादी ने मौके पर पहुंचकर प्रारंभिक निरीक्षण करने, कारण बताओ नोटिस तथा शिकायत के बीच चार साल से अधिक की असाधारण देरी के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है. वास्तव में, इस तरह के स्पष्टीकरण की गैर-मौजूदगी ही आपराधिक मुकदमे शुरू करने के कुत्सित इरादों की ओर अदालत को संकेत देती है. 


यह भी पढ़ें: Unnao Rape Case: बेटी की शादी के लिए चाहिए दो महीने की जमानत, कुलदीप सेंगर ने खटखटाया हाईकोर्ट का दरवाजा


Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.