नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के बाद से ही अघोषित तरीके से ही सही लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत में मुस्लिम न्यायाधीश के लिए कम से कम एक सीट आरक्षित रखी गई. देश की सर्वोच्च अदालत में कभी कभी इनकी संख्या 2 से लेकर 4 तक भी हुई है. वर्तमान में देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस नजीर अघोषित रूप से मुस्लिम जज होने का प्रतिनिधित्व करते हैं. जस्टिस एस अब्दुल नजीर भी जनवरी 2023 में सेवानिवृत्त हो रहे हैं ऐसे में अब सवाल ये भी है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट में अगले मुस्लिम जज कौन होंगे.


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सुप्रीम कोर्ट में कभी धर्म के अनुसार किसी जज की नियुक्ति नहीं हुई है, लेकिन ये भी एक हकीकत है कि सुप्रीम कोर्ट में जब भी कोई ऐसा मामला आया है जिसमें मुस्लिम जज की जरूरत पड़ी है. उस बेंच में एक मुस्लिम जज जरूर मौजूद रहें. वर्तमान में जस्टिस एस अब्दुल नजीर की धर्म से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट के सबसे ज्यादा मांग में रहने वाले जज माने जाते हैं. अयोध्या भूमि विवाद और ट्रिपल तलाक के ऐतिहासिक फैसले में वे शामिल रहे हैं. अगस्त 2017 में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने वाली 9 सदस्य पीठ का भी वे हिस्सा रहे हैं.


4 जनवरी 2023 को सेवानिवृत्त होंगे जस्टिस नजीर
जस्टिस एस अब्दुल नजीर सुप्रीम कोर्ट में एकमात्र मुस्लिम जज हैं जो 4 जनवरी 2023 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. 1983 में कर्नाटक में वकालत का सफर शुरू करने वाले जस्टिस नजीर 12 मई 2003 में कर्नाटक हाईकोर्ट में जज नियुक्त हुए थे. 17 फरवरी 2017 को उन्हे सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था. उसके बाद से अब तक देश की इस सर्वोच्च अदालत में किसी मुस्लिम जज की नियुक्ति नहीं हुई है, उनकी सेवानिवृति से पूर्व सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम जरूर नए मुस्लिम जज की नियुक्ति कर सकता है.


देश की उच्च न्यायपालिका में मुस्लिम जज
वर्तमान में देश की उच्च न्यायपालिका में कार्यरत मुस्लिम जजों की कुल संख्या 36 हैं. देश की सर्वोच्च अदालत में स्वीकृत 34 पदों पर कार्यरत 30 जजों में जस्टिस अब्दुल नज़ीर मुस्लिम जज होने का प्रतिनिधित्व करते हैं. वहीं हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अमजद एहतेशाम सैयद एकमात्र हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हैं.


कानून मंत्रालय के अनुसार 1 अगस्त 2022 को देश के 25 हाईकोर्ट में जजों के स्वीकृत 1108 पदों पर कार्यरत कुल जजों की संख्या 728 हैं. इन कार्यरत 728 हाईकोर्ट जजों में मुस्लिम जजों की संख्या कुल 35 हैं, जो कि कुल कार्यरत जजों का मात्र 4.8 प्रतिशत है.


देशभर के 25 हाईकोर्ट में से इलाहाबाद हाईकोर्ट में सर्वाधिक 10 मुस्लिम जज कार्यरत हैं, वहीं जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट में 5, केरल हाईकोर्ट में 4 जज और प्रेसिडेसियल हाईकोर्ट में  शामिल मद्रास, बॉम्बे और कर्नाटक हाईकोर्ट में 3-3 जज हैं. देश के 5 हाईकोर्ट ऐसे हैं जहां मुस्लिम जजों की संख्या 1-1 है. वहीं 13 हाईकोर्ट में एक भी मुस्लिम जज नहीं हैं.


