Leader of Opposition: लोकसभा के 14 में से 13 विपक्षी नेता, जो प्रधानमंत्री पद तक नहीं पहुंच सके
Leader of Opposition History: आमतौर पर लोकसभा में विपक्ष के नेता को भी प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जाता है, लेकिन भारत के इतिहास में विपक्ष के 14 में से 13 नेता इस पद पर बैठने के बाद प्रधानमंत्री पद तक नहीं पहुंच पाए.
Leader of Opposition History: 10 साल बाद लोकसभा में विपक्ष का नया नेता चुना गया है. कांग्रेस ने यह अहम जिम्मेदारी पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सौंपी है. राहुल के लिए यह एक अहम क्षण है, क्योंकि वह अपनी मां सोनिया गांधी और पिता राजीव गांधी के पदचिन्हों पर चल रहे हैं, जो पहले इसी पद पर रह चुके हैं. राजीव गांधी 1989 से 1991 तक विपक्ष के नेता रहे, जबकि सोनिया गांधी 1999 से 2004 तक इस पद पर रहीं.
विपक्ष के नेता की भूमिका
विपक्ष का नेता लोकसभा में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक पद है, जो सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के लिए आरक्षित है. योग्य होने के लिए, पार्टी के पास लोकसभा में कुल सीटों का कम से कम 10 प्रतिशत होना चाहिए.
इस भूमिका में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां और शक्तियां शामिल हैं, जिसमें लोक लेखा समिति का नेतृत्व करना और प्रमुख नियुक्तियों में भाग लेना शामिल है. विपक्ष का नेता संसद में विपक्ष की प्राथमिक आवाज भी होता है.
13 विपक्षी नेता प्रधानमंत्री नहीं बन पाए
1969 में अपनी स्थापना के बाद से विपक्ष के नेता का पद 14 बार विभिन्न नेताओं के पास रहा है. विपक्ष के पहले नेता कांग्रेस (संगठन) से राम सुभग सिंह थे, जो कांग्रेस पार्टी में विभाजन के बाद उभरा एक गुट था. लालकृष्ण आडवाणी ने तीन बार इस पद को संभाला है और अटल बिहारी वाजपेयी और यशवंत राव चव्हाण दोनों ने इसे दो-दो बार संभाला है.
केवल अटल बने पीएम, कईं थे दावेदार
ऐतिहासिक रूप से, विपक्ष के ज्यादातर नेता प्रधानमंत्री नहीं बन पाए हैं. राहुल गांधी से पहले 14 नेताओं में से सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी ही 1996 में प्रधानमंत्री बने थे. जगजीवन राम, सोनिया गांधी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे दूसरे नेता इस पद के प्रबल दावेदार थे, लेकिन सफल नहीं हो पाए. इसके अलावा, शरद पवार, सुषमा स्वराज और यशवंत राव चव्हाण जैसे कुछ विपक्षी नेताओं के नाम पर भी प्रधानमंत्री पद के लिए विचार किया गया था.
राजनीतिक करियर पर प्रभाव
विपक्ष के नेता की भूमिका कुछ नेताओं के करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ रही है, जिसके परिणाम मिले जुसे रहे हैं. विपक्ष के पहले नेता राम सुभग सिंह अपने कार्यकाल के बाद कोई महत्वपूर्ण राजनीतिक पद हासिल नहीं कर सके और 1971 में अपनी सीट हार गए.
विपक्ष के नेता के रूप में कार्य करने के बाद जगजीवन राम और पीवी नरसिम्हा राव ने अपने राजनीतिक करियर में गिरावट देखी. वहीं, विपक्ष के नेता के रूप में कार्यकाल के बाद तमिलनाडु में एक चुनावी रैली के दौरान राजीव गांधी की हत्या कर दी गई.
क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व
विपक्ष के नेता का पद मुख्य रूप से उत्तर भारत के नेताओं के पास रहा है. 15 नेताओं में से पांच उत्तर प्रदेश से, तीन महाराष्ट्र से, दो-दो गुजरात और बिहार से और दो दक्षिण भारत से हैं. केरल के सीएम स्टीफन ने 1978 से 1979 तक इस पद को संभाला और पीवी नरसिम्हा राव ने 1996 में 15 दिनों की संक्षिप्त अवधि के लिए इस पद को संभाला था.
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