महाराष्ट्र में हुए सियासी परिवर्तन के बाद क्या दलबदल विरोधी कानून में होगा बदलाव, सरकार ने दिया ये जवाब
महाराष्ट्र में हुए सियासी उठापट के बाद सत्ता परिवर्तन हो चुका है. वहां शिवसेना में हुए विद्रोह के बाद से ही दोनों पक्ष दलबदल कानून से जुड़े कई बिंदुओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कर चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई कर रहा है. इसी बीच केंद्र सरकार ने दलबदल कानून को लेकर राज्यसभा में जवाब दिया है.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र में हुए सियासी उठापट के बाद सत्ता परिवर्तन हो चुका है. वहां शिवसेना में हुए विद्रोह के बाद से ही दोनों पक्ष दलबदल कानून से जुड़े कई बिंदुओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कर चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई कर रहा है. इसी बीच केंद्र सरकार ने दलबदल कानून को लेकर राज्यसभा में जवाब दिया है.
दलबदल कानून में परिवर्तन से किया इनकार
राज्यसभा सदस्य नारायण दास गुप्ता की ओर से किए गए सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने देश के वर्तमान दलबदल कानून में किसी भी प्रकार के संशोधन की आवश्यक्ता से इनकार किया है. सरकार ने कहा कि वर्तमान दलबदल विरोधी कानून अपने आप में दल बदल को रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्था करता है.
दास ने इस कानून के वर्तमान स्वरूप को लेकर भी सवाल किया. उन्होंने पूछा कि क्या राजनीतिक विद्रोह का समाधान रिजॉर्ट पॉलिटिक्स के माध्यम से करने के बजाय राज्यों की राजधानियों में ही करने से संबंधित कोई प्रावधान किया जा सकता है? दास ने सरकार से ये भी पूछा कि क्या सरकार इस कानून की विसंगतियों को दूर करने के लिए किसी प्रकार के संशोधन की योजना बना रही है?
वर्तमान कानून को बताया पर्याप्त
केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने नारायण दास के सवाल पर जवाब पेश करते हुए वर्तमान कानून को पर्याप्त बताया हैं. कानून मंत्री के जरिए दिए गए जवाब में सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने किहोतो होलहान बनाम जाचिल्हू फैसले में संविधान की दसवीं अनुसूची के पैरा 7 को छोड़कर सभी उपबंधों को सही ठहराया है.
दसवीं अनुसूची में संशोधन की जरूरत नहीं
सरकार ने कहा कि संविधान की 10वीं अनुसूची के कई उपबंधों की कई हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए परीक्षा की है, लेकिन किसी भी न्यायालय की ओर से संशोधन के लिए कोई विशिष्ट निर्देश नहीं दिए हैं. सरकार के अनुसार दसवीं अनुसूची के उपबंध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं और इनकी कई न्यायिक जांचें भी हो चुकी हैं इसलिए अब तक इस अनुसूची में किसी भी संशोधन की आवश्यक्ता प्रतीत नहीं होती है.
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