देश की सर्वोच्च अदालत में ऐसा रहा सफर...
सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो चुके 228 और मौजूदा 30 जजों में कुल 18 जज मुस्लिम रहे हैं. भारत के 49 मुख्य न्यायाधीशों में से अब तक 4  मुस्लिम जज मुख्य न्यायाधीश बन पाए हैं. चार मुस्लिम जजों में जस्टिस एम हिदायतुल्ला, जस्टिस एम हमीदुल्लाह बेग, जस्टिस एएम अहमदी और जस्टिस अल्तमस कबीर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज के रूप में जस्टिस एम फातिमा बीवी ने 6 अक्टूबर 1989 से 29 अप्रैल 1992 तक सुप्रीम कोर्ट में अपनी सेवाएं दी थी.


चार मुख्य न्यायाधीशों का कार्यकाल इस तरह रहा


जस्टिस एम हिदायतुल्ला- 12 जनवरी 1958 से 16 दिसंबर 1970, 25 फरवरी 1968 को देश के पहले मुस्लिम सीजेआई
जस्टिस एम हमीदुल्लाह बेग- 12 अक्टूबर 1971 से 21 फरवरी 1978, 29 जनवरी 1977 देश के दूसरे मुस्लिम सीजेआई
जस्टिस ए एम अहमदी- 14 दिसंबर 1988 से 24 मार्च 1997, 25 अक्टूबर 1994 को देश के तीसरे मुस्लिम सीजेआई
जस्टिस अल्तमस कबीर- 9 सितंबर 2005 से 18 जुलाई 2013, 29 सितंबर 2012 को देश के चौथे मुस्लिम सीजेआई


सर्वोच्च अदालत में जज के तौर पर कार्यकाल


जस्टिस सर सैयद फजल अली- 26 जनवरी 1950 से 18 सितंबर 1951
जस्टिस गुलाम हसन- 8 सितंबर 1952 से 18 सितंबर 1951
जस्टिस सैयद जफर आलम- 18 जनवरी 1955 से 31 जनवरी 1964
जस्टिस एस मुर्तजा फजल अली- 2 अप्रैल 1975 से 20 अगस्त 1985
जस्टिस बहरुल इस्लाम- 4 दिसंबर 1980 से 12 जनवरी 1983
जस्टिस वी खालिद- 25 जून 1984 से 30 जून 1987
जस्टिस फातिमा बीवी- 6 अक्टूबर 1989 से 29 अप्रैल 1992
जस्टिस फैजानुद्दीन- 14 दिसंबर 1993 से 4 फरवरी 1997
जस्टिस सगीर अहमद- 6 मार्च 1995 से 30 जून 2000
जस्टिस एस एस एम कादरी- 4 दिसंबर 1997 से 4 अप्रैल 2003
जस्टिस आफताब आलम- 12 नवंबर 2007 से 18 अप्रैल 2013
जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम कैलीफुला- 2 अप्रैल 2012 से 22 जुलाई 2016
जस्टिस एम वाई इकबाल- 24 दिसंबर 2017 से 12 फरवरी 2016
जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर- 17 फरवरी 2017 से 4 जनवरी 2023


अप्रैल 2003 से सितंबर 2005 तक तकरीबन ढाई साल ऐसा मौका रहा जब सुप्रीम कोर्ट में कोई मुस्लिम जज नहीं रहे. दिसंबर 1988 के बाद ऐसा पहली बार हुआ था कि उच्चतम अदालत में कोई मुस्लिम जज नहीं था. जस्टिस एसएसएम कादरी के 4 अप्रैल 2003 को रिटायर होने के बाद 9 सितंबर 2005 को जस्टिस अल्तमस कबीर की नियुक्ति हुई थी.


इसके विपरीत दिसंबर 2012 से अप्रैल 2013 की अवधी में चार मुस्लिम जज रहे. इनमें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया अल्तमस कबीर के अलावा जस्टिस आफताब आलम, जस्टिस इकबाल और जस्टिस कलीफुल्ला थे. 22 जुलाई 2016 से लेकर 17 फरवरी 2017 तक भी सुप्रीम कोर्ट में कोई मुस्लिम जज नहीं थे. 22 जुलाई 2016 को जस्टिस मोहम्मद फकीर सेवानिवृत हुए थे. वहीं 17 फरवरी 2017 को जस्टिस जस्टिस एस अब्दुल नजीर की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति हुई थी.


सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम जज की नियुक्ति को लेकर कभी सवाल खड़े नहीं किए गए, लेकिन इनकी नियुक्ति को लेकर जरूर एक लंबा वक्त का इंतजार किया जाता रहा. सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच कई बार जजों की नियुक्ति को लेकर गतिरोध रहना नई नियुक्ति में वक्त लगने का बड़ा कारण रहा है.


सुप्रीम कोर्ट में स्वीकृत कुल जजों की संख्या 34 है, फिलहाल इस शीर्ष अदालत में काम कर रहे 30 में से 3 जज अगले 3 महीने में सेवानिवृत्त हो जाएंगे. जिसमें वर्तमान सीजेआई जस्टिस यूयू ललित 8 नवंबर, जस्टिस इंदिरा बनर्जी 23 सितंबर और जस्टिस हेमंत गुप्ता 16 अक्टूबर शामिल हैं. सीजेआई यूयू ललित 8 नवंबर को सेवानिवृत होंगे, ऐसे में परंपरा के अनुसार वे 8 अक्टूबर तक ही कॉलेजियम की बैठक के जरिए नए जजों की नियुक्ति कर सकते हैं. अगर सही समय पर नए जज नियुक्त नहीं किये जाते हैं तो 9 नवंबर तक सुप्रीम कोर्ट में केवल 27 जज कार्य कर रहे होंगे.


कैसे पिछड़े जस्टिस कुरैशी और जस्टिस रफीक


वर्ष 2022 की शुरुआत तक वरिष्ठता क्रम में जस्टिस अकील कुरैशी को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति का प्रबल दावेदार माना जाता रहा. राजस्थान हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में जस्टिस अकील कुरैशी के इसी वर्ष 6 मार्च को सेवानिवृत होने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति को लेकर सभी संभावनाएं समाप्त हो गई.


हाईकोर्ट जजों की वरिष्ठता सूची में जस्टिस अकील कुरैशी सबसे सीनियर जज के रूप में अपना स्थान बनाए हुए थे. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम उनकी वरिष्ठता को देखते हुए 10 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस कुरैशी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की थी. केंद्र सरकार ने जस्टिस कुरैशी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में नियुक्त करने की सिफारिश को दो बार वापस भेज दिया.


सरकार द्वारा इस पर अपनी सहमति नहीं देने पर कॉलेजियम ने 9 सितंबर 2019 को अपना फैसला बदलते हुए जस्टिस कुरैशी को त्रिपुरा हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश भेजी. 16 नवंबर 2019 को उन्होंने त्रिपुरा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली. जस्टिस एन वी रमन्ना के सीजेआई बनने के बाद उनका तबादला त्रिपुरा से राजस्थान किया गया. जिसके बाद जस्टिस कुरैशी 12 अक्टूबर 2021 को राजस्थान के मुख्य न्यायाधीश बन गए.


जस्टिस कुरैशी के बाद मूल राजस्थान हाईकोर्ट के जज जस्टिस मोहम्मद रफीक को सुप्रीम कोर्ट के लिए उपयुक्त नाम माना जा रहा था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनका तबादला मध्यप्रदेश हाईकोर्ट से हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में किए जाने के बाद से ही उनकी पदोन्नति को लेकर आशंका बन गई. 24 मई 2022 को हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश पद से उनकी सेवानिवृति के साथ ही वे आशंकाए सच साबित हो गई.


राजस्थान के चुरू जिले के सुजानगढ़ निवासी जस्टिस मोहम्मद रफीक को 15 मई 2006 को राजस्थान हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया. करीब 13 साल बाद उन्हें 7 अप्रैल से 4 मई 2019 को राजस्थान हाईकोर्ट का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाया गया. उसी वर्ष 23 सितंबर 2019 से 5 अक्टूबर 2019 तक उन्हें दूसरी बार राजस्थान हाईकोर्ट का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाया गया. 


जस्टिस एस ए बोबडे के देश के मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद कॉलेजियम ने 17 अक्टूबर 2019 को उन्हें मेघालय हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की. केन्द्र सरकार ने 8 नवंबर 2019 को कॉलेजियम की सिफारिश मंजूरी दी, जिसके बाद 13 नवंबर 2019 को जस्टिस मोहम्मद रफीक ने मेघालय सीजे के पद पर शपथ ली.


27 अप्रैल 2020 को कॉलेजियम ने उन्हें पदोन्नत करते हुए उनका तबादला मेघालय हाईकोर्ट से उड़ीसा हाईकोर्ट में कर दिया. करीब 8 माह बाद एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हे पदोन्नत करते हुए 3 जनवरी 2021 को उनका तबादला उड़ीसा से मध्यप्रदेश हाईकोर्ट सीजे के तौर पर किया. 


जस्टिस बोबड़े की सेवानिवृति के बाद जस्टिस एन वी रमन्ना देश के 48 वें सीजेआई बने. जस्टिस रमन्ना के आने के बाद 14 अक्टूबर 2021 को उनका तबादला मध्य प्रदेश से हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में कर दिया गया. इस तबादले के बाद से ही जस्टिस मोहम्मद रफीक की सुप्रीम कोर्ट जज के लिए दावेदारी को समाप्त माना जा रहा था. कॉलेजियम और उनकी सिफारिशों पर गौर करने वाले अधिकांश कानूनविद मानते हैं कि कॉलेजियम के एक जज जस्टिस रफीक के पक्ष में नहीं थे. पूर्व सीजेआई एस ए बोबड़े और जस्टिस अरूण मिश्रा के करीब होने का भी उन्हें कुछ हद तक नुकसान हुआ.


जस्टिस एस ए बोबड़े और जस्टिस नरीमन
जस्टिस नरीमन सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के तीसरे वरिष्ठ जज थे. सेवानिवृत होने से पहले उन्होंने दूसरे नाम पर विचार करने से पहले जस्टिस कुरैशी को सुप्रीम कोर्ट में लाने के पक्षधर थे और ये मामला महीनों लटका रहा था. जस्टिस नरीमन और पूर्व सीजेआई एस ए बोबड़े के बीच सब कुछ सही नहीं होने की खबरें भी बाहर आई. चर्चा यहां तक रही कि इसी के चलते उन्होंने दूसरी नियुक्तियों के मामले में भी अपनी सहमति नहीं दी. जिसके चलते उनकी सेवानिवृत्ति तक कोई नियुक्ति नहीं हो पाई. जस्टिस नरीमन की सेवानिवृत्ति के बाद सुप्रीम कोर्ट में बड़ी संख्या में जजो की नियुक्ति की गई.


वहीं दूसरी तरफ जस्टिस मोहम्मद रफीक की नियुक्ति को लेकर कोई विवाद नहीं था.पूर्व सीजेआई जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता में कॉलेजियम ने जस्टिस मोहम्मद रफीक को लेकर कई शीघ्र निर्णय लिए. जहां जस्टिस अकील कुरैशी के मामले में ये गती बेहद धीमी रही. केन्द्र सरकार ने भी दो साल बाद जस्टिस अकील कुरैशी की नियुक्ति को मंजूरी तब दी जब उन्हे देश के सबसे छोटे हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश कि गई. केन्द्र सरकार की ओर से जस्टिस कुरैशी और जस्टिस मोहम्मद रफीक को मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश को एक ही दिन मंजूरी दी गई.


वरिष्ठ होने के बावजूद जस्टिस कुरैशी को त्रिपुरा का सीजे बनाया गया, वहीं उनसे कम वरिष्ठ जस्टिस रफीक को मेघालय सीजे नियुक्त किया गया. जस्टिस मोहम्मद रफीक को लेकर कहा जाता है कि वे सभी की पसंद रहें. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस अरुण मिश्रा के करीब होने माना जाता रहा है.


तबादलों के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम जस्टिस कुरैशी को लेकर दयालु नहीं रहा. एक ओर जहां 3 साल में जस्टिस मोहम्मद रफीक को मेघालय से उड़ीसा और उड़ीसा से मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जिम्मेदारी दी गई. इसी दौरान जस्टिस कुरैशी त्रिपुरा के सीजे बने रहे, लेकिन सीजेआई के पद पर जस्टिस एन वी रमन्ना के आने के बाद कुछ बदलाव हुए.


सुप्रीम कोर्ट में अपनी श्रेष्ठ उम्मीदवारी मजबूत कर रहे जस्टिस मोहम्मद रफीक को अचानक ही मध्य प्रदेश से हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में तबादला कर दिया गया. तो दूसरी तरफ जस्टिस अकील कुरैशी का तबादला त्रिपुरा हाईकोर्ट से राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद पर किया गया कई कानूनविद मानते हैं कि ये जस्टिस कुरैशी के लिए सेवानिवृत होने से पहले एक सम्मान था. जस्टिस अकील कुरैशी के बाद जस्टिस मोहम्मद रफीक का नाम सबसे ऊपर था, लेकिन वे कॉलेजियम के सभी सदस्यों का समान समर्थन प्राप्त नहीं कर सके.


कौन होंगे अब जस्टिस नजीर के उत्तराधिकारी


1). जस्टिस अमजद एहतेशाम सैयद
मूल बॉम्बे हाईकोर्ट के वरिष्ठ जज जस्टिस अमजद एहतेशाम सैयद हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हैं. हाईकोर्ट मुख्य न्यायाधीश की वरिष्ठता में फिलहाल जस्टिस सैयद कई मुख्य न्यायाधीश से काफी नीचे है. लेकिन मुस्लिम जजों में वरिष्ठता में सबसे ऊपर हैं और साथ ही वे बॉम्बे हाईकोर्ट से भी आते हैं. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस ए एस ओका और जस्टिस बी आर गवई बॉम्बे हाईकोर्ट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. ऐसे में जस्टिस सैयद के सुप्रीम कोर्ट में चयन पूरी तरह से कॉलेजियम पर निर्भर है.


पिछले कुछ समय से इनका नाम सुप्रीम कोर्ट जज के लिए काफी करीब माना जा रहा है. मुंबई विधिक सेवा प्राधिकरण के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन के रहते विधिक सेवा की कई सेवाओं, योजनाओं और कार्यक्रमों का सफल आयोजन किया गया. बेहद शांत और सरल व्यवहार के लिए जाने वाले जस्टिस सैयद सुप्रीम कोर्ट जज के तौर पर एक मजबूत उम्मीदवारी रखते है.


जस्टिस सैयद को 11 अप्रैल 2007 को बॉम्बे हाईकोर्ट का अस्थायी जज नियुक्त किया गया था. 9 अप्रैल 2009 को उन्हे बॉम्बे हाईकोर्ट का परमानेंट जज नियुक्त किया गया. जस्टिस सैयद 20 जनवरी 2023 को सेवानिवृत हो रहे हैं.


2). जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह
मूल बिहार हाईकोर्ट के जज जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह वरिष्ठता क्रम में जस्टिस अमजद एहतेशाम सैयद के बाद दूसरे नंबर पर है. जस्टिस अमानुल्लाह 20 जून 2011 को पटना हाईकोर्ट में जज नियुक्त किए गए थे. उनका कार्यकाल 10 मई 2025 तक है. ऐसे में जस्टिस अमानुल्लाह को लेकर कॉलेजियम इंतजार कर सकता है.


जस्टिस अमानुल्लाह ने पटना लॉ कॉलेज से लॉ करने के बाद 27 सितंबर 1991 को बिहार बार काउंसिल में अपना रजिस्ट्रेशन कराया था. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश पर 10 अक्टूबर 2021 को जस्टिस अमानुल्लाह का तबादला आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में किया गया. जहां 8 नवंबर 2021 को आन्ध्र प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का एग्जीक्यूटिव चेयरमैन भी नियुक्त किया गया. हाल ही में 21 मई 2022 को उनका तबादला फिर से उनके मूल हाईकोर्ट में पटना में किया गया.
 
3). जस्टिस अली मोहम्मद मागरे
जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट के जज जस्टिस अली मोहम्मद मागरे देश की सर्वोच्च अदालत में आने वाले पहले कश्मीरी मुस्लिम जज हो सकते हैं. कुलगाम के वट्टू गांव में 8 दिसंबर 1960 को जन्मे जस्टिस मागरे ने कश्मीर विश्वविद्यालय से स्नातक और एलएलबी किया.


एलएलबी करने के बाद 1984 में जिला अदालत में वकालत से अपना सफर शुरू किया था. बाद में वे जिला अदालत के साथ ही हाईकोर्ट में भी प्रैक्टिस करने लगे. कई संस्थानों के पैनल एडवोकेट के तौर पर सेवाएं देने के बाद वे जम्मू कश्मीर राज्य के लिए अतिरिक्त महाधिवक्ता नियुक्त किए गए. 


2009 में उन्हें गृह विभाग के अतिरिक्त प्रभार के साथ वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में नियुक्त किया गया. जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी राज्य सरकार के कई महत्वपूर्ण मामलों में पैरवी की. राष्ट्रपति ने 7 मार्च 2013 को जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के स्थायी जज के तौर पर उनके नियुक्ति आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसके अगले दिन 8 मार्च को उन्होने जज के रूप में पद की शपथ ली.


अगस्त 2019 में धारा 370 की समाप्ति के बाद जम्मू कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिए गए. 12 अक्टूबर 2020 को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने जस्टिस मागरे को नवगठित लद्दाख राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का पहला कार्यकारी अध्यक्ष मनोनीत किया.


लद्दाख विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष तौर पर जस्टिस मागरे ने नियंत्रण रेखा के गांवों में लीगल ऐड क्लीनिक का उद्घाटन कर सुर्खियों में आए. उन्होंने विधिक सेवा की लद्दाख के उन दुर्घम क्षेत्रों तक पहुंच बनाई जहां पहले कभी प्रचार नहीं हुआ था. वर्तमान सीजेआई जस्टिस यूयू ललित भी उनके द्वारा कारगिल में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं.


देश की सर्वोच्च अदालत में जस्टिस मागरे की नियुक्ति की संभावना इसलिए भी बढ़ जाती हैं, क्योंकि राजनीतिक रूप से भी उनकी नियुक्ति कश्मीर में विश्वास बहाली को मजबूत कर सकता है और ये केन्द्र सरकार के लिए भी एक सकारात्मक कदम हो सकता है. कॉलेजियम भी लंबे समय बाद जस्टिस मागरे की नियुक्ति के जरिए जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के सर्वोच्च अदालत में प्रतिनिधित्व की कमी को पूरा कर सकते हैं.


जस्टिस मागरे 7 दिसंबर 2022 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. ऐसे में उनका कार्यकाल तीन माह से भी कम समय का बचा है. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम उन्हें किसी हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की बजाए सीधे सुप्रीम कोर्ट में ले जाना चाहेगा. जहां उनकी सेवानिवृति आयु 3 वर्ष के लिए बढ़ जाएगी. क्योंकि हाई कोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति की उम्र 62 वर्ष और सुप्रीम कोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति आयु 65 है.


